August 22, 2015 | aspundir | Leave a comment धनाधीश कुबेर महिर्ष पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भरद्वाज की कन्या इलविला का पाणिग्रहण किया। उसी से कुबेर जी की उत्पत्ति हुई। भगवान् ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। ये तप करके उत्तर दिशा के लोक पाल हुए। कैलास के समीप इनकी अलकापुरी है। श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्ट-दन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेरजी अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी पुरी में विराजते हैं। इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं। इनके पुत्र नल-कुबर और मणि-ग्रीव भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा नारदजी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप रहते हैं। प्राचीन ग्रीक भी प्लूटो नाम से धनाधीश को मानते हैं। पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेरजी हैं। इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू-गर्भ-स्थित निधि प्राप्त होती है। निधि-विद्या में `निधि´ सजीव मानी गई है, जो स्वत: स्थानान्तरित होती है। भगवान् शंकर ने इन्हें अपना नित्य-सखा स्वीकार किया है। प्रत्येक यज्ञान्त में इन वैश्रवण राजाधिराज को पुष्पांजलि दी जाती है। कुबेर धनपति हैं, जहाँ कहीं भी धन है, उसके ये स्वामी हैं। इनके नगर का नाम अलकापुरी है। ये एक आँख रखते हैं। एक बार भगवती उमा पर इनकी कु-दृष्टि गई, तो एक नेत्र नष्ट हो गया तथा दूसरा नेत्र पीला हो गया। अत: ये एक आँख वाले पिंगली कहे जाते हैं। इनकी पीठ पर कूबड़ है। अस्त्र गदा है, वाहन नर है अर्थात् पालकी पर बैठकर चलते हैं। रामायण के उत्तर काण्ड के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य हुये और इनके वैश्रवण नामक पुत्र हुए, जिनका दूसरा नाम कुबेर था। अपने पिता को छोड़कर ये अपने पितामह ब्रह्मा के पास चले गये और उनकी सेवा करने लगे। इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने इन्हें अमरत्व प्रदान किया, साथ ही धन का स्वामी बनाकर लंका का अधिपति बना दिया। साथ ही पुष्पक विमान प्रदान किया। पुलस्त्य ऋषि ने अपने शरीर से एक दूसरा पुत्र पैदा किया, जिसने अपने भाई कुबेर को बड़े क्रूर भाव से देखा। तब कुबेर ने अपने पिता को सन्तुष्ट करने के लिये तीन राक्षसियाँ भेंट की, जिनके नाम पुष्पोलट, मालिनी और रामा थे। पुष्पोलट से रावण और कुम्भकर्ण, मालिनी से विभीषण एवं रामा से खर, दूषण व सूर्पणखा उत्पन्न हुये। ये सभी सौतेले भाई कुबेर की सम्पत्ति देखकर उनसे द्वेष करने लगे। रावण ने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उनसे मनचाहा रूप धारण करने एवं सिर कट जाने पर फिर से आ जाने का वर प्राप्त किया। वर पाकर वह लंका आया और कुबेर को लंका से बाहर निकाल दिया। अन्त में कुबेर गन्धमादन पर्वत पर चले गये। कुबेर की पत्नी दानव मूर की कन्या की बेटी थी। उनके पुत्रों के नाम नल-कुबर और मणि-ग्रीव तथा पुत्री मिनाक्षी थी। बोद्ध ग्रन्थ `दीर्घ-निकाय´ के अनुसार कुबेर पुर्व जन्म में ब्राह्मण थे। वे ईख के खेतों के स्वामी थे। एक कोल्हू की आय वे दान कर देते थे। इस प्रकार वह 20 हजार वर्षों तक दान करते रहे, जिसके फल-स्वरूप इनका जन्म देवों के वंश में हुआ। `शतपथ-ब्राह्मण´ में कुबेर को राक्षस बताया गया है और चोरों तथा दुष्टों का स्वामी बताया गया है। कुबेर यक्षों के नेता हैं। जैन, बौद्ध, ब्राह्मण, वेद साहित्य में `कुबेर´ नाम से ही इनका उल्लेख है। ये उत्तर दिशा के दिक्-पाल हैं। इन्हें सोना बनाने की कला का मर्मज्ञ भी बताया जाता है। इनकी अलका पुरी, जो कैलास पर्वत पर बतायी जाती है, अत्यन्त मनोरम है। यहीं से अलकनंदा निकली है। कौटिल्य के अनुसार कूबेर की मुर्ति कोषागार में स्थापित की जानी चाहिये। कुबेर का निवास वट-वृक्ष कहा गया है। `वाराह-पुराण´ के अनुसार कुबेर की पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन की जाती है। वर्त्तमान में दीपावली पर धनतेरस को इनकी पूजा की जाती है। कुबेर को प्रसन्न करने के लिये महा-मृत्युंजय मन्त्र का दस हजार जप आवश्यक है। कुबेर मन्त्र – विनियोग – ॐ अस्य मन्त्रस्य विश्रवा ऋषि:, वृहती छन्द:, कुबेर: देवता, सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोग:। ऋष्यादि-न्यास – विश्रवा-ऋषये नम: शिरसि, वृहती-छन्दसे नम: मुखे, कुबेर-देवतायै नम: हृदि। सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे। षडग्-न्यास कर-न्यास अग्-न्यास ॐ यक्षाय अंगुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम: ॐ कुबेराय तर्जनीभ्यां स्वाहा शिरसे स्वाहा ॐ वैश्रवणाय मध्यमाभ्यां वषट् शिखायै वषट् ॐ धन-धान्यधिपतये अनामिकाभ्यां हुं कवचाय हुं ॐ धन-धान्य-समृद्धिं मे कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् नेत्र-त्रयाय वौषट् ॐ देही दापय स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां फट् अस्त्राय फट् ध्यान – मनुज बाह्य विमान स्थितम्, गरूड़ रत्न निभं निधि नायकम्। शिव सखं मुकुटादि विभूषितम्, वर गदे दधतं भजे तुन्दिलम्।। मन्त्र – “ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्याधिपतये धन-धान्य-समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।´´ उक्त मन्त्र का एक लाख जप करने पर सिद्धि होती है। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe