January 27, 2016 | aspundir | Leave a comment ।। श्री क्रम के कुलगुरु ।। श्रीकुल साधकों के कुल गुरु इस प्रकार है- दिव्यौघगुरु – १. परप्रकाशानंदनाथ २. परशिवानंदनाथ ३. पराशक्त्यम्ब ४. कौलेश्वरानंदनाथ ५. शुक्लदेव्यम्ब ६. कुलेश्वरानंदनाथ ७. कामेश्वर्यम्बा । सिद्धौघ गुरु – भोगानंदनाथ । क्लिन्नानंदनाथ । समयानन्दनाथ । सहजानंदनाथ । मानवौघ गुरु- गगनानंदनाथ । विश्वानंदनाथ । विमलानंदनाथ । मदनानंदनाथ । भुवनानंदनाथ । प्रियानंदनाथ । श्रीशङ्कर भगवतपाद । ।। कादीक्रम के कुलगुरू ।। १. परमानंदनाथ, २. प्रकाशनन्दनाथ ३. भोगानंदनाथ ४. समयानंदनाथ, ५. गगनानंदनाथ ६. विद्यानंदनाथ ७. भुवनानंदनाथ ८. स्वात्मानंदनाथ (इन आठ गुरुओं के अलावा मदनानंदनाथ । लीलानंदनाथ और महेश्वरानंदनाथ गुरु कहे हैं ।) ( विद्यार्णव तंत्रे ) काली मत के अनुसार गुरू क्रम इस प्रकार है- ‘ कालीमत ‘ के अनुसार ‘ गुरूक्रम ‘ निम्न प्रकार है- श्री प्रह्लादानन्दनाथ, सनकानन्दनाथ, वशिष्ठानन्दनाथ, कुमारानन्दनाथ, क्रोधानन्दनाथ, शुकानन्दनाध, ध्यानानन्दनाथ, बोधानन्दनाथ और सुरानन्दनाथ । ये नौ (नव) ‘ कुलगुरू ‘ हैं । ये द्विनेत्र, द्विभुज तथा वराभय धारण करनेवाले हैं । श्रीविरूपानन्दनाथ, चिन्मयानन्दनाथ और चित्शक्त्याम्बा ये तीन ‘ दिव्यौध ‘ गुरु हैं । श्रीप्रबोधानन्दनाथ, सुवेशानन्दनाथ, अनन्तानन्दनाथ, सितानन्दनाथ, सुधानन्दनाथ, त्रिमूर्त्यानन्दनाथ और झिण्टीशानन्दनाथ ये सात ‘ मानवौघ ‘ गुरु हैं । ‘ कादिविद्या ‘ के उपासकों की गुरुपरम्परा निम्न प्रकार है- परप्रकाश, परशिव, परशक्ति, कौलेश्वर, शुक्लदेव्यम्बा, कुलेश्वर ओर कामेश्वर्यम्बा- ये सात ‘ दिव्यौघ ‘ गुरु हैं । भोगानन्दनाथ, क्लिन्नानन्दनाथ, समयानन्दनाथ और सहजानन्दनाथ-ये चार ‘ सिद्धौघ ‘ गुरु हैं । गगनानन्दनाथ, विश्वानन्दनाथ, विमलानन्दनाथ और प्रियानन्दनाथ- ये चार ‘ मानवौध ‘ गुरु हैं । इन सबकी यथास्थान पूजा कर पश्चात् नीचे दी गई ‘ गुरूसन्तति ‘ की पूजा करे- कपिल से लेकर व्यासपर्यन्त पूर्वोक्त २१ गुरु सन्तति ( श्रीविद्याक्रम में वर्णित है) तथा करुण, वरुण, विजय, समर, गुण, बल, विश्वम्भर, सत्य, प्रिय, श्रीधर, शारद, सकलेश, विलास, नित्येश, विश्वपुरुष, गोविन्द, विबुध, सिंह, वीर, सोम, दिवाकर. अचल, वाग्भव, नाद, मोहन, सुलभ, शिव, मृत्युञ्जय, वासुदेव, शरण, सनन्दन, आकाश, गोप्रिय, हर्ष, भग, काम. महीधर, ईशान, गणेश, कपाल, भैरव ओर दिव– ये ४२ गुरु तथा गौड़ से लेकर शुक्र तक ये सात गुरु अर्थात् गौडपादाचार्य, भगवत गोविन्दाचार्य, शङ्कराचार्य, पद्मपादाचार्य, हस्तामलकाचार्य, तन्त्रोटकाचार्य और वर्तिककार ( सुरेश्वराचार्य) । भगवान् शङ्कराचार्य के शिष्यों की उपाधि भी शंकराचार्य थी । अतएव अद्यावधि भी चार पीठों के शंकराचार्य के नाम से व्यवहृत होते हैं । इस सम्पूर्ण ‘ गुरूसन्तति ‘ की संख्या मिलाकर ७१ इकहतर होती हैं । ।। श्री कुलगुरुपरम्परा ( विद्यार्णव तंत्रे) ।। श्री १०८ देशिकप्रवर स्वामी विद्यारण्यविरचित ‘ श्री श्रीविद्यार्णव तन्त्र ‘ में गुरुओं के आयुधों का वर्णन दिया है । खेटं कपालं च त्रिशूलं मुद्गरं तथा । खट्वाङ्ग शरचापौ च, दधानाश्च वराभये ।। तुरीये यामिनीयामे, कुण्डलिन्या महौजसि । ते विसर्गादधोभागे, लाक्षारससमप्रभे ।। चिन्तनीयाः प्रयत्नेन, विद्यासंसिद्धिहेतवे । एतान् कुलगुरून् यत्नान्, न चिन्तयति साधक: ।। तस्य पूजा जपश्चैव, स्नानदानादिकं वृथा । एतान् कुलगुरुन् ध्यायेत्, ऊर्ध्वाम्नायर्णदीक्षितः ।। ऊर्ध्वाम्नायक्रम में ओघत्रय ( दिव्य, सिद्ध और मानव) गुरुओं को पृथक् पृथकृ इस प्रकार बताया गया है- १ ग्यारह दिव्यौघ- १ ब्रह्मा, २ विष्णु, ३ रुद्र, ४ ईश्वर, ५ सदाशिव, ६ इच्छाशक्ति, ७ ज्ञानशक्ति, ८ क्रियाशक्ति, ९ कुण्डलिनी, १० मातृका और ११ पर शक्ति । २ आठ सिद्धौघ- १ आदिनाथ, २ परशक्ति, ३ अचिन्त्यनाथ, ४ अचिन्त्यशक्ति, ५ अव्यक्तनाथ, ६ अव्यक्तशक्ति, ७ कुलेश्वर और ८ कुलेश्वरी । ३ मानवौघ- १ तूष्णीश, २ सिद्धाम्बा, ३ मित्र, ४ कुब्जाम्बा, ५ गगन, ६ चाटुली, ७ चन्द्रगर्भ ८ बलिभागिनी ९ मुक्त, १० महिला, ११ ललित, १२ शङ्खाम्बा, १३ श्रीकण्ठ, १४ श्रीकण्ठाम्बा, १५ परमेश्वरी १६ कुमार, १७ सहजाम्बा, १८ रत्न, १९ ज्ञानदेवी, २० ब्रह्मा, २१ नादिनी, २२ अजेश्वर, २३ अजेश्वराम्बा, २४ प्रतिष्ठानन्दनाथ, २५ सहजाम्बा, २६ शिव, २७ प्रतिभाम्बा, २८ चिदानन्द, २९ सहजाम्बा, ३० श्रीकण्ठ, ३१ आनन्दविद्या, ३२ शिव, ३३ सहजाम्बा, ३४ सोम, ३५ सहजाम्बा, ३६ संविदानन्दनाथ, ३७ सहजाम्बा, ३८ वियुधानन्दनाथ, ३९ विबुधाम्बा, ४० भैरव, ४१ भैरव्यम्बा, ४२ आनन्दनाथ, ४३ अनन्दिन्यम्बा, ४४ कामेश्वर, ४५ कामेश्वर्यम्बा, ४६ कमलानन्दनाथ और ४७ सहजाम्बा- ये मानवौघ गुरु हैं । ये द्विभुज हैं और वराभय धारण करते हैं । ऊर्ध्वाम्नायान्तर्गत शाम्भवक्रम में श्रीषोडशी महाविद्या के उपासकों का गुरूक्रम इस प्रकार दिया है- दिव्यौघ गुरु – १ श्री व्योमातीताम्बा, २ व्योमेश्यष्या, ३ व्योमगाम्बा, ४ व्योमवारिण्यम्बा और ५ व्योमस्थाम्बा ये पञ्चम्बाएँ दिव्यौघ गुरु हैं । सिद्धौघ गुरु – १ उन्मनाकाशानन्दनाथ, २ समनाकाशानन्दनाथ, ३ व्यापकाकाशानन्दनाथ, ४ शक्त्याकाशानन्दनाथ, ५ ध्वन्याकाशानन्दनाथ, ६ ध्वनिमात्राकाशानन्दनाथ, ७ अनाहताकाशानन्दनाथ, ८ विन्द्वाकाशानन्दनाथ और ९ द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ- ये नौ ‘ सिद्धौघ गुरु ‘ हैं । मानवौघ गुरु – १ परमात्मानन्दनाथ, २ शाम्भवानन्दनाथ, ३ चिन्मुद्रानन्दनाथ, ४ वाग्भवानन्दनाथ, ५ लीलानन्दनाथ ६ सम्भ्रमानन्दनाथ, ७ चिदानन्दनाथ, ८ प्रसन्नानन्दनाथ और ९ विश्वानन्दनाथ- ये नौ ‘ मानवौघ गुरु ‘ हैं । उक्त दिव्यौघ, सिद्धौघ और मानवौघ गुरुओं की पूजा के अनन्तर-स्वगुरुक्रम की पूजा होती है । प्रत्येक गुरु नाम के प्रारम्भ में ‘ श्री ‘ और अन्त में ‘ आनन्दनाथ नम: ‘ जोड़ लेना चाहिए, जैसे- श्रीकपिलानन्दनाथ नमः इत्यादि । कपिल, वशिष्ठ, सनक, सनन्दन, भृगु, सनत्त्, सुजत्त वामदेव, नारद, गौतम, शौनक, शक्ति, मार्कण्डेय, कौशिक, पराशर, शुक्र, अङ्गिरा, कण्व, जावालि, भरद्वाज, वेदव्यास, ईशान, रमण, कपर्दी, भूधर, सुभट, जलज, भूतेश, परम, विनय, भरण, पद्मेश, सुभग, विशुद्ध, समर, कैवल्य, गणेश्वर, सुपाथ, विबुध, योग, विज्ञान, अनङ्ग, विभ्रम, दामोदर, चिदाभास, चिन्मय, कलाधर, वीरेश्वर, मन्दार, त्रिदश, सागर, मृड़, हर्ष, सिंह, गौड़, वीर, अघोर, ध्रुव, दिवाकर चकधर, प्रथमेश, चतुर्भुज, आनन्द, भैरव, वीर, गौड़, पराचार्य, सत्यनिधि, रामचन्द्र, गोविन्द और श्रीशइराचार्य । इन गुरुओं की संख्या एकसप्तति अर्थात इकहतर ७१ है । श्री श्रीविद्यार्णव तंत्र ‘ के अनुसार भगवान् शङ्कराचार्य के चौदह शिष्य दर्शाए हैं, जिनमें से शङ्कराचार्य, बोधाचार्य, गीर्वाणाचार्य, पद्मपादाचार्य और आनन्दतीर्थाचार्य- ये पाँच भिक्षु अर्थात् संन्यासी थे । शेष नौ शिष्य सुन्दर, विष्णु, शर्मा, लक्ष्मण, मल्लिकार्जुन, त्रिविक्रम, श्रीधर, कपर्दी, केशव और दामोदर गृहस्थ थे । ये लोग अपने विषय के अद्भुत विद्वान थे और ‘ शङ्कर ‘ की उपाधि से विभूषित थे तथा भगवती की ही आत्मा माने जाते थे । पद्मपादाचार्य के माण्डलिक, परपावक, निर्वाण, गोवर्धन, चिदानन्द और शिवोत्तम- ये छ : शिष्य थे । बोधाचार्य के शिष्य केरलप्रदेश के निवासी थे अर्थात् केरल प्रदेश में शाक्तधर्म को फैलानेवाले बोधाचार्य थे । गीर्वाणाचार्य के शिष्य गीर्वाण पण्डित तथा उनके शिष्य विबुधेन्दु और उनके शिष्य सुधीन्द्र तथा उनके शिष्य मन्त्रगीर्वाण हुए और उनके भी अनेक शिष्य हुए । महात्मा आनन्दतीर्थ के अनेक गृहस्थ शिष्य हुए, जो पादुका, पीठ और सम्प्रदाय के विशेषज्ञ थे । भगवान् शङ्कराचार्य के जो नौ गृहस्थ शिष्य बने थे, उनकी परम्परा निम्न प्रकार है- सुन्दराचार्य के शिष्य पीठनायक (पीठाधिपति), भिक्षु (संन्यासी) और गृहस्थ तीनों प्रकार के लोग थे । विष्णुशर्मा के शिष्य पण्डित प्रगल्भाचार्य हुए और उनके शिष्य ‘श्री श्रीविद्यार्णव तन्त्र’ के रचयिता श्री १०८ स्वामी विद्यारण्य हुए । श्री स्वामी जो ने अपने ग्रन्य में लिखा है कि इस ग्रन्थ की समाप्ति पर श्री महात्रिपुरसुन्दरी जगदम्बा ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर मुझे वर माँगने के लिए कहा, तो मैंने निवेदन किया कि हे माता ! यदि आप प्रसन्न हैं, तो जो साधक मेरी पुस्तक में मेरा लिखा गुरुक्रम और मन्त्रों को देखकर श्रद्धापूर्वक मुझे अपना गुरु मानकर योग्य गुरु के अभाव में गुरुसन्तति के ज्ञान से दीक्षा के बिना भी तेरे मन्त्र का जप करें, उनको सब प्रकार की सिद्धि तुम्हारे प्रसाद से प्राप्त हो जाए, यही मेरी तुम्हारे चरणों में प्रार्थना हैं । श्री महात्रिपुरसुन्दरी ‘एवमस्तु’ कहकर अन्तर्ध्यान हो गई । अत: इस ‘गुरुक्रम’ के ज्ञानमात्र से जगदम्बा सन्तुष्ट हो जाती हैं । विन्ध्यप्रदेश के सब निवासी मल्लिकार्जुन के शिष्य बने और वहाँ पर उनकी ही शिष्य परम्परा विद्यमान है । महात्मा त्रिविक्रम के शिष्य उड़ीसा प्रान्त में व्याप्त हुए । उड़ीसा का प्राचीन नाम ‘जगन्नाथ प्रदेश’ था । गौड़, मैथिल और वङ्ग प्रदेश के निवासी श्रीधराचार्य के मतानुयायी हँ अर्थात् उनके द्वारा वहाँ शाक्तधर्म का प्रचार हुआ । विश्वनाथपुरी ‘ काशी ‘ तथा महाराज रामचन्द्र की पुरी ‘ अयोध्या’ में तथा उनके चारों ओर कपर्दी के द्वारा इस सम्प्रदाय को व्याप्ति हुई अर्थात् वहाँ के निवासी आचार्य कपर्दी के शिष्य हुए । भगवान् शङ्कर के शिष्यों के अतिरिक्त इस सम्प्रदाय को चलानेवाला दूसरा नहीं हुआ । अतएव लिखा है- सम्प्रदायो हि नान्योऽस्ति, लोके श्रीशङ्कराद् बहिः । See Also – ।। श्रीगुरु कवचम् ।। ।। श्रीगुरु स्तोत्रम् ।। ।। स्त्रीगुरु कवचम् ।। ।। स्त्रीगुरु स्तोत्रम् ।। ।। श्रीनाथादि गुरुत्रयं मण्डल पूजन प्रयोगः ।। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. 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