October 2, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ चन्द्रघण्टा ॥ देवी चन्द्रघण्टा को कहीं कहीं पुराणों व तन्त्रग्रन्थो में चन्डघण्टा नाम से भी संबोधन किया गया है । महाकाल संहिता के कामकला खण्ड में चण्डघण्टा व चण्डेश्वर्या नाम से दो ध्यान मन्त्र भी दिये गये हैं । देवी अपने दाहिने हाथ में पद्म, धनुष, बाण, अभयमुद्रा, धारण किये हुये हैं तो बाँयें हाथ में त्रिशूल, गदा, खड्ग व घण्टा धारण किये हुये हैं । यह देवी एक वक्त्रा है । तथा चण्डघण्टा स्वरूप में तीन मुख वाली है । यह देवि दश भुजा भी कही गई है, वर, अभय, मुद्रा, घण्टा, व अन्य दिव्यास्त्र धारण किये हुये है । मस्तक में घण्टा के आकार का चन्द्रमा धारण किये हुये है । यह अपने घण्टे की ध्वनि से दैत्य समूह को स्तंभित कर देती है तथा वीररस की मूर्ति है तथा सदैव युद्ध के लिये उद्यत् रहती है । सिंह वाहन पर आरूढ़ है । (१) चन्द्रघण्टा मन्त्र – ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं चन्द्रघण्टायै स्वाहा ॥ ॥ ध्यानम् ॥ पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता । प्रसादं तनुते मह्यं . चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥ (२) चण्डघण्टा मन्त्र – क्रीं क्रीं हूं हूं हूं हूं क्रों क्रों क्रों श्रीं ह्रीं ह्रीं छ्रीं छ्रीं फ्रें स्त्री चण्डघण्टे शत्रून् स्तंभय स्तंभय मारय मारय हुं फट् स्वाहा । ॥ ध्यानम् ॥ ध्यायेद् दूर्वादलश्यामां पूर्णचन्द्रानन त्रयाम् । एकैक वक्त्र नयन त्रितयोज्ज्वल विग्रहाम् ॥ पीताम्बर परीधानां पीतस्त्रगनुलेपनाम् । सर्वाभरणनद्धाङ्गी रत्नाकल्प परिष्कृताम् ॥ चण्डघण्टामष्टभुजां स्थितां मत्तगजोपरि । खड्गं त्रिशूलं विशिखं कर्तृकां दक्षिण करे ॥ चर्मपाश धनुर्दण्ड खर्पराणि च वामतः । धारयन्तीं क्रूरदृष्टि चण्डघण्टां विचिन्तयेत् ॥ देवि अपने वृहदाकार घण्टे की आवाज से ही शत्रु सेना का स्तंभन कर देती है उन्हे विवेकहीन कर देती है। कई ग्रंथों में चन्द्रघण्टा व चण्डघण्टा की उपमा एक ही दी गई है। (३) चण्डेश्वर्या मन्त्र – (महाकाल संहितायाम् कामकला खण्डे) – ॐ ह्रीं श्रीं हूं क्रों क्रीं स्त्रीं क्लीं स्हजलक्षम्लवन उं क्षमवह हसव्य्र उं क्लह्रझकह्रनसक्ल ईं सस्लक्षकम ह्रूं व्रूं क्ष्लह्रमव्य्र उं चण्डेश्वरी ख्रों छ्रीं फ्रें क्रौं हूं हूं फट् स्वाहा ॥ ३ ॥ ॥ यंत्रार्चनम् ॥ यन्त्र रचना – बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल एवं भूपुर बनाकर यंत्र पर “ॐ मं मण्डूकादि पीठ देवताभ्यो नमः” से पीठ पूजा कर मध्य बिन्दु में देवी का आवाहन करें । प्रथमावरणम् – (त्रिकोणे) ॐ वामायै नमः। ॐ ज्येष्ठायै नमः। ॐ रौद्र्यै नमः। द्वितीयावरणम् – (षट्कोणे) ॐ हृदय शक्तये नमः। ॐ शिरशक्तये नमः। ॐ शिखाशक्तये नमः। ॐ कवचशक्तये नमः । ॐ नेत्रशक्तये नमः। ॐ अस्त्रशक्तये नमः। तृतीयावरणम् – (अष्टदले) शैलपुत्र्यादि नवदुर्गाओं का चन्द्रघण्टा को छोड़कर अन्य देवियों का अर्चन करें। दक्षिण भारत में नवदुर्गा क्रम इस प्रकार है – वनदुर्गा, शूलिनी दुर्गा, जातवेद दुर्गा, शान्तिदुर्गा, शबरीदुर्गा, ज्वालादेवी, लवणदुर्गा, आसुरीदुर्गा। अष्टदले पूर्वादिक्रमेण – ॐ शैलपुत्र्यै नमः। ॐ ब्रह्मचारिण्यै नमः। ॐ कुष्माण्डायै नमः। ॐ स्कन्दमात्र्यै नमः। ॐ कात्यायन्यै नमः। ॐ कालरात्र्यै नमः। ॐ महागौर्यै नमः। ॐ सिद्धिदात्र्यै नमः। पुनः अष्टदलकर्णिकायां – ॐ असितांग भैरवाय नमः। ॐ रुरु भैरवाय नमः। ॐ चण्ड भैरवाय नमः। ॐ क्रोध भैरवाय नमः। ॐ कपाली भैरवाय नमः । ॐ उन्मत्त भैरवाय नमः। ॐ भीषण भैरवाय नमः । ॐ संहार भैरवाय नमः। चतुर्थावरणम् – (भूपुरे चतुर्दारेषु) – पूर्वे – गं गणेशाय नमः । दक्षिणे – वं वटुकाय नमः। पश्चिमे – यां योगिन्यै नमः। उत्तरे – क्षा क्षेत्रपालाय नमः। पञ्चमावरणम् में इन्द्रादि दिक्पालों का एवं षष्ठमावरणम् हेतु इन्द्रादि के अस्त्रों वज्रादि का पूजन भूपुर में करें। नियम पूर्वक मंत्र का पुरश्चरण करे। शत्रुस्तंभन हेतु होम द्रव्य में हरिद्रा व हरताल का भी प्रयोग करें। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe