January 15, 2016 | aspundir | Leave a comment इत्र-मोहिनी मन्त्रः- “काला भैंरु, बावन वीर, पर-त्रिया से कर दे सीर । पर-त्रिया छ: अगन कँवारी, पर जोबन में लागे प्यारी । चम्पा के फुल जू आवे बास, घर का धणी की छोड़ दे आस । कपड़ा से बाद भरावे, अङ्ग से अङ्ग मिलावे । तीजी घड़ी-तीजी शाद । अङ्ग से अङ्ग न मिलावे, तो माता कङ्काली की सेज पे काला भैंरू पग धरे । शब्द सांचा-पिण्ड काचा । फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।” विधि — उक्त मन्त्र उग्र प्रकृति का है । वशीकरण में तत्काल कार्य करता है । परोपकार व धर्म के मार्ग हेतु इसकी साधना साहसी व्यक्ति ही करे । कामान्ध व्यक्ति दुरुपयोग करने का साहस न करे, दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा । श्मशान में स्थित भैरव-मन्दिर में या श्मशान में चिता के पास बैठकर, रक्षा विधान रचकर, मध्य रावि से श्रेष्ठ मुहूर्त में साधना करे । ९ दिनों तक ३०० जप करे । पूजा-सामग्री : १ हिना इत्र की शीशी, जिसे नित्य अभिमन्त्रित किया जाएगा, २ चमेली की माला ३ पञ्च-मेवा, ४ बाटी, ५ लौंग जोड़ा, ६ बताशा, ७ शराब, ८ धूप, ९ कलेजी बकरे की । यह सामग्री भैरव देव के लिए नित्य नौ दिनों तक अर्पित की जाएगी । ‘हिना इत्र’ सिद्ध होने के बाद सत्य-मार्ग या कार्य के लिए थोड़ा- सा इत्र रुई में लगाकर साध्या स्त्री के शरीर पर कही भी सावधानी से लगा दे । Related