September 12, 2015 | aspundir | Leave a comment ऋण-हरण श्री गणेश-मन्त्र प्रयोग यह धन-दायी प्रयोग है। यदि प्रयोग नियमित करना हो तो साधक अपने द्वारा निर्धारित वस्त्र में कर सकता है किन्तु, यदि प्रयोग पर्व विशेष मात्र में करना हो, तो पीले रंग के आसन पर पीले वस्त्र धारण कर पीले रंग की माला या पीले सूत में बनी स्फटिक की माला से करे। भगवान् गणेश की पूजा में ‘दूर्वा-अंकुर’ चढ़ाए। यदि हवन करना हो, तो ‘लाक्षा’ एवं ‘दूर्वा’ से हवन करे। विनियोग, न्यास, ध्यान कर आवाहन और पूजन करे। ‘पूजन’ के पश्चात् ‘कवच’– पाठ कर ‘स्तोत्र’ का पाठ करे। विनियोगः- ॐ अस्य श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-मन्त्रस्य सदा-शिव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीऋण-हर्ता गणपति देवता, ग्लौं बीजं, गं शक्तिः, गों कीलकं, मम सकल-ऋण-नाशार्थे जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- सदा-शिव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्रीऋण-हर्ता गणपति देवतायै नमः हृदि, ग्लौं बीजाय नमः गुह्ये, गं शक्तये नमः पादयो, गों कीलकाय नमः नाभौ, मम सकल-ऋण-नाशार्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ। कर-न्यासः- ॐ गणेश अंगुष्ठाभ्यां नमः, ऋण छिन्धि तर्जनीभ्यां नमः, वरेण्यं मध्यमाभ्यां नमः, हुं अनामिकाभ्यां नमः, नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः, फट् कर-तल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः। षडंग-न्यासः- ॐ गणेश हृदयाय नमः, ऋण छिन्धि शिरसे स्वाहा, वरेण्यं शिखायै वषट्, हुं कवचाय हुम्, नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्, फट् अस्त्राय फट्। ध्यानः- ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं, लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्। ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं, सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम्।। ‘आवाहन’ आदि कर पञ्चोपचारों से अथवा ‘मानसिक पूजन’ करे। ।।कवच-पाठ।। ॐ आमोदश्च शिरः पातु, प्रमोदश्च शिखोपरि, सम्मोदो भ्रू-युगे पातु, भ्रू-मध्ये च गणाधीपः। गण-क्रीडश्चक्षुर्युगं, नासायां गण-नायकः, जिह्वायां सुमुखः पातु, ग्रीवायां दुर्म्मुखः।। विघ्नेशो हृदये पातु, बाहु-युग्मे सदा मम, विघ्न-कर्त्ता च उदरे, विघ्न-हर्त्ता च लिंगके। गज-वक्त्रो कटि-देशे, एक-दन्तो नितम्बके, लम्बोदरः सदा पातु, गुह्य-देशे ममारुणः।। व्याल-यज्ञोपवीती मां, पातु पाद-युगे सदा, जापकः सर्वदा पातु, जानु-जंघे गणाधिपः। हरिद्राः सर्वदा पातु, सर्वांगे गण-नायकः।। ।।स्तोत्र-पाठ।। सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक्, पूजितः फल-सिद्धये। सदैव पार्वती-पुत्रः, ऋण-नाशं करोतु मे।।१ त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं-शम्भुना सम्यगर्चितः। हिरण्य-कश्यप्वादीनां, वधार्थे विष्णुनार्चितः।।२ महिषस्य वधे देव्या, गण-नाथः प्रपूजितः। तारकस्य वधात् पूर्वं, कुमारेण प्रपुजितः।।३ भास्करेण गणेशो हि, पूजितश्छवि-सिद्धये। शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं, पूजितो गण-नायकः। पालनाय च तपसां, विश्वामित्रेण पूजितः।।४ ।।फल-श्रुति।। इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं, तीव्र-दारिद्र्य-नाशनम्, एक-वारं पठेन्नित्यं, वर्षमेकं समाहितः। दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा, कुबेर-समतां व्रजेत्।। मन्त्रः- “ॐ गणेश ! ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्” (१५ अक्षर) उक्त मन्त्र का अन्त में कम-से-कम २१ बार ‘जप करे। २१,००० ‘जप’ से इसका ‘पुरश्चरण’ होता है। वर्ष भर ‘स्तोत्र’ पढ़ने से दारिद्र्य-नाश होता है तथा लक्ष्मी-प्राप्ति होती है। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe