June 27, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 177 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ सतहत्तरवाँ अध्याय द्वितीया तिथि के व्रत द्वितीयाव्रतानि अग्निदेव कहते हैं — अब मैं द्वितीया के व्रतों का वर्णन करूँगा, जो भोग और मोक्ष आदि देनेवाले हैं। प्रत्येक मास की द्वितीया को फूल खाकर रहे और दोनों अश्विनीकुमार नामक देवताओं की पूजा करे। एक वर्ष तक इस व्रत के अनुष्ठान से सुन्दर स्वरूप एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है और अन्त में व्रती पुरुष स्वर्गलोक का भागी होता है। कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को यम की पूजा करे। फिर एक वर्षतक प्रत्येक शुक्ल द्वितीया को उपवासपूर्वक व्रत रखे। ऐसा करनेवाला पुरुष स्वर्ग में जाता है, नरक में नहीं पड़ता ॥ १-२१/२ ॥’ अब ‘अशून्य शयन’ नामक व्रत बतलाता हूँ, जो स्त्रियों को अवैधव्य (सदा सुहाग) और पुरुषों को पत्नी-सुख आदि देने वाला है। श्रावण मास के कृष्णपक्ष को द्वितीया को इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिये। ( इस व्रत में भगवान् से इस प्रकार प्रार्थना की जाती है) ‘वक्षःस्थल में श्रीवत्सचिह्न धारण करने वाले श्रीकान्त ! आप लक्ष्मीजी के धाम और स्वामी हैं; अविनाशी एवं सनातन परमेश्वर हैं। आपकी कृपा से धर्म, अर्थ और काम प्रदान करने वाला मेरा गार्हस्थ्य आश्रम नष्ट न हो। मेरे घर के अग्निहोत्र की आग कभी न बुझे, गृहदेवता कभी अदृश्य न हों। मेरे पितर नाश से बचे रहें और मुझसे दाम्पत्य-भेद न हो। जैसे आप कभी लक्ष्मीजी से विलग नहीं होते, उसी प्रकार मेरा भी पत्नी के साथ का सम्बन्ध कभी टूटने या छूटने न पावे। वरदानी प्रभो! जैसे आपकी शय्या कभी लक्ष्मीजी से सूनी नहीं होती, मधुसूदन ! उसी प्रकार मेरी शय्या भी पत्नी से सूनी न हो।’ इस प्रकार व्रत आरम्भ करके एक वर्ष तक प्रतिमास की द्वितीया को श्रीलक्ष्मी और विष्णु का विधिवत् पूजन करे। शय्या और फल का दान भी करे। साथ ही प्रत्येक मास में उसी तिथि को चन्द्रमा के लिये मन्त्रोच्चारणपूर्वक अर्घ्य दे (अर्घ्य का मन्त्र) — गगनाङ्गणसन्दीप दुग्धाब्धिमथनोद्भव ॥ ०९ ॥ भाभासितादिगाभोग रामानुज नमोऽस्तु ते । ‘भगवान् चन्द्रदेव! आप गगन प्राङ्गण के दीपक हैं। क्षीरसागर के मन्थन से आपका आविर्भाव हुआ है। आप अपनी प्रभा से सम्पूर्ण दिमण्डल को प्रकाशित करते हैं। भगवती लक्ष्मी के छोटे भाई ! आपको नमस्कार है। तत्पश्चात् ‘ॐ श्रं श्रीधराय नमः ।’ – इस मन्त्र से सोमस्वरूप श्रीहरि का पूजन करे । ‘घं टं हं सं श्रियै नमः ।’ — इस मन्त्र से लक्ष्मीजी की तथा ‘दशरूपमहात्मने नमः ।’ — इस मन्त्र से श्रीविष्णु की पूजा करे। रात में घी से हवन करके ब्राह्मण को शय्या दान करे। उसके साथ दीप, अन्न से भरे हुए पात्र, छाता, जूता, आसन, जल से भरा कलश, श्रीहरि की प्रतिमा तथा पात्र भी ब्राह्मण को दे । जो इस प्रकार उक्त व्रत का पालन करता है, वह भोग और मोक्ष का भागी होता है ॥ ३-१२१/२ ॥ अब ‘कान्तिव्रत’ का वर्णन करता हूँ। इसका प्रारम्भ कार्तिक शुक्ला द्वितीया को करना चाहिये । दिन में उपवास और रात में भोजन करे। इसमें बलराम तथा भगवान् श्रीकृष्ण का पूजन करे। एक वर्षतक ऐसा करने से व्रती पुरुष कान्ति, आयु और आरोग्य आदि प्राप्त करता है ॥ १३-१४ ॥ अब मैं ‘विष्णुव्रत’ का वर्णन करूँगा, जो मनोवाञ्छित फल को देने वाला है। पौष मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया से आरम्भ करके लगातार चार दिनों तक इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। पहले दिन सरसों मिश्रित जल से स्नान का विधान है। दूसरे दिन काले तिल मिलाये हुए जल से स्नान बताया गया है। तीसरे दिन वचा या वच नामक ओषधि से युक्त जल के द्वारा तथा चौथे दिन सर्वौषधि मिश्रित जल के द्वारा स्नान करना चाहिये। मुरा (कपूर कचरी), वचा (वच), कुष्ठ ( कूठ ), शैलेय ( शिलाजीत या भूरिछरीला), दो प्रकार की हल्दी (गाँठ हल्दी और दारूहल्दी), कचूर, चम्पा और मोथा — यह ‘सर्वोषधि समुदाय’ कहा गया है। पहले दिन ‘श्रीकृष्णाय नमः ।’, दूसरे दिन ‘अच्युताय नमः ।’, तीसरे दिन ‘अनन्ताय नमः ।’ और चौथे दिन ‘हृषीकेशाय नमः ।’ — इस नाम–मन्त्र से क्रमशः भगवान् के चरण, नाभि, नेत्र एवं मस्तक पर पुष्प समर्पित करते हुए पूजन करना चाहिये । प्रतिदिन प्रदोषकाल में चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिये। पहले दिन के अर्घ्य में ‘शशिने नमः ।’, दूसरे दिन के अर्घ्य में ‘चन्द्राय नमः ।’, तीसरे दिन ‘शशाङ्काय नमः ।’ और चौथे दिन ‘इन्दवे नमः’ का उच्चारण करना चाहिये। रात में जबतक चन्द्रमा दिखायी देते हों, तभी तक मनुष्य को भोजन कर लेना चाहिये। व्रती पुरुष छः मास या एक साल तक इस व्रत का पालन करके सम्पूर्ण मनोवाञ्छित फल को प्राप्त कर लेता है। पूर्वकाल में राजाओं ने, स्त्रियों ने और देवता आदि ने भी इस व्रत का अनुष्ठान किया था ॥ १५-२० ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘द्वितीया-सम्बन्धी व्रत का वर्णन’ नामक एक सौ सतहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १७७ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe