॥ दक्षिणामूर्ति शिव ॥

दक्षिणामूर्ति शिव को तन्त्रों का रचियता माना है । बुद्धि, विवेक व ज्ञान की अभिवृद्धि करने वाले एवं जगद्गुरु है । जिन लोगों को सद्गुरु का आश्रय नहीं मिल पा रहा है वे दक्षिणामूर्ति शिव को गुरु मानकर अपनी साधना को आगे बढ़ा सकते हैं । यदि दीक्षित मन्त्र के अलावा अन्य मन्त्र ग्रहण करना है तो विधि इस प्रकार है ।

वटवृक्ष के नीचे जाकर गणेश मातृकादि पूजन कर, प्रधानमण्डल पर दक्षिणामूर्ति यंत्र को स्थापित करे । अगर यन्त्र नहीं हो तो चावलों या रंगोली से वस्त्र पर षड़दल बनाये उसके ऊपर अष्टदल बनायें, उसके बाहर चारद्वार युक्त परिधि का भूपूर बनायें, वही रुद्रकलश रखें । भोजपत्र पर मन्त्र को लिखकर कलश में रख देवें । यंत्र व कलश पृजन कर, भोजपत्र को निकालकर मन्त्र का वाचन कर ग्रहण करें और भावना करें कि यह मन्त्र मुझे सद्गुरु स्वरूप दक्षिणामूर्ति शिव ने प्रदान किया है ।

॥ अथ द्वाविंशत्यक्षर दक्षिणामूर्ति मन्त्र ॥

मन्त्रोयथा – “ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये मह्यं मेधां प्रयच्छ स्वाहा”।

विनियोगः- ॐ अस्य दक्षिणामूर्तिमन्त्रस्य चतुर्मुख ऋषिः गायत्री छन्दः, वेदव्याख्यानतत्पर – दक्षिणामूर्ति देवता, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋषिन्यासः – ॐ चतुर्मुखर्षये नमः शिरसि । गायत्री छन्दसे नमः मुखे । दक्षिणामूर्तये देवतायै नमः हृदि । विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥

कराङ्गन्यास – ॐ आं ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ईं ॐ तर्जनीभ्यां स्वाहा । ॐ ऊं ॐ मध्यमाभ्यां वषट् । ॐ ऐं ॐ अनामिकाभ्यां हुं । ॐ औं ॐ कनिष्ठाभ्यां वौषट् । ॐ अः ॐ करतल करपृष्ठाभ्यां फट् । इसी तरह हृदयादि न्यास करें ।

॥ ध्यानम् ॥
वटवृक्षं महोच्छ्रायं पद्मरागफलोज्ज्वलम्
गारुत्मतमयैः पत्रैर्विचित्रैरूप शोभितम् ॥
नवरत्न महाकल्पैर्लम्ब – मानैरलंकृतम्
विचिन्त्य वटमूलस्थं चिन्तयेल्लोकनायकम् ॥ १ ॥
स्फटिकरजतवर्ण मौक्तिकी – मक्षमाला –
ममृतकलश विद्याज्ञानमुद्रा कराब्जैः ।
दधतमुरगकक्षं चन्द्रचूडं त्रिनेत्रम्
विधृत विविधभूषं दक्षिणामूर्तिमीडे ॥ २ ॥
शङ्करं तु शरच्चन्द्र – निभम्भोजमध्यगं
गङ्गाधरं शरच्चन्द्र करोल्लासित शेखरम् ।
प्रसन्नवदनाम्भोजं त्रिनेत्रं सुस्मिताननं
दिव्याम्बरधरं देवं गंधमाल्यैरलंकृतम् ॥ ३ ॥
नानारत्नमयाकल्पमनुकल्प विभूषितं
मुक्ताक्षमालां दक्षोर्ध्वे ज्ञानमुद्रामधः करे ।
वार्मोर्ध्वे च सुधाकुंभं पुस्तकं तदधः करे
दधानं चिंतयेद् देवं मुनिवृन्दनिषेवितम् ॥ ४ ॥

॥ अथ चतुर्विंशत्यक्षर दक्षिणामूर्ति मंत्र ॥

मन्त्रः- ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये मह्यं मेधां प्रज्ञां प्रयच्छ स्वाहा ।

मेरुतन्त्र में इसके ऋषि ब्रह्मा, छन्दगायत्री, देवता दक्षिणामूर्ति, वीज मेधा, शक्ति स्वाहा एवं विनियोग मेधा समृद्धये कहा गया है ।
मेरुतन्त्र में मेधा का अर्थ वाक्शक्ति एवं प्रज्ञा का अर्थ स्मरण शक्ति बताया है । शारदातिलक में मेधा का पाठान्तर प्रज्ञा बताया है । (३२ अक्षर वाले मन्त्र में)

॥ ध्यानम् ॥

व्याख्यापीठेऽतिशुभ्रं च भस्मोद्धलितविग्रहम् ।
ज्ञानमुद्राक्षमालाढ्यं वीणा पुस्तक धारिणम् ॥

 

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