June 29, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 195 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ पंचानबेवाँ अध्याय वार-सम्बन्धी व्रतों का वर्णन वारव्रतानि अग्निदेव कहते हैं — वसिष्ठ ! अब मैं भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले वार-सम्बन्धी व्रतों का वर्णन करता हूँ। जब रविवार को हस्त अथवा पुनर्वसु नक्षत्र का योग हो, तब पवित्र सर्वोषधिमिश्रित जल से स्नान करना चाहिये। इस प्रकार रविवार को श्राद्ध करने वाला सात जन्मों में रोग से पीड़ित नहीं होता। संक्रान्ति के दिन यदि रविवार हो, तो उसे पवित्र आदित्य हृदय’ माना गया है। उस दिन अथवा हस्तनक्षत्रयुक्त रविवार को एक वर्ष तक नक्तव्रत करके मनुष्य सब कुछ पा लेता है। चित्रानक्षत्रयुक्त सोमवार के सात व्रत करके मनुष्य सुख प्राप्त करता है। स्वातीनक्षत्र से युक्त मङ्गलवार का व्रत आरम्भ करे। इस प्रकार मङ्गलवार के सात नक्तव्रत करके मनुष्य दुःख-बाधाओं से छुटकारा पाता है। बुध सम्बन्धी व्रत में विशाखा नक्षत्रयुक्त बुधवार को ग्रहण करे। उससे आरम्भ करके बुधवार के सात नक्तव्रत करने वाला बुधग्रहजनित पीड़ा से मुक्त हो जाता है। अनुराधानक्षत्रयुक्त गुरुवार से आरम्भ करके सात नक्तव्रत करनेवाला बृहस्पति ग्रह की पीड़ा से, ज्येष्ठानक्षत्रयुक्त शुक्रवार को व्रत ग्रहण करके सात नक्तव्रत करने वाला शुक्रग्रह की पीड़ा से और मूलनक्षत्रयुक्त शनिवार से आरम्भ करके सात नक्तव्रत करने वाला शनिग्रह की पीड़ा से निवृत्त हो जाता है ॥ १-५ ॥’ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘वार सम्बन्धी व्रतों का वर्णन’ नामक एक सौ पंचानवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १९५ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe