अग्निपुराण – अध्याय 232
॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
दो सौ बत्तीसवाँ अध्याय
कौए, कुत्ते, गौ, घोड़े और हाथी आदि के द्वारा होनेवाले शुभाशुभ शकुनों का वर्णन
शकुनानि

पुष्कर कहते हैं — जिस मार्ग से बहुतेरे कौए शत्रु के नगर में प्रवेश करें, उसी मार्ग से घेरा डालने पर उस नगर के ऊपर अपना अधिकार प्राप्त होता है। यदि किसी सेना या समुदाय में बायीं ओर से भयभीत कौआ रोता हुआ प्रवेश करे तो वह आने वाले अपार भय की सूचना देता है। छाया (तम्बू, रावटी आदि), अङ्ग, वाहन, उपानह, छत्र और वस्त्र आदि के द्वारा कौए को कुचल डालने पर अपने लिये मृत्यु की सूचना मिलती है। उसकी पूजा करने पर अपनी भी पूजा होती है तथा अन्न आदि के द्वारा उसका इष्ट करने पर अपना भी शुभ होता है। यदि कौआ दरवाजे पर बारंबार आया- जाया करे तो वह उस घर के किसी परदेशी व्यक्ति के आने की सूचना देता है तथा यदि वह कोई लाल या जली हुई वस्तु मकान के ऊपर डाल देता है तो उससे आग लगने की सूचना मिलती है ॥ १-४ ॥

भृगुनन्दन ! यदि वह मनुष्य के आगे कोई लाल वस्तु डाल देता है तो उसके कैद होने की बात बतलाता है और यदि कोई पीले रंग का द्रव्य सामने गिराता है तो उससे सोने चाँदी की प्राप्ति सूचित होती है। सारांश यह कि वह जिस द्रव्य को अपने पास ला देता है, उसकी प्राप्ति और जिस द्रव्य को अपने यहाँ से उठा ले जाता है, उसकी हानि की ओर संकेत करता है। यदि वह अपने आगे कच्चा मांस लाकर डाल दे तो धन की, मिट्टी गिरावे तो पृथ्वी की और कोई रत्न डाल दे तो महान् साम्राज्य की प्राप्ति होती है। यदि यात्रा करनेवाले की अनुकूल दिशा (सामने) की ओर कौआ जाय तो वह कल्याणकारी और कार्य साधक होता है, परंतु यदि प्रतिकूल दिशा की ओर जाय तो उसे कार्य में बाधा डालनेवाला तथा भयंकर जानना चाहिये। यदि कौआ सामने काँव-काँव करता हुआ आ जाय तो वह यात्रा का विघातक होता है। कौए का वामभाग में होना शुभ माना गया है और दाहिने भाग में होने पर वह कार्य का नाश करता है । वामभाग में होकर कौआ यदि अनुकूल दिशा की ओर चले तो ‘श्रेष्ठ’ और दाहिने होकर अनुकूल दिशा की ओर चले तो ‘मध्यम’ माना जाता है; किंतु वामभाग में होकर यदि वह विपरीत दिशा की ओर जाय तो यात्रा का निषेध करता है। यात्राकाल में घर पर कौआ आ जाय तो वह अभीष्ट कार्य की सिद्धि सूचित करता है। यदि वह एक पैर उठाकर एक आँख से सूर्य की ओर देखे तो भय देने वाला होता है। यदि कौआ किसी वृक्ष के खोखले में बैठकर आवाज दे तो वह महान् अनर्थ का कारण है। ऊसर भूमि में बैठा हो तो भी अशुभ होता है, किंतु यदि वह कीचड़ में लिपटा हुआ हो तो उत्तम माना गया है। परशुरामजी ! जिसकी चोंच में मल आदि अपवित्र वस्तुएँ लगी हों, वह कौआ दीख जाय तो सभी कार्यों का साधक होता है। कौए की भाँति अन्य पक्षियों का भी फल जानना चाहिये ॥ ५-१३ ॥

यदि सेना की छावनी के दाहिने भाग में कुत्ते आ जायँ तो वे ब्राह्मणों के विनाश की सूचना देते हैं। इन्द्रध्वज के स्थान में हों तो राजा का और गोपुर (नगरद्वार) पर हों तो नगराधीश की मृत्यु सूचित करते हैं। घर के भीतर भूँकता हुआ कुत्ता आवे तो गृहस्वामी की मृत्यु का कारण होता है। वह जिसके बायें अङ्ग को सूँघता है, उसके कार्य की सिद्धि होती है। यदि दाहिने अङ्ग और बाय भुजा को सूँघे तो भय उपस्थित होता है। यात्री के सामने की ओर से आवे तो यात्रा में विघ्न डालनेवाला होता है । भृगुनन्दन ! यदि कुत्ता राह रोककर खड़ा हो तो मार्ग में चोरों का भय सूचित करता है; मुँह में हड्डी लिये हो तो उसे देखकर यात्रा करने पर कोई लाभ नहीं होता तथा रस्सी या चिथड़ा मुख में रखने वाला कुत्ता भी अशुभसूचक होता है। जिसके मुँह में जूता या मांस हो, ऐसा कुत्ता सामने हो तो शुभ होता है। यदि उसके मुँह में कोई अमाङ्गलिक वस्तु तथा केश आदि हो तो उससे अशुभ की सूचना मिलती है। कुत्ता जिसके आगे पेशाब करके चला जाता है, उसके ऊपर भय आता है; किन्तु मूत्र त्यागकर यदि वह किसी शुभ स्थान, शुभ वृक्ष तथा माङ्गलिक वस्तु के समीप चला जाय तो वह उस पुरुष के कार्य का साधक होता है। परशुरामजी ! कुत्ते की ही भाँति गीदड़ आदि भी समझने चाहिये ॥ १४-२० ॥

यदि गौएँ अकारण ही डकराने लगें तो समझना चाहिये कि स्वामी के ऊपर भय आनेवाला है। रात में उनके बोलने से चोरों का भय सूचित होता है और यदि वे विकृत स्वर में क्रन्दन करें तो मृत्यु की सूचना मिलती है। यदि रात में बैल गर्जना करे तो स्वामी का कल्याण होता है और साँड आवाज दे तो राजा को विजय प्रदान करता है। यदि अपनी दी हुई तथा अपने घर पर मौजूद रहनेवाली गौएँ अभक्ष्य भक्षण करें और अपने बछड़ों पर भी स्नेह करना छोड़ दें तो गर्भक्षय की सूचना देनेवाली मानी गयी हैं। पैरों से भूमि खोदनेवाली, दीन तथा भयभीत गौएँ भय लानेवाली होती हैं। जिनका शरीर भीगा हो, रोम-रोम प्रसन्नता से खिला हो और सींगों में मिट्टी लगी हुई हो, वे गौएँ शुभ होती हैं। विज्ञ पुरुष को भैंस आदि के सम्बन्ध में भी यही सब शकुन बताना चाहिये ॥ २१–२४१/२

जीन कसे हुए अपने घोड़े पर दूसरे का चढ़ना, उस घोड़े का जलमें बैठना और भूमि पर एक ही जगह चक्कर लगाना अनिष्ट का सूचक है। बिना किसी कारण के घोड़े का सो जाना विपत्ति में डालनेवाला होता है। यदि अकस्मात् जई और गुड़ की ओर से घोड़े को अरुचि हो जाय, उसके मुँह से खून गिरने लगे तथा उसका सारा बदन काँपने लगे तो ये सब अच्छे लक्षण नहीं हैं; इनसे अशुभ की सूचना मिलती है। यदि घोड़ा बगुलों, कबूतरों और सारिकाओं से खिलवाड़ करे तो मृत्यु का संदेश देता है। उसके नेत्रों से आँसू बहे तथा वह जीभ से अपना पैर चाटने लगे तो विनाश का सूचक होता है। यदि वह बायें टाप से धरती खोदे, बायीं करवट से सोये अथवा दिन में नींद ले तो शुभकारक नहीं माना जाता। जो घोड़ा एक बार मूत्र करनेवाला हो, अर्थात् जिसका मूत्र एक बार थोड़ा-सा निकलकर फिर रुक जाय तथा निद्रा के कारण जिसका मुँह मलिन हो रहा हो, वह भय उपस्थित करनेवाला होता है। यदि वह चढ़ने न दे अथवा चढ़ते समय उलटे घर में चला जाय या सवार की बायीं पसली का स्पर्श करने लगे तो वह यात्रा में विघ्न पड़ने की सूचना देता है। यदि शत्रु- योद्धा को देखकर हाँसने लगे और स्वामी के चरणों का स्पर्श करे तो वह विजय दिलानेवाला होता है ॥ २५-३१ ॥

यदि हाथी गाँव में मैथुन करे तो उस देश के लिये हानिकारक होता है। हथिनी गाँव में बच्चा दे या पागल हो जाय तो राजा के विनाश की सूचना देती है। यदि हाथी चढ़ने न दे, उलटे हथिसार में चला जाय या मद की धारा बहाने लगे तो वह राजा का घातक होता है। यदि दाहिने पैर को बायें पर रखे और सूँड़ से दाहिने दाँत का मार्जन करे तो वह शुभ होता है ॥ ३२-३४ ॥

अपना बैल, घोड़ा अथवा हाथी शत्रु की सेना में चला जाय तो अशुभ होता है। यदि थोड़ी ही दूर में बादल घिरकर अधिक वर्षा करे तो सेना का नाश होता है। यात्रा के समय अथवा युद्धकाल में ग्रह और नक्षत्र प्रतिकूल हों, सामने से हवा आ रही हो और छत्र आदि गिर जायें तो भय उपस्थित होता है। लड़नेवाले योद्धा हर्ष और उत्साह में भरे हों और ग्रह अनुकूल हों तो यह विजय का लक्षण है। यदि कौए और मांसाहारी जीव-जन्तु योद्धाओं का तिरस्कार करें तो मण्डल का नाश होता है। पूर्व, पश्चिम एवं ईशान दिशा प्रसन्न तथा शान्त हों तो प्रिय और शुभ फल की प्राप्ति करानेवाली होती हैं ॥ ३५-३८ ॥

॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘शकुन वर्णन’ नामक दो सौ बत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २३२ ॥

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