October 22, 2015 | aspundir | Leave a comment अपराजिता – पूजा (निर्णयामृत ) – आश्विन शुक्ल दशमीको प्रस्थान करने के पहले अपराजिता का पूजन किया जाता है । उसके लिये अक्षतादि के अष्टदल पर मृत्तिका की मूर्ति स्थापन करके – ‘ॐ अपराजितायै नमः’ इससे अपराजिता का, ( उसके दक्षिण भागमें ) ‘ॐ क्रियाशक्त्यै नमः’ इससे जया का, ( उसके वाम भागमें ) ‘ॐ उमायै नमः’ इससे विजया का स्थापन करके आवाहनादि पूजन करे और ‘चारुणा मुखपद्मेन विचित्रकनकोज्ज्वला । जया देवी भवे भक्ता सर्वकामान् ददातु मे ॥ काञ्चनेन विचित्रेण केयूरेण विभूषिता । जयप्रदा महामाया शिवभावितमानसा ॥ विजया च महाभागा ददातु विजयं मम । हारेण सुविचित्रेण भास्वत्कनकमेखला । अपराजिता रुद्ररता करोतु विजयं मम ॥’ इनसे जया – विजया और अपराजिता की प्रार्थना करके हरिद्रा से रँगे हुए वस्त्रमें दूब और सरसों रखकर डोरा बनावे । फिर – ‘सदापराजिते यस्मात्त्वं लतासूत्तमा स्मृता । सर्वकामार्थसिद्धयर्थ तस्मात्त्वां धारयाम्यहम् ॥’ इस मन्त्नसे उसे अभिमन्त्नित करके – ‘जयदे वरदे देवि दशम्यामपराजिते । धारयामि भुजे दक्षे जयलाभाभिवृद्धये ॥’ से उक्त डोरेको दाहिने हाथमें धारण करे । Related