अन्न-पूर्णा देवी का सिद्ध मन्त्र

मन्त्रः-
“ॐ सत्त नाम का सभी पसारा, धरन गगन में जो वर तारा ।
मन की जाप जहाँ लग आखा, तहँ-तहँ सत्त नाम की राखा ।
अन्न-पूरना पास गई बैठाली, थुड़ी गई खुसाली ।
चिनत मनी कलप तराये, काम-धेनु को साथ लियाये ।
आया आप कुबेर भण्डारी, साथ लक्ष्मी आज्ञाकारी ।
सत गुरु पूरन किया सवारथ, विच आ बइठे पाँच पदारथ ।
राखा ब्रह्मा-विशुन-महेश-काली-भैरव-हनु-गनेस,
सिध चौरासी अरु नवनाथ बावन वीर जती चौसाठ ।
धाकन गमन पिरथवी का वासन, रहे अम्बोल न डोले आसन ।
राखा हुआ आप निरंकार, थुड़ी भाग गई समुन्दरो पार ।
अतुत भण्डार, अखुत अपार, खात-खरचत कुछ न होय न ऊना, देय देवाये दूना चौना ।
गुरु की झोली मेरे हाथ, गुरु वचनी बँधे पँच तात ।
बेअण्ट बेअण्ट भण्डार, जिनकी पैज रखी करतार ।
मन्तर पूरना जी का संपूरन भया ।
बाबा नानक जी का गुरु के चरन कमल को नमस्ते-नमस्ते-नमस्ते ।”

विधिः-
उपर्युक्त पञ्जाबी भाषा के सिद्ध मन्त्र को ११ बार प्रतिदिन जप करें । १ हजार जप हो जाने पर किसी प्रकार की कमी नहीं होती ।

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