June 15, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 089 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ नवासीवाँ अध्याय एकतत्त्व – दीक्षा की विधि एकतत्त्वदीक्षाकथनम् 1 भगवान् शिव कहते हैं — स्कन्द ! अब लघु होने के कारण एकतात्त्वि की दीक्षा का उपदेश दिया जाता है। यथावसर यथोचित रीति से स्वकीय मन्त्र द्वारा सूत्रबन्ध आदि कर्म करे। तत्पश्चात् काल, अग्नि आदि से लेकर शिव- पर्यन्त समस्त तत्त्वों का प्रविभावन (चिन्तन) करे। शिवतत्त्व में अन्य सब तत्त्व धागे में मनकों की भाँति पिरोये हुए हैं। शिव- तत्त्व आदि का आवाहन करके गर्भाधान आदि संस्कारों का पूर्ववत् सम्पादन करे; किंतु मूल मन्त्र से सर्वशुल्क समर्पण करे। इसके बाद तत्त्वसमूहों से गर्भित पूर्णाहुति प्रदान करे। उस एक ही आहुति से शिष्य निर्वाण प्राप्त कर लेता है ॥ १-४ ॥’ शिव में नियोजन तथा स्थिरता का आपादन करने के लिये दूसरी पूर्णाहुति भी देनी चाहिये । उसे देकर शिवकलश के जल से शिष्य का अभिषेक करे ॥ ५ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘एकतत्त्व- दीक्षा विधि* का वर्णन’ नामक नवासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ८९ ॥ 1. सोमशम्भु की ‘कर्मकाण्ड-क्रमावली’ में इसके पूर्व ‘त्रितत्वदीक्षा’ का विस्तृत वर्णन है। Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe