June 20, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 129 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ उन्तीसवाँ अध्याय अर्घकाण्ड का प्रतिपादन अर्घकाण्डम् शंकरजी कहते हैं — अब मैं वस्तुओं की मँहगी तथा सस्ती के सम्बन्ध में विचार प्रकट कर रहा हूँ। जब कभी भूतल पर उल्कापात, भूकम्प, निर्घात (वज्रापात), चन्द्र और सूर्य के ग्रहण तथा दिशाओं में अधिक गरमी का अनुभव हो तो इस बात का प्रत्येक मास में लक्ष्य करना चाहिये । यदि उपर्युक्त लक्षणों में से कोई लक्षण चैत्र में हो तो अलंकार – सामग्रियों (सोना-चाँदी आदि) का संग्रह करना चाहिये। वह छः मास के बाद चौगुने मूल्य पर बिक सकता है। यदि वैशाख में हो तो वस्त्र, धान्य, सुवर्ण, घृतादि सब पदार्थों का संग्रह करना चाहिये। वे आठवें मास में छः गुने मूल्य पर बिकते हैं। यदि ज्येष्ठ तथा आषाढ़ मास में मिले तो जौ, गेहूँ और धान्य का संग्रह करना चाहिये । यदि श्रावण में मिले तो घृत-तैलादि रस-पदार्थों का संग्रह करना चाहिये। यदि आश्विन में मिले तो वस्त्र तथा धान्य दोनों का संग्रह करना चाहिये। यदि कार्तिक में मिले तो सब प्रकार का अन्न खरीदकर रखना चाहिये। अगहन तथा पौष में यदि मिले तो कुंकुम तथा सुगन्धित पदार्थों से लाभ होता है । माघ में यदि उक्त लक्षण मिले तो धान्य से लाभ होता है। फाल्गुन में मिले तो सुगन्धित पदार्थों से लाभ होता है। लाभ की अवधि छः या आठ मास समझनी चाहिये ॥ १-५ ॥’ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘अर्धकाण्ड का प्रतिपादन’ नामक एक सौ उन्तीसवां अध्याय पूरा हुआ ॥ १२९ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe