October 14, 2015 | aspundir | Leave a comment चैत्रादि मासों, प्रतिपदादि-तिथियों एवं रवि-वारादि दिनों में देवी-नैवेद्य किस तिथि में, किस वार में, कौन-सा नैवेद्य लगाना चाहिए, इसका विवरण यहाँ दिया जा रहा है, जो ‘श्रीमद्-देवी-भागवत’ के आधार पर है। श्रद्धालु-जन इनके अनुसार यथा-सम्भव पूजन कर विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं। १॰ चैत्र आदि मासों में देवी नैवेद्यः- चैत्र में गो-घृत के ५ व्यंजन, वैशाख में गुड, ज्येष्ठ में मधु, आषाढ में मक्खन या महुआ-रस, श्रावण में दही, भाद्रपद में शक्कर, आश्विन में खीर (पायस), कार्तिक में दूध, मार्गशीर्ष में फेनी, पौष में लस्सी, माघ में गो-घृत तथा फाल्गुन में नारिकेल। २॰ रवि-वार आदि में देवी-नैवेद्य रविवार को खीर, सोमवार को दूध, मंगलवार को केला, बुधवार को मक्खन, गुरुवार को खाँड, शुक्रवार को चीनी तथा शनिवार को गो-घृत। ३॰ प्रतिपदा आदि तिथियों में देवी-नैवेद्य प्रतिपदा में गो-घृत – फल-नीरोगता, द्वितीया में शक्कर – फल- दीर्घायु, तृतीया में दूध – फल- दुःखों से निवृत्ति, चतुर्थी में माल-पूआ – फल- विघ्नों का नाश, पञ्चमी में केला – फल- बुद्धि का विकास, षष्ठी में मधु – फल- सुन्दर व्यक्तित्व, अष्टमी में नारिकेल – फल- सन्ताप का निवारण, नवमी में धान का लावा – फल- उभय सुख, दशमी में काले तिल – फल – मृत्यु से निर्भयता, एकादशी में दही – फल- देवी की प्रसन्नता, द्वादशी में चिउडा – फल – देवी की प्रसन्नता, त्रयोदशी में चना – फल- सन्तान की प्राप्ति, चतुर्दशी में सत्तू – फल- शंकर की भक्ति, पूर्णिमा तथा अमावस्या को खीर – फल- पितरों का उद्धार होता है। Related