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कामना अनुसार देवता उपासना
श्रीमद्-भागवत (२/३/२-१०) में विभिन्न कामनाओं के उद्देश्य से विभिन्न देवताओं की उपासना का उल्लेख मिलता है –
ब्रह्मवर्चसकामस्तु यजेत ब्रह्मणस्पतिम् ।
इन्द्रमिन्द्रियकामस्तु प्रजाकामः प्रजापतीन् ।।
देवीं मायां तु श्रीकामस्तेजस्कामो विणावसुम् ।
वसुकामो वसून् रुद्रान् वीर्यकामोऽथ वीर्यवान् ।।
अन्नाद्यकामस्त्वदितिं स्वर्गकामोऽदितेः सुतान् ।
विश्वान् देवान राज्यकामः साध्यान् संसाधको विशाम् ।।
आयुष्कामोऽश्विनौ देवौ पुष्टिकाम इलां यजेत् ।
प्रतिष्ठाकामः पुरुषो रोदसी लोकमातरौ ।।

अर्थात् ब्रह्मतेह के इच्छुक को बृहस्पति की, इन्द्रिय शक्ति के इच्छुक को इन्द्र की, संतति-कामी को प्रजापतियों की, लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये मायादेवी की, तेज के लिये अग्नि की, धन के लिये वसुओं की और वीरता-प्राप्ति के लिये रुद्रों की, प्रचुर धान्य की कामना करने वाले को अदिति की, स्वर्गकामी को अदिति-पुत्र देवताओं की, राज्यकामी को विश्वेदेवों की तथा प्रजा को स्वानुकूल बनाने की इच्छा रखने वाले को साध्य देवताओं की, दीर्घायुकामी को अश्विनी-कुमारों की, पुष्टिकामी को पृथ्वी की, प्रतिष्टाकामी को पृथ्वी और आकाश की आराधबा करनी चाहिये ।
रुपाभिकामो गन्धर्वान् स्त्रीकामोऽप्सरउर्वसीम् ।
आधिपत्यकामः सर्वेषां यजेत परमेष्ठिनम् ।।
यज्ञं यजेद् यशस्कामः कोशकामः प्रचेतसम् ।
विद्याकामस्तु गिरिशं दाम्पत्यार्थं उमां सतीम् ।।
धर्मार्थ उत्तमश्लोकं तन्तुं तन्वन् पितृन् यजेत् ।
रक्षाकामः पुण्यजनानोजस्कामो मरुद्-गणान् ।।
राज्यकामो मनून् देवान् निर्ऋतिं त्वभिचरन् यजेत् ।
कामकामो यजेत् सोममकामः पुरुषं परम् ।।
अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः ।
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ।।

सौन्दर्यकामी को गन्धर्वों की, सुभगा पत्नी के लिये उर्वशी अपसरा की और सबका स्वामी बनने के लिये ब्रह्माजी की, यज्ञकामी को यज्ञपुरुष की, कोषकामी को वरुण की, विद्याकामी को भगवान् शंकर की तथा पति-पत्नी में प्रेम बनाये रखने के लिये भगवती पार्वती की, धर्म-सम्पादनार्थ भगवान् विष्णु की, वंश-परम्परा की रक्षा के लिये पितरों की, बाधाओं से बचने के लिये यक्षों की और बलवान् बनने के लिये मरुद्गणों की, राज्य के लिये मन्वन्तराधिप देवों की, अभिचार के लिये निर्ऋति की, भोग-प्राप्ति के लिये चन्द्रमा की और निष्कामता-प्राप्ति के लिये भगवान् नारायण की उपासना करनी चाहिये । उदार बुद्धि वाले मोक्षकामी पुरुष को चाहे वह सकाम हो अथवा निष्काम, तीव्र भक्तिपूर्वक एकमात्र भगवान् पुरुषोत्तम की ही आराधना करनी चाहिये ।

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