October 11, 2015 | 1 Comment ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ घटित चन्डी-विधानम् सम्पूर्ण कामनाओं की यथा-शीघ्र सिद्धि के लिए मैथिलों द्वारा कही हुई चण्डी-पाठ-घटित ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ के पाठ की विधि आचमन, प्राणायाम, संकल्प (देश-काल-निर्देश) के उपरान्त – ‘अमुक-प्रवरान्वित अमुक-गोत्रोत्पन्नामुक-शर्मणः अमुक-वेदान्तर्गत अमुक-शाखाध्यायी मम (यजमानस्य) शीघ्रं अमुक-दुस्तर-संकट-निवृत्त्यर्थं सप्तशती-माला-मन्त्रस्य क्रमेण प्रथमादि-त्रयोदशाध्यायान्ते क्रियमाण आपदुद्धारक-बटुक-भैरवाष्टोत्तर-शत-नाम-मात्रावर्तन-घटित-अमुक-संख्यकावर्तनमहं करिष्ये।’ उक्त प्रकार ‘संकल्प’ में योजना करे। इसके बाद पहले विघ्नों के निवारण के लिए विघ्नेश, स्वामी-कार्तिक, क्षेत्रपाल, दुर्गा, बटुकाद्यष्ट-भैरव, गौर्यादि षोडश मातृकाओं, ब्राह्म्यादि सप्त माताओं की पूजा कर उन्हें बलि प्रदान करे। तब ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ से युक्त सप्तशती का पाठ करे। पाठ के बाद होम, मार्जन, तर्पणादि करे। जो कर्म न हो सके, उसके लिए द्वि-गुणित जप करने से उस कर्म की पूर्ति हो जाती है। ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ के सप्तशती-पाठ में युक्त करने की चार विधियाँ ‘मैथिल’-क्रम द्वारा अनुभूत है – १॰ पहले एक बार ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ का पाठ करे। इसके बाद ‘शक्रादि-स्तुति’ का अर्थात् श्रीदुर्गा-सप्तशती के ‘प्रथम से चतुर्थ अध्याय का पाठ करे। तब ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ का फिर पाठ करे। इसके बाद श्रीदुर्गा-सप्तशती के शेष ‘नौ-अध्यायों का पाठ कर फिर ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ का पाठ करे। इस प्रकार पाठ करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। २॰ सप्तशती के प्रथम चरित के अन्त में, मध्यम चरित के अन्त में और उत्तम चरित के अन्त में ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ का एक-एक बार पाठ करे। ऐसा करने से सभी मानसिक कामनाएँ पूर्ण होती हैं। ३॰ सप्तशती के प्रत्येक अध्याय के अन्त में ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ का पाठ – महा-आपत्ति की निवृत्ति के लिए करे। ४॰ सप्तशती में ‘उवाच’ – मन्त्र सत्तावन (५७) हैं। प्रत्येक ‘उवाच’ – मन्त्र के अन्त में ‘आपदुद्धारक-बटुक-भैरव-स्तोत्र’ का पाठ महान आपत्ति के निवारण के लिए करे। श्रीबटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्र (क) ध्यान वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्। दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।। दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्। हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्।। अर्थात् भगवान् श्रीबटुक-भैरव बालक रुपी हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुँघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्जवल रुपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल और दण्ड धारण किए हुए हैं। भगवान श्रीबटुक-भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है। (ख) मानस-पूजन उक्त प्रकार ‘ध्यान’ करने के बाद श्रीबटुक-भैरव का मानसिक पूजन करे- ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः। ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः। ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः। ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः। (ग) मूल-स्तोत्र ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः। क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।१ श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्। रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।२ कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः। त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।३ शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः। अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी-पतिः।।४ धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्। नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्।।५ कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः। त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्।।६ त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय। बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग-वर-धारकः।।७ भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः। धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु-लोचनः।।८ प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः। अष्ट-मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान-चक्षुस्तपो-मयः।।९ अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः। भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः।।१० कपाल-धारी मुण्डी च, नाग-यज्ञोपवीत-वान्। जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा।।११ शुद्द-नीलाञ्जन-प्रख्य-देहः मुण्ड-विभूषणः। बलि-भुग्बलि-भुङ्-नाथो, बालोबाल-पराक्रम।।१२ सर्वापत्-तारणो दुर्गो, दुष्ट-भूत-निषेवितः। कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी-वश-कृद्वशी।।१३ जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया-मन्त्रौषधी-मयः। सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ-विष्णुरितीव हि।।१४ ।।फल-श्रुति।। अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः। मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्।।१५ य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्। न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा।।१६ न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्। पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः।।१७ मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये। औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये।।१८ बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः। सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्।।१९ ।।क्षमा-प्रार्थना।। आवाहनङ न जानामि, न जानामि विसर्जनम्। पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर।। मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर। मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे।। श्री बटुक-बलि-मन्त्रः- घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र का उच्चारण करें – १॰ “ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः।” २॰ “ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ ।।” ३॰ “ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः। रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः।।” Related