॥ अथ कामकलाकालि पूजाऽर्चा विधानम् ॥

पूर्वोक्त ध्यान मन्त्रों से देवी का आवाहन कर षोडशोपचार से पूजन कर बलि प्रदान करें ।
आवाहन –
ॐ ह्रीं क्लीं आं कामकलाकालि देवि आगच्छ आगच्छ तिष्ठ तिष्ठ पूजां गृहाण गृहाण स्वाहा ।
आवाहन कर पुष्पांजलि प्रदान करें –
एष पुष्पाञ्जलिः क्लीं कामकलाकाल्यै नमः ।
अर्घ्यादि प्रदान करें –
ॐ आं हूं ह्रीं स्फ्रों श्मशानवासिन्यै कामकलाकाल्यै एषोऽर्घो नमः ।


अन्य उपचार कर अनङ्ग गंधादि दान करें –
ॐ ऐं हौं श्रीं हूं क्लीं ठः ह्रीं आं रतिप्रियायै कामकलाकाल्यै एष अनङ्गगन्धः नमः ।
स्वयम्भुकुसुमार्पण मन्त्रः –
ॐ ह्रीं क्लूं कामकलाकाल्यै हूं आं भगमालिन्यै ऐं स्त्रीं भगप्रियायै ठः श्री मदनातुरायै इदं स्वयंभूकुसुमं नमः ।
(यहां अनङ्गगंध दान का अर्थ कन्या के प्रथम दिन के रज से है । इसी तरह पुरुष के बिन्दु अर्थ स्वयम्भुकुसुम कहा गया है।)
अष्टादशवार्षिक्यास्ततो न्यूनवयस्काया युवत्या विवाहिताऽविवाहितासाधारण्या ऋतुमत्याः प्रथमदिन संभवं रज: अनङ्गगंधतयेह अभिमताम् ॥
पूजायां बल्यर्पणस्य मन्त्र :-
ॐ क्लीं क्लीं क्लीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं हूं ह्रां ह्रीं ह्रूं भगप्रिये भगमालिनि महाबलिं गृह्ण गृह्ण भक्षय भक्षय मम शत्रून् नाशय नाशय उच्चाटय उच्चाटय हन हन त्रुट त्रुट छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय मारय मारय द्रावय द्रावय ह्रीं स्वाहा ।
भोजने बल्यर्पण मन्त्र :-
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रं ह्रं क्षौं क्षौं स्फ्रों स्फ्रों आं आं क्लीं क्लीं कामकलाकालि महाकामातुरे महाकालप्रिये मयानिष्टं निवारय निवारय शत्रून् स्तंभय स्तंभय मारय मारय दम दम मर्दय मर्दय शोषय शोषय इमं बलिं गृह्ण गृह्ण खादय खादय हूँ स्वाहा ।।

॥ अथ यंत्रावरण पूजनम् ॥
वज्रदल में पद्म उल्टा बनता है अर्थात् पद्म के पत्रों का मुंह अन्दर की ओर करके बनता है । पूजा यंत्र हेतु एक के ऊपर एक करके ३ त्रिकोण बनाये, उनके ऊपर अष्टदल बनाये उसके बाद अष्टवज्रदल पश्चात् चार द्वार युक्त भूपूर बनाये । यंत्रोद्धार इस प्रकार है –


भूपुरे वसुवज्राढ्ये पद्ममष्ट दलान्वितम् ।
केसरणि प्रकल्प्यानि तत्रान्तश्चापि कर्णिका ॥
कर्णिकान्तस्त्रिकोणस्य त्रितयं पृथगेव हि ।
वहिस्त्रिकोण कोणेषु लिखेद् बीजत्रयं शुभम् ॥
मायाबीजं तु वामे स्यात् क्रोधबीजं च दक्षिणे ।
अधः पाशं विनिर्दिश्य कन्दर्पणं तु मध्यतः ॥
तदन्तः स्थापिनी देवी तत्र सर्वं प्रतिष्ठितम् ।
एतद् यंत्रं महादेवि सर्वकाम फलप्रदम् ॥

अर्थात् बाहरी त्रिकोण के वामभाग में ‘‘ह्रीं” दक्षिण कोण में “हूं” नीचे के कोण में “आं” एवं मध्य में ‘‘क्लीं” लिखें । यंत्र को शुद्धकर दक्षिण कालिका २२ अक्षरवत् नव पीठ देवियों का पूजन करें । मूलमंत्र व ध्यान युक्त देवी का आवाहन करे ।
कल्पान्तकारिणीं काली महारौरव रूपिणीम् ।
महाभीमां दुर्निरीक्ष्यां सेन्द्रैरपि सुरासुरैः ॥
शत्रुपक्ष क्षयकरीं दैत्यदानव सूदनीम् ।
चिन्तये दीदृशीं देवीं काली कामकलाऽभिधाम् ॥

प्रथमावरणार्चनम् :-  गुरु मण्डल का पूजन करे । पश्चात् क्लां, क्लीं, क्लूं, क्लैं, क्लौं, क्लः से हृदय, शिर, शिखा, कवच एवं अस्त्रशक्ति का पूजन यंत्र में मध्यभाग में करे ।
देवि से यंत्रार्चन की आज्ञा मांगे । दिव्यौघादि गुरु संबंध में काली कुल या गुह्यकाली में उल्लिखित दिव्यौघ का पूजन करें । मध्य बिन्दु में देवि का पूजन करें ।
द्वितीयावरणार्चनम् :- (बाहरी त्रिकोण) कोणों के बाहर – ॐ संहारिण्यै नमः । ॐ भीषणायै नमः । ॐ मोहिन्यै नमः । (कोणों के अन्दर) ॐ कुरुकुल्लायै नमः । ॐ कपालिन्यै नमः । ॐ विप्रचित्तायै नमः ।
तृतीयावरणार्चनम् :-  (मध्य त्रिकोण में) कोणों के बाहर – ॐ उग्रायै नमः । ॐ उग्रप्रभायै नमः । ॐ दीप्तायै नमः । (कोणों के अन्दर) ॐ नीलायै नमः । ॐ घनायै नमः । ॐ बलाकायै नमः ।
चतुर्थावरणार्चनम् :- (अन्तः त्रिकोणे) प्रत्येक कोण में ३-३ देवियों का पूजन करें (वामकोणे) – ॐ ब्राह्यै नमः । ॐ नारायण्यै नमः । ॐ माहेश्वर्यै नमः । (दक्षिणकोणे) ॐ चामुण्डायै नमः । ॐ कौमार्यै नमः । ॐ अपराजितायै नमः । (अध: कोणे) ॐ वाराह्ये नमः । ॐ नारसिंह्यै नमः । ॐ इन्द्राण्यै नमः ।
पंचमावरणार्चनम् :-  (अष्टदले केसरेषु) – ॐ असिताङ्ग भैरवाय नमः । ॐ रुरु भैरवाय नमः । ॐ चण्ड भैरवाय नमः । ॐ उन्मत्त भैरवाय नमः । ॐ क्रोध भैरवाय नमः । ॐ कपाली भैरवाय नमः । ॐ भीषण भैरवाय नमः । ॐ संम्मोहन भैरवाय नमः ।
षष्ठमावरणार्चनम् :- (अष्टदल मध्ये) अष्ट क्षेत्रपाल का पूजन करें – ॐ एकपादाय नमः । ॐ विरूपाक्षाय नमः । ॐ भीमाय नमः । ॐ सङ्कर्षणाय नमः । ॐ चण्डघण्टाय नमः । ॐ मेघनादाय नमः । ॐ वेगमालाय नमः । ॐ प्रकम्पनाय नमः ।
सप्तमावरणार्चनम् :– (अष्टदले कर्णिकायां) अष्टयोगिनी पूजन करें – ॐ उल्कामुख्यै नमः । ॐ कौटराक्ष्यै नमः । ॐ विद्युजिह्वायै नमः । ॐ करालिन्यै नमः । ॐ वज्रोदर्यै नमः । ॐ तापिन्यै नमः । ॐ ज्वालायै नमः । ॐ जालन्धर्यै नमः ।
अष्टमावरणार्चनम् :- (दशसु दिक्षु) यहां महाकाल संहिता कामकलाखण्ड में रुद्रादिलोकपालों के अलावा अन्य देवताओं के नाम नहीं दिये हैं । परन्तु गुह्यकाली में इन्द्रादि लोकपाल, दिग्गज, आदित्य, पितर, नाग, यक्षादि का पूजन दिया गया है ।
पश्चात् पुष्पाञ्जलि प्रदान करे ।
ॐ अभीष्ट सिद्धिं मे देही शरणगत वत्सले ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं अमुकावरणार्चनम् ।।

(लोकपालस्तत एवावगन्तव्यस्तत्र चादित्याः पितरः दिङ्नागा: यक्षाश्च पूर्व दक्षिण पश्चिमोत्तराशाधिपाः सिद्धाः यातुधानाः साध्या रुद्राश्चाग्नेय नैऋत्यवायव्यैशान विदिशा विदिशार्माधिपाः । उर्ध्वदिशः क्षेत्रपालाः अधोदिशश्च मातर अधिष्ठानं कुर्वन्ति । एत एव लोकपाला इति ध्येयम्)
बिन्दु पूजनम् – त्रिकोण मध्य में भैरव सहित मुख्य देवता का मूल मन्त्र सहित पूजन करें ।
कामकलाकाली पूजा अनन्तर गणेश, सूर्य, विष्णु एवं शिव की पूजा करें ।
पूजा कर बलि प्रदान करें ।

॥ मन्त्र पुरश्चरण विधि ॥
साधक भूमि शुद्धि करके भूमि का खनन कर नृमुण्ड स्थापित करें ।
मन्त्र :- ॐ हूं ह्रीं आं क्लीं स्फ्रों सिद्धिं देहि देहि स्वाहा ।
उस पर आसन बिछाकर नरास्थि माला से जप करें ।
पात्रा सादन करें। तदनन्तर तिरस्करणी दुर्गा का पूजन करें ।
मन्त्र :- ऐं ऐं ऐं ऐं श्रीं ह्रीं हूं क्लीं स्त्रीं फ्रें फ्रें खफ्रक्षूं खफ्रक्षैं फ्रखभ्रूं फ्रखभ्रीं फ्रम्रग्लूं रकक्ष्रैं रकक्ष्रौं तिरस्करिणि सकलजनवाग्वादिनि सकलपशुजनवाक् चक्षुः श्रोत्र घ्राण जिह्वा वचस्तिरस्कारं कुरु कुरु फट् फट् ।
सुन्दरी पूजन करें, मण्डल की रचना करें । शिवा बलि प्रदान करें ।
कामकला गायत्री मन्त्र का जप करें ।
ॐ अनङ्गाकुलायै विद्महे मदनातुरायै धीमहि तन्नः कामकलाकाली प्रचोदयात् ।

॥ अथ शक्त्यार्चनम् ॥
शक्ति को सुगंधित द्रव्यों से स्नान करायें –
ॐ ह्रीं क्लीं भगवति महामाये अनङ्गवेग साहसिनी सर्वजन मनोहारिणि सर्ववशंकरि मोदय मोदय प्रमोदय प्रमोदय एह्येहि आगच्छ आगच्छ कामकलाकालि सान्निध्यं कुरु कुरु हूं हूं फट् स्वाहा ।
वस्त्र अर्पण करें –
ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं स्त्रीं स्त्रीं त्रैलोक्यार्षिणि वस्त्रं गृहण गृहण फट् स्वाहा ।
कज्जल अर्पण करें –
ॐ हूं महाघोरतरे फेत्कारराविणि महामांसप्रिये हिलि हिलि मिलि मिलि कज्जलं गृहण गृहण ठः ठः ।
सिन्दूर अर्पण करें –
ॐ आं स्त्रीं क्लीं ह्रीं हूं श्रीं सर्वभूतपिशाच राक्षसान् ग्रस ग्रस मम जाड्यं छेदय छेदय स्फ्रों स्फ्रों स्फ्रों स्फ्रों हौं हौं मम शत्रून् दह दह उच्छादय उच्छादय स्तंभय स्तंभय विध्वंसय विध्वंसय सर्वग्रहेभ्यः शान्तिं कुरु कुरु रक्षा कुरु कुरु ऐं ऐं ऐं फट् ठः ठः ।
अमलक्तकार्पण मन्त्र –
क्लीं क्लीं नवकोटि योगिनी परिवृतायै हूं हूं कामकलाकाल्यै अनङ्गवेगमालाकुलायै ह्रीं ह्रीं इवयम्भूकुसुमप्रियायै रममलक्तं ह्रीं ह्रीं हौं हौं सुवासिन्यै निवेदयामि नमः स्वाहा ।
पूजागृहे मण्डल रचना कुर्यात् – गोमय से लेपन कर भूमि शुद्धि करें । आठों दिशाओं में अलग रंग के वृत्ताकार मण्डल बनायें । पूर्व में श्वेत, अग्निकोण में लाल, दक्षिण में कृष्ण, नैऋत्य में पीत वर्ण, पश्चिम में पाटल वर्ण, वायव्य में हरित, उत्तर में पिङ्ग, ईशान में धूमल वर्ण के वृत्त बनायें ।
चारों दिशाओं में ३-३ तथा चारों कोणों में २-२ एवं मध्य में एक वृत्त मण्डल बनायें । पश्चात भूपुर बनायें । इस तरह कुल २१ वृत्त बनाकर मध्य में त्रिकोण, षट्कोण या नवकोण से देवी यन्त्र बनायें ।
भूमि शोधन मन्त्र –
ॐ ओं ओं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं क्रों क्षं ग्लूं क्ष्ल्रौं क्लूं रच्रां, श्रीं सौः ज्रौं क्रैं ब्लूं ठ्रीं छ्रीं क्रीं क्लीं क्रौं पलक्रौं प्रीं ख्रौं क्लीं श्रीं क्रूं हक्लह्रवडकखऐं कसवहलमऔं व्रकम्लब्लक्लऊं क्ष्लह्रमव्य्रऊं लक्षमहजरक्रव्य्रऊं श्रीं म्रैं क्ष्रूं वीं ख्रैं ज्रं य्लैं एह्येहि भगवति कामकलाकालि सर्वशक्तिं समन्विते प्रसन्ना शक्तिभ्यां सामरस्यं कुरु कुरु मम पूजा गृहण गृहण शत्रून् हन हन मर्दय मर्दय पातय पातय राज्यं मे देहि देहि दापय दापय फ्रें फ्रें फ्रें फ्रें फ्रें फ्रें फ्रें फ्रें फ्रें छ्रीं छ्रीं छ्रीं छ्रीं छ्रीं छ्रीं छ्रीं छ्रीं छ्रीं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं फट् फट् नमः स्वाहाः ।
पीठ पर सिन्दूर से यन्त्र लेखन करें –
ॐ फ्रें हसखफ्रें छ्रीं फ्रों स्फ्रों ब्रीं द्रैं भ्रूं क्रों फट् फट् फट् फट् कामकलाकालि घोररावे विकटदंष्ट्रे कालि कपालि नररुधिरवसा मांस भोजनपप्रिये भगप्रिये भगाङ्कुशे भगमालिनी भगोन्मादिनि भगान्तरे इहागच्छ आगच्छ सन्निधिं कुरु कुरु ओं फ्रें सिद्धिकरालि ह्रीं छ्रीं हूं स्त्रीं फ्रें नमः स्वाहा क्लीं क्रीं हूं क्रों स्क्रों कामकलाकालि स्फ्रों क्रों हूं क्रीं क्लीं स्वाहा फ्रें खफ्रें हसखफ्रें हूं स्त्रीं छ्रीं ओं ओं ओं ओं ओं फट् नमः स्वाहा ।
सुन्दरी को मण्डल पर उपवेशन हेतु आवाहन करें –
हूं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं उपविश उपविश सुसन्निधिं कुरु कुरु स्वाहा ।
पश्चात् शक्ति के वस्त्र विमोचन करें –
ॐ हौं सफहलक्षूं फहलक्षीं हभ्रीं सौः खफ्रींरढ़्रीं प्रीं क्रैं जूं क्रौं हसखफ्रें सहक्लह्रीं क्रीं क्लूं क्षौं क्लीं श्रीं ह्रीं हसखफ्रें नमः स्वाहा ।
पश्चात् निर्वसना शक्ति को बिठाकर उसके अङ्क में योनि प्रदेश समीप तीर्थकलश स्थापित करें । एवं कुल परंपरानुसार पात्रा सादन कर अर्चन करें ।
ओं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः क्रों आं हूं स्फ्रों क्षूं क्रूं ह्रः क्रूं भ्रां स्हें ध्रीं ह्भ्रीं श्रीं जय जय भगवति कामकलाकालि सर्वेश्वरि इहागत्य चिरं तिष्ठ तिष्ठ यावत् पूजां करोम्यहम् फ्रें फ्रें फ्रें छ्रीं छ्रीं छ्रीं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं फट् फट् फट् स्वाहा ।
मातृमुख में कामाक्षाकाली व पितृमुख में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पूजन करें । एवं विपरीत रति से कामकला को प्रसन्न करें ।

॥ अथ शिवाबलि प्रयोगः ॥
शिवाबलि से साधक का सर्वतोमुखी कल्याण होता है । शिवाबलि श्मशान में या चतुष्पथ में या जहाँ शिवाओं आने की संभावना हो वहां दी जाती हैं । बलि के लिये चार प्रकार के अन्न प्रस्तुत करे । १. खीर (पायस) २. अपूप (पुआ) ३. यावश ४. मोदक युक्त शष्कुली । मस्त्य मांस के व्यञ्जन भी भिन्न भिन्न पात्रों में रखें । बलिद्रव्य ‘‘आसव” लेकर बलि स्थान पर जाये । श्मशान के वस्त्र का आसन ग्रहण कर उत्तराभिमुख होकर बैठे ।
देवीं श्री दक्षिणेकालि सृष्टि स्थित्यन्तकारिणि ।
अनुज्ञां देहि मे देवि करिष्येऽहं शिवाबलिम् ॥

से हाथ जोड़कर ‘‘उल्कामुखी” घोररूपा शिवा देवी का आवाहन करे ।
पश्चात् शिवा के आने की प्रतिक्षा करे । शिवा आ जावे तो पूजन पूर्वक ‘‘शिवारूपी काली” की स्तुति करे ।
शिवा आवाहन मन्त्र –
१॰ ” ॐ ऐं ह्रीं हूं हौं क्लीं लं आं ईं औं औं कामकलाकालि घोररावे महाकपालि विकटदंष्ट्रे संमोहिनि शोषणि करालवदने मदनोन्मादिनि ज्वालामालिनि शिवारूपिणि भगवति आगच्छ आगच्छ मम सिद्धि देहि देहि मां रक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं ह्रूं क्षां क्षीं क्षूं क्षौं हूं हूं फट् फट् स्वाहा । अथवा
२॰ “ॐ ऐं ह्रीं हूं हौं क्लीं स्फ्रों ब्लां ब्लीं ब्लूं ब्लैं ब्लौं श्रीं कामकलाकालि घोररावे महाकपालि विकट दंष्ट्रे संमोहिनि शोषिणि करालवदने मदनोन्मादिनि ज्वालामालिनि शिवारूपिणि भगवति आगच्छ आगच्छ मम सिद्धिं देहि देहि मां रक्ष रक्ष ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं क्षां क्षीं क्षूं क्षौं हूं हूं फट् फट् स्वाहा ।
इस मन्त्र का ३ बार पठन करें।
शिवारूप धरे देवि कालि कालि नमोस्तु ते ।
उल्कामुखी ललज्जिह्व घोररूपे शृगालिनि ॥
श्मशानवासिनि प्रेते शवमांसप्रियेऽनद्ये ।
अरण्यचारिणि शिवे फेरोजम्बुक रूपिणि ॥
नमोऽस्तु ते महामाये जगत् तारिणि कालिके ।
मातंगी कुक्कुटे रौद्रे कालि कालि नमोऽस्तु ते ॥
सर्वसिद्धि प्रदे देवि भयङ्करि भयापहे ।
प्रसन्ना भव देवेशि मम भक्तस्य कालिके ॥
संसारतारिणि जये जय सर्वशुभङ्करि ।
विस्रस्तचिकुरे चण्डे चामुण्डे मुण्डमालिनि ॥
संसारकारिणि जये सर्वसिद्धि प्रयच्छ मे ।
दुर्गे किराति शबरि प्रेतासनगते शिवे ॥
अनुग्रहं कुरु सदा कृपया मां विलोकय ।
राज्यं प्रदेहि विकटे वित्तमायुस्सुतान् स्त्रियम् ॥
शिवाबलि विधानेन प्रसन्ना भव शाङ्करि ।
नमस्तेऽस्तु नमस्तेऽस्तु नमस्तेऽस्तु नमो नमः ॥

शिवारूप को धारण करने वाली कामकाली देवि उल्कामुखि, ललत् जिह्वावाली, घोरशब्द करने वाली शृगालिनि! तुमको नमस्कार है । श्मशानवासिनि प्रेते शवमांसप्रिये अनघे अरण्यचारिणि शिवे फेरो जम्बूकरूपिणि महामाये जगत्तारिणि कालिके! तुमको नमस्कार है । मातङ्गि कुक्कटे रौद्रि कालकालि! तुम्हें नमस्कार है । सर्वसिद्धिप्रदे भयङ्करि भयावहे देवेशि कालिके! आप मेरे भक्त के ऊपर प्रसन्न हो जाओ । संसारतारिणि, जयशीले, सब प्रकार का शुभ करने वाली, खुले बिखरे केशों वाली, चण्डे, चामुण्डे, मुण्डमाला धारण करने वाली, संहारकारिणि, क्रुद्धे मुझे सर्वसिद्धि दो । हे दुर्गे, किराति, शबरि प्रेतासन पर आरूढ़, अभये मेरे ऊपर कृपा करो । कृपापूर्वक मुझे देखो । हे विकटे! मुझे राज्य धन आयु पुत्र और स्त्री दो । शिवाबलि के विधान से प्रसन्न हो जाओ । फेरुरूपिणी तुम्हें नमस्कार है बार-बार नमस्कार है ।
प्रकार शिव देवी की स्तुति कर साधक आसवपात्र से आसव बलिद्रव्यों पर गिराता हुआ मंत्र पढे ।
ॐ ह्रीं शिवे सर्वदानन्दे सर्वकामार्थ सिद्धिदे इश्मां बलिं प्रदास्यामि कार्यसिद्धिप्रदा भव गृहण देवि महाभागे शिवे कालाग्निरूपिणि शुभाशुभफलं ब्रूहि गृहण गृहण बलिं तव ॥
यदि शुभाशुभ फल न जानने की इच्छा हो तो अन्य मंत्र से बलि प्रदान करें ।

॥ शिवाबलि मन्त्र ॥
श्मशान या चोराहे पर जाकर तामसी या सात्विक बलि प्रदान करें ।
१॰ ॐ ह्रीं हूँ कामकलाकाल्यै महाघोरावायै भगमालिन्यै शिवारूपिण्यै ज्वालामालिन्यै इमं बलिं प्रयच्छामि गृहण गृहण खादय खादय मम सिद्धिं कुरु कुरु मम शत्रून् नाशय नाशय मारय मारय स्तंभय स्तंभय उच्चाटय उच्चाटय हन हन विध्वंसय विध्वंसय मथ मथ विद्रावय विद्रावय पच पच छिन्धि छिन्धि शोषय शोषय त्रासय त्रासय त्रुट त्रुट मोहय मोहय उन्मूलय उन्मूलय भस्मीकुरु भस्मीकुरु जृम्भय जृम्भय स्फोटय स्फोटय मथ मथ विद्रावय विद्रावय हर हर विक्षोभय विक्षोभय तुरु तुरु दम दम मर्दय मर्दय पालय पालय सर्वभूतभयङ्करि सर्वजन मनोहारिणि सर्वशत्रु क्षयङ्करि ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल शिवारूप धरे कालि कपालि महाकपालि ह्रीं ह्रीं ह्रं ह्रं ह्रैं हौं राज्यं मे देहि देहि किलि किलि चामुण्डे यमघण्टे हिलि हिलि ममसर्वाभीष्ट साधय साधय संहारिणि संमोहिनि कुरुकुल्ले किरि किरि हूं हूं फट् स्वाहा ।

२. ॐ ह्रीं हूं कामकलाकाल्यै महाघोररावायै भगमालिन्यै शिवारूपिण्यै ज्वालामालिन्यै इमं बलि प्रयच्छामि गृहण गृहण खाद खाद मम सिद्धिं कुरु कुरु मम शत्रून् नाशय नाशय मारय मारय स्तंभय स्तंभय उच्चाटय उच्चाटय हन हन विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय पच पच छिन्धि छिन्धि शोषय शोषय त्रासय त्रासय त्रुट त्रुट मोहय मोहय उन्मूलय उन्मूलय भस्मीकुरु भस्मीकुरु जृम्भय जृम्भय स्फोटय स्फोटय मथ मथ विद्रावय विद्रावय हर हर विक्षोभय विक्षोभय तुरु तुरु दम दम मर्दय मर्दय पातय पातय ह्रीं ॐ ।

३. सर्वभूतभयङ्करि सर्वजनमनोहारिणि सर्वशत्रुक्षयङ्करि ज्वल ज्वल प्रज्वल शिवारूपधरे कालि कपालि महाकपालि ह्रीं ह्रीं ह्रं ह्रं हौं हौं राज्यं मे देहि देहि किलि किलि चामुण्डे मम सर्वाभीष्टं साधय साधय संहारिणि संमोहिनि कुरुकुल्ले किरि किरि हूं हूं फट् फट् ॐ ।
इस मन्त्र को ३ बार पढकर मांसादि बलि देकर जल छोड़ें ।

शिवाबलिग्रहण करे तो अभीष्टसिद्धि प्राप्त होवे । बलिग्रहण न करे तो फलशून्य । गर्जना करे तो शुभ, रोदन करे तो अशुभ । दक्षिण में मुंहकर शब्द करे तो अशुभ, पूर्वोत्तरदिशा शुभ हैं । यदि पहले नैवेद्य ग्रहण करे तो अन्न से धन प्राप्ति, खीर खाये तो वाक्सिद्धि मिले, घी ग्रहण करे तो आयुवृद्धि, पुआ खाने से पुण्य, मोदक खाने से यश लाभ । मस्त्य खाये तो पत्नि लाभ । मांस खाये तो धन व विजय प्राप्त होती है ।

 

 

 

 

 

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