August 21, 2015 | aspundir | Leave a comment ।। अथ घण्टाकर्ण कल्प ।। प्रस्तुत प्रयोग जैन साधक की संवत १६६१ की पाण्डुलिपि में से उद्धृत् है । प्रयोग शुभ मास, शुक्ल पक्ष तथा ५-१०-१५ तिथि सोम, बुध व गुरुवार में करें । रवि-पुष्य, हस्त व मूल नक्षत्र में हो या अन्य कोई “अमृत-सिद्धि-योग” बने तब प्रयोग करें । प्रयोग देवस्थान, नदी, तालाब के पास या घर में एकान्त में करें । प्रयोग हेतु कम-से-कम ३३००० जप नियम पूर्वक ४२ दिन में करें । प्रातः, मध्याह्न, सायं एक-एक माला करे मध्य रात्रि में १ माला का होम करें । शत्रुनाश हेतु सरसों, कालीमिर्च व गुग्गुल से हवन करें । प्रथम विधिः- पुरुषाकार यंत्र बनाये । कण्ठ में “श्रीनमः”, दक्षिण भुजा में “सर्वे ह्रीं नमः” वाम भुजा में “शत्रु नाशने नमः, सिर के ऊपर “अग्नि चौर भयं नास्ति ह्रीं घण्टाकर्णो नमोस्तुऽते ठःठः स्वाहा” लिखे । हृदय व उदर में १२ कोष्ठक बनाकर उनमें “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वदुष्टनाशनेभ्य” १२ अक्षरों को लिखें । दक्षिण पैर में “रां रीं रुं” तथा बाँये पैर में हां हीं हूं नमः लिखें । इस पुरुषाकार के चारों ओर घण्टाकर्ण मंत्र लिखें – ॐ घण्टाकर्णो महावीर सर्व-व्याधि विनाशकः । विस्फोटकं भयं प्राप्ते रक्ष रक्ष महाबल ।। १।। यत्र त्वं तिष्ठसे देव लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः । रोगास्तत्र प्रणशयन्ति वातपित्त कफोद्भवा ।। २।। तत्र राजभयं नास्ति यांति कर्णे जपात्ऽक्षयं । शाकिनी भूत वैताला राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।। नाऽकाले मरणं तस्य न च सर्पेण डस्यते । अग्नि चौर भयं नास्ति, नास्ति तस्याप्यरिभयम् ।। ४।। ॐ घण्टाकर्णो नमोस्तुऽते ठः ठः ठः स्वाहा ।। द्वितीय विधिः- दीपावली रात्री, नवरात्र में अथवा सूर्य या चन्द्र ग्रहण से तीन दिन तक उपवास पूर्वक १२५०० जप करें, पृथ्वी पर शयन करें । घृत, तिल, गुग्गुल, सहदेवी, राई, सरसों, बिनोले, दूध, दही तथा शहद सबको मिलाकर दशांश हवन करें । अर्धरात्रि में ५०० बार हवन करे, उस समय गुग्गुल, नारियल का चूरा, छुआरा २१, किशमिश २१, बादाम २१, पान २१, मिश्री, लाल चन्दन, सहदेवी, अगर, घृत, दूध, दही, शहद, बिल्व व पीपल की समिधा से हवन करें । मन्त्र सिद्ध होने के बाद प्रयोग करें । १॰ प्रयोग समय स्नान करते समय गंगादि तीर्थों का स्मरण करें । यथा- “ह्रीं ह्रीं गङ्गायै नमः” २॰ वस्त्र पहनते समय “ॐ ह्रीं क्लीं आनन्द देवाय नमः” मंत्र पढ़ें । ३॰ जप करते समय भूमि व आसन की पूजा करें । ।। अस्य प्रयोग विधानम् ।। १॰ असाध्य रोगो में इस मन्त्र का अनुष्ठान करें, मंत्र से अभिमंत्रित जल रोगी को पिलाये । २॰ प्रातःकाल ४ बजे उठकर २१ बार मंत्र पढ़े फिर राजदरबार में जावे, सम्मान मिले । ३॰ २१ बार मंत्र पढ़कर पान, सुपारी, लौंग, इलायची जिसे खिलाये वशीभूत होवे । ४॰ यात्रा करने से पूर्व २१ बार मंत्र जपे, यात्रा सुखद होवे तथा चोर भय नहीं होवे जहां जावे सम्मान मिले । ५॰ रात्रि में सोते समय जप करे, चोर सर्पादि का भय नहीं होवे । ६॰ गुग्गुल धूप करने से भूत-बाधा दूर होवे । २१-५१ बार हवन करे । ७॰ अपने वस्त्र पर मंत्र बोलकर गांठ लगाकर जावे तो बाहर सम्मान मिले । ८॰ हींग, साबुत लाल मिर्च, अफीम-डोडा बराबर बांटकर २१ बार मंत्र कर रोगी को धुनी देवे, १०८ बार गुग्गुल से हवन करे तो भूत-प्रेत रोगी का उत्पात नष्ट होवे । ९॰ केसर, कस्तुरी, कपूर, गोरोचन, हींगलू इस सबको मिलाकर भोजपत्र या कागज पर मंत्र लिख अपने पास रखे, रक्षा होवे तथा सर्वजन वशीकरण होवे, लक्ष्मी का लाभ व्यवसाय में होवे । १०॰ स्याही व पेन से कागज पर लिखकर हाथ में बांधे तो सर्व-ज्वर जाये । ११॰ बड़े जैन मंदिरों में जहाँ घण्टाकर्ण की मूर्ति होवे अथवा बद्रीनाथ-धाम में भी घण्टाकर्ण मूर्ति है । वहाँ पर मोटा लच्छा चढ़ावे, पुजारी को दक्षिणा देकर लच्छा प्राप्त करे । उसका डोरा बनाकर रोगी को पहनावे तो ज्वर उतर जाता है । १२॰ कुंवारी कन्या के हाथ से काता गया सूत ७ बार लपेटे तथा उसमें घोड़े का बाल मिलाकर ७ गांठे २१ बार मंत्र बोलते हुए लगाये तो चौरासी बाय जाये । १३॰ गुड़ को २१ बार अभिमंत्रित कर खिलावे रोगी ठीक होवे । १४॰ यदि गर्भवती को कष्ट हो तो अभिमंत्रित जल पिलावे, सुख प्रसव होवे । १५॰ गुग्गुल की गोली १०८, नमक की डली १०८, लाल कनेर १०८, बिनोले १०८, रतनजोत १०८, राई १०८ दाने, सरसों १०८ दाने, उड़द १०८ को एकत्रित करे, चौराहे की मिट्टी, दुश्मन के पैरों की मिट्टी, सिर के बाल सबको मिलाकर हवन करे, हवन की राख शत्रु के घर डाल देवे, उसको लांघने पर शत्रु रोगी होवे । यदि ठीक करना हो तो अष्टगंध से मंत्र लिखकर सिर या गले में बांधे या प्रातः-सायं गाय के दूध में घोलकर पिलाये । १६॰ नागकेसर ३ तोला, सौंठ ३ तोला, मूलहेठी ३ तोला, हनुबेर (हजराती बेर) ३ तोला, अश्वगंधा ३ तोला सभी औषधी मिलाकर अभिमंत्रित करे तथा एक रंग की गाय स-वत्सा (बछड़े की माता) गाय के दूध से सूर्य के सम्मुख खड़ी होकर पुत्र कामना वाली स्त्री रजोदर्शन के प्रथम दिन प्रातः तथा चौथे दिन पीये तो तथा घण्टाकर्ण यंत्र का डोरा गले में बाँधे तो पुत्र की अभिलाषा पूर्ण होवे । १७॰ यदि लड़किया अधिक हो रही है तो नाल परिवर्तन की कामना से नारियल को १०८ अभिमंत्रित कर ७२, ७३ या ७४ दिन सिरहाने रखे, नाल परिवर्तन होगा । १८॰ घोड़े की पूंछ के २१ बाल लेवे, उनको ७ बार मंत्र पढ़कर डोरा बनाकर बांधे तो फोड़ा ठीक होवे । १९॰ लाल सूत का डोरा के १४ धागे लेवे १४ गांठे लगावे २१ बार अभिमंत्रित करे, उस डोरे को बांधने सरे बवासीर ठीक होवे । २०॰ सोते समय ७ बार मंत्र पढ़कर सोवे तो दिग्-रक्षण होवे, दुःस्वप्न नहीं आवे, चोर सर्प भय मिटे । २१॰ लक्ष्मी प्राप्ति प्रयोग – षट्कोण में “ॐ क्लीं ह्रीं ह्रीं ह्रौं नमः लिखे चारों ओर घण्टाकर्ण मंत्र के चारों श्लोक लिखें – प्रयोग करते समय पूर्व में मुंह करके सफेद वस्त्र, सफेद आसन, सफेद माला पर ७२ दिन में सवा लाख जप करके बादाम, छुआरा, खोपरा बूरा से हवन करे, एक समय भोजन करे, छः माह में लक्ष्मी प्राप्त होवे । २२॰ वशीकरण प्रयोग – उत्तर दिशा में मुंह करे लाल वस्त्र, लाल आसन, लाल माला पर ४२ दिन में सवा दो लाख जप करें । त्रिकाल पूजा करें । राई, लाल चन्दन, कालीमिर्च, घृत से हवन करे । Related