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भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १५०
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – १५०
भगवान् आदित्य की सप्तावरण-पूजन-विधि

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — वत्स ! अब मैं दिवाकर भगवान् सूर्यनारायण को पूजा-विधि बताता हूँ । एक वेदी पर अष्टदल-कमल-युक्त मण्डल बनाकर उसमें कालचक्र की कल्पना करनी चाहिये । उसे बारह अरों से युक्त होना चाहिये । ये ही सर्वात्मा, सभी देवताओं में श्रेष्ठ, उज्ज्वल किरणों से युक्त ‘खखोल्क’ नामक भगवान् सूर्यदेव हैं ।om, ॐ इसमें हजार किरण से युक्त चतुर्बाहु भगवान् सूर्य की पूजा करनी चाहिये । इनके पश्चिम में अरुण, दक्षिण में निक्षुभा देवी, दक्षिण में ही रेवन्त तथा उत्तर में पिंगल की पूजा करनी चाहिये और वहीं संज्ञा की भी पूजा करनी चाहिये । अग्निकोण में लेखक की , नैर्ऋत्य में अश्विनीकुमारों की और वायव्यकोण में वैवस्वत मनु की तथा ईशानकोण में लोकपावनी देवी यमुना की पूजा करनी चाहिये । द्वितीय आवरण में पूर्व में आकाश की, दक्षिण में देवी को, पश्चिम में गरुड की और उत्तर में नागराज़ ऐरावत की पूजा शुभ होती है । अग्निकोण में हेलि, नैर्ऋत्यकोण में प्रहेलि, वायव्य में उर्वशी और ईशानकोण में विनतादेवी की पूजा करनी चाहिये । तृतीयावरण में पूर्व में शुक्र, पश्चिम में शनि, उत्तर में बृहस्पति, ईशान में बुध और मण्डल के अग्निकोण में चन्द्रमा की पूजा करनी ब्राहिये । नैऋकोण में राहु तथा वायव्यकोण में केतु की पूजा करनी चाहिये । चौथे आवरण में लेखक, शाण्डिलीपुत्र, यम, विरूपाक्ष, वरुण, वायुपुत्र, ईशान तथा कुबेर आदि की उन-उनकी दिशाओं में पूजा करनी चाहिये । पाँचवें आवरण में पूर्वादि क्रम से महाश्वेता, श्री, ऋद्धि, विभूति, धृति, उन्नति, पृथ्वी तथा महाकीर्ति आदि देवियों की पूजा करनी चाहिये तथा इन्द्र, विष्णु, अर्यमा, भग, पर्जन्य, विवस्वान्, अर्क, त्वष्टा आदि द्वादश आदित्यों की पूजा छठे आवरण में करनी चाहिये । सिर, नेत्र, अस्त्र-शस्त्र से युक्त रथसहित सूर्य की सातवें आवरण में पूजा करनी चाहिये । यक्ष, गन्धर्व, मासाधिपति तथा संवत्सर आदि की भी पूजा करनी चाहिये । इसके बाद भगवान् भास्कर का पुष्य, गन्ध आदि से विधिपूर्वक पूजनकर — ‘ॐ खखोल्काय नमः’ इस मूल मन्त्र से अपने अङ्ग का स्पर्श अर्थात् हृदयादिन्यास करते हुए पूजन करना चाहिये । जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इस विधि से सूर्य की नित्य अथवा दोनों पक्षों की सप्तमी के दिन पूजन करता है, वह परमपद को प्राप्त कर लेता है ।
(अध्याय १५०)

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