उड़िया विलंकारामायण

उड़िया भाषा में एक ऐसी रामायण लिखी गई, जिसकी विषयवस्तु वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण एवं रामचरितमानस से सर्वथा भिन्न है । इस ग्रन्थ का नाम है विलंकारामायण । इसके रचयिता हैं उड़िया के आदिकवि शारलादास । ऐसा माना जाता है कि उन्होंने इसकी रचना जगन्नाथपुरी के राजा गजपति गौड़ेश्व कपिलेन्द्रदेव के शासनकाल (1452-1479 ई॰) में की थी । दो खण्डों पूर्वखण्ड एवं उत्तरखण्ड में विभक्त यह ग्रन्थ शिव-पार्वती संवाद परक है । इस रामायण में श्रीराम के बजाय शक्ति-स्वरुपिणी देवी सीता की महिमा है ।

कथा
श्रीराम लंका विजय के पश्चात् अयोध्या लौटे, उनके राज्याभिषेक की तैयारियाँ हो रही थीं । उधर, लंकाधिपति दशानन रावण के वध के बाद भी देवराज इन्द्र सहित सभी देवता रावण से भी कई गुना अधिक शक्तिशाली दैत्य लक्षशिरा के पुत्र विलंकाधिपति सहस्रशिरा रावण के अत्याचारों को लेकर चिन्तित थे । वे सोच रहे थे कि विलंकाधिपति को भी श्रीराम ही मार सकते हैं और यदि उनका राज्याभिषेक हो गया और वे अयोध्या के राजपाट में लग गए तो विलंकाधिपति से मुक्ति नहीं दिला पाएंगे । यह समस्या लेकर सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए और उनसे आग्रह किया कि आप ही कोई उपाय करें । इस पर ब्रह्मा जी ने खल और दुर्बल को बुलाकर आदेश दिया कि तुम दोनों अयोध्या जाओ और श्रीराम और सीता जी के कण्ठ (वाणी) पर बैठो, ताकि श्रीराम में आत्मप्रशंसा का भाव आ जाए और सीता जी उनका उपहास कर विलंकाधिपति के वध के लिए प्रेरित करे ।
खल और दुर्बल अयोध्या पहुँचे और श्रीराम और सीता जी के कण्ठ पर बैठ गए । उस समय सभा चल रही थी, जिसमें श्रीराम ने रावण वध सहित अन्य वृत्तान्त सुनाते हुए अपने पराक्रम का बखान शुरु कर दिया । तभी सीता जी बोल पड़ीं, ‘आपने रावण को कहाँ मारा ? वह तो मेरी शक्ति से मारा गया । क्यों व्यर्थ ही अपनी प्रशंसा कर रहे हो ? हे रघुश्रेष्ठ ! यदि ऐसा ही है तो आप विलंका के सहस्रशिर रावण का वध करें ।”
सीता जी के ऐसे वचन सुनकर श्रीराम अकेले ही तुरन्त विलंका के लिए रवाना हो गए ।
इस बीच, हनूमान् जी को श्रीराम के अकेले ही विलंका जाने की सूचना मिली तो वे भी विलंका पहुँच गए । इसके बाद विलंकेश्वर से श्रीराम एवं हनूमान् जी का भयंकर युद्ध प्रारम्भ हुआ । सहस्रशिर रावण किसी भी तरह से परास्त नहीं हो पा रहा था । इस पर देवताओं ने श्रीराम को बताया कि शक्ति स्वरुपा सीता जी आएँगी, तभी विलंकेश्वर परास्त होगा, तब श्रीराम ने हनूमान् जी को अयोध्या भेज सीता जी को बुलवाया । सीता जी ने अपनी मोहिनी शक्ति से सहस्रशिरा को मोहित किया, तब श्रीराम ने उसका वध कर दिया ।

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