August 12, 2015 | Leave a comment आत्म-ज्योति-साधना श्रीमद्-भगवद्-गीता में व्यवहार और अध्यात्म के प्रत्येक पक्ष का वर्णन है। दैनन्दिन जीवन में गीता उपयोगी मार्ग-दर्शन करती है। साधना-क्षेत्र में गीता सहज ही अग्रसर करती है। मन्त्र-शास्त्र की दृष्टि से गीता का प्रत्येक श्लोक दिव्य मन्त्र है। साहित्य तथा तत्त्व-ज्ञान में गीता श्रेष्ठ है। यहाँ मुमुक्षु जनों के लिए अति गोपनीय साधना पहली बार प्रकाशित हो रही है। विधानः- ब्राह्म-मुहूर्त में (सूर्योदय से पहले) या सूर्योदय के बाद या रात्रि में- जैसी भी सुविधा हो- निश्चित समय पर और निश्चित स्थान पर पवित्र होकर बैठे। अपने सामने अग्नि-कुण्ड प्रज्वलित करे। फिर आचमन कर निम्न विनियोग पढ़कर जल छोड़े या हाथ जोड़े- विनियोगः- ॐ अस्य श्रीअग्नि-उपासना-कर्मणः श्रीगोपाल-कृष्ण ऋषिः। उष्णिक् छन्दः। श्रीब्रह्माग्नि-नारायणो देवता। आत्म-ज्योति-दर्शनार्थे जपे विनियोगः।। ऋष्यादि-न्यासः- श्रीगोपाल-कृष्ण ऋषये नमः शिरसि। उष्णिक् छन्दसे नमः मुखे। श्रीब्रह्माग्नि-नारायणो देवतायै नमः हृदि। आत्म-ज्योति-दर्शनार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे। ध्यानः- यज्ञ-नारायणं देवं, यज्ञ-ज्वाला-समुद्भवम्। चतुर्भुजं शान्त-मूर्तिं, नमामि सकलार्थदम्।। मन्त्रः- “असतो मा सद् गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।। स्वाहा।।” उक्त मन्त्र द्वारा प्रज्वलित अग्नि-कुण्ड में शुद्ध घृत की तीन आहुतियाँ देकर ‘श्रीमद्-भगवद्-गीता’ अध्याय ४ के निम्न श्लोक-मन्त्रों द्वारा चन्दन की घृताक्त समिधाओं से हवन करें- ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्। ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं, ब्रह्म-कर्म-समाधिना।। स्वाहा।।१ दैवमेवापरे यज्ञं, योगिनः पर्युपासते। ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं, यज्ञेनैवोपजुह्वति।। स्वाहा।।२ श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये, संयमाग्निषु जुह्वति। शब्दादीन् विषयानन्य-इन्द्रियाग्निषु जुह्वति।। स्वाहा।।३ सर्वाणीन्द्रिय-कर्माणि, प्राण-कर्माणि चापरे। आत्म-संयमो योगाग्नौ, जुह्वति ज्ञान-दीपिते।। स्वाहा।।४ द्रव्य-यज्ञास्तपो-यज्ञा, योग-यज्ञास्तथाऽपरे। स्वाध्याय-ज्ञान-यज्ञाश्च, यतयः संशित-व्रताः।। स्वाहा।।५ अपाने जुह्वति प्राणं, प्राणेऽपानं तथाऽपरे। प्राणापान-गती रुद्धवा, प्राणयाम-परायणाः।। स्वाहा।।६ अपरे नियताहाराः, प्राणान् प्राणेषु जुह्वति। सर्वेऽप्येते यज्ञ-विदो, यज्ञ-क्षपित-कल्मषः।। स्वाहा।।७ यज्ञ-शिष्टामृत-भुजो, यान्ति ब्रह्म सनातनम्। नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य, कुतोऽन्यः कुरु-सत्तम !।। स्वाहा।।८ एवं बहु-विधा यज्ञा, वितता ब्रह्मणो मुखे। कर्मजान् विद्धि तान् सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्षसे।। स्वाहा।।९ श्रेयान् द्रव्य-मयाद् यज्ञाज्ज्ञान-यज्ञः परन्तप ! सर्व कर्माखिलं पार्थ ! ज्ञाने परि-समाप्यते।। स्वाहा।।१० इसके बाद निम्न मन्त्र का १२ बार पाठ करे- “अग्ने ! नय सुपथा राये अस्मान्। विश्वानि दव वयुनानि विद्वान्।।” इस प्रकार अग्नि-नारायण की प्रार्थना करके अग्नि-देवता को पुष्प, गन्ध, अक्षत आदि दें। धूप, दीप जलाएँ। तीन चम्मच गो-घृत का नैवेद्य भी समर्पित करें। फिर सामने निरञ्जन दीप-ज्योति पर आधे घण्टे तक त्राटक करें। ज्योति हिलनी नहीं चाहिए, स्थिर होनी चाहिए। उक्त प्रकार छः मास तक साधना करें। इससे ‘आत्म-ज्योति’ के दर्शन सदा होते रहेंगे। Related