धनत्रयोदशी पर यमदीपदान
धनत्रयोदशी पर करणीय कृत्यों में से एक महत्त्वपूर्ण कृत्य है, यम के निमित्त दीपदान । निर्णयसिन्धु में निर्णयामृत और स्कन्द-पुराण के कथन से कहा गया है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को घर से बाहर प्रदोष के समय यम के निमित्त दीपदान करने से अकालमृत्यु का भय दूर होता है ।

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यमदेवता भगवान् सूर्य के पुत्र हैं । उनकी माता का नाम संज्ञा है । वैवस्वत मनु, अश्विनीकुमार एवं रैवंत उनके भाई हैं तथा यमुना उनकी बहन है । उनकी सौतेली माँ छाया से शनि, तपती, विष्टि, सावर्णि मनु आदि 10 सन्तानें हुई, वे सभी उनके सौतेले भाई-बहिन हैं । वैसे यम शनि ग्रह केर अधिदेवता माने जाते हैं ।
यमराज प्रत्येक प्राणी के शुभाशुभ कर्मों के अनुसार गति देने का कार्य करते हैं । इसी कारण उन्हें ‘धर्मराज’ कहा गया है । इस सम्बन्ध में त्रुटि-रहित व्यवस्था की स्थापना करते हैं । उनका पृथक् से एक लोक है, जिसे उनके नाम से ही ‘यमलोक’ कहा जाता है । ऋग्वेद (9/11/7) में कहा गया है कि इनके लोक में निरन्तर अनश्वर ज्योति जगमगाती रहती है ।
यम की आँखें लाल है, उनके हाथ में पाश रहता है । इनका शरीर नीला है और वे देखने में उग्र हैं । भैंसा उनकी सवारी है । वे साक्षात् काल हैं ।
स्कन्दपुराण में कहा गया है कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में त्रयोदशी के प्रदोष-काल में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य समर्पित करने पर अपमृत्यु का नाश होता है । ऐसा स्वयं यमराज ने कहा था ।
यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियाँ बना लें । उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई दें । अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें ।
प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पुजन करें । उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी-सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है । दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चारमुँह के दीपक को खील (लाजा) आदि की ढेरी के ऊपर रख दें –
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।

अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों ।
उक्त मन्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें –
ॐ यमदेवाय नमः । नमस्कारं समर्पयामि ।।
अब पुष्प दीपक के समीप छोड़ दें और पुनः हाथ में एक बताशा लें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए उसे दीपक के समीप छोड़ दें –
ॐ यमदेवाय नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।।
अब हाथ में थोड़ा-सा जल लेकर आचमन के निमित्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए दीपक के समीप छोड़ें –
ॐ यमदेवाय नमः । आचमनार्थे जलं समर्पयामि ।।
अब पुनः यमदेव को ‘ॐ यमदेवाय नमः’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें ।

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