December 26, 2015 | Leave a comment जय जगदम्बिके ! हो रही सुशोभित लिए खड्ग-गदा-चक्र-चाप, परिधान शूल भुशुण्डि और शंख भी सुघोष हैं । नील घनश्याम रंग नेत्र हैं विशाल तीन, अंग-अंग साज रहे छवि के सु-कोष हैं ।। भक्त-जन ध्यावें जिनके कोमल चरण दस, पावें सुत बित ज्ञान मोक्ष सौं सु-पोष हैं । ऐसी महा-काली गल मुण्ड-माल धारि, करें रक्षा हमारी यही भक्त को सु-तोष हैं ।। जोड़े खड़े हैं कर त्रि-देव भी समक्ष जिनके, गा – गा विरद वेद पार नहीं पाते हैं । हो रहे नत चरणों में ऋषि – मुनि -सिद्ध, यह गन्धर्व गान गा – गा रिझाते हैं ।। बैठा बाम बबर सिंह मुँह को फुलाए हुए, जिसकी चिंघार ही सों दैत्य भाग जाते हैं । विकट रव करते भैरव चलते सदा ही आगे, उसी परा अम्बा को भक्त भी मनाते हैं ।। महिषासुर मारिनी विदारिनी निशुम्भ शुम्भ, चण्ड – मुण्ड – घातिनी बनी हो देवि चण्डिके ! रक्त-बीज का तो वीज नाश ही किया, हुम मात्र से ही धूम्र-लोचन प्रान भञ्जिके ।। काँपती जो थी दिशाएँ स्थिर हुई हों शान्त, ऋषि मुनि देव गुण गान करें अम्बिके ! असामयिक अग्नि और उल्का-पात शान्त हुए, भक्त हो प्रसन्न कहें जय जगदम्बिके ।। Related