August 4, 2015 | aspundir | Leave a comment ध्यान का महत्त्व आप सभी ने प्रायः देखा होगा की मन्त्र जप करने से पूर्व शास्त्रों में विनियोग, न्यास, ध्यान आदि का वर्णन होता है। इनका क्या प्रयोजन है? ध्यान- स्थूल ध्यान द्वारा सूक्ष्म का बोध होता है। ‘कुलार्णव तन्त्र’ में स्पष्ट कहा गया है कि -‘जिस प्रकार गायों के सारे शरीर में व्याप्त दूध उनके स्तन से स्त्रवित होता है, उसी प्रकार सर्वत्र व्याप्त देवता प्रतिमाओं में विराजमान रहता है। प्रतिमा-रुपी बिम्ब के ध्यान-पूजन और विश्वास से देवता का सामीप्य मिलता है। जिस प्रकार गाय का घी शरीर में स्थित रहते हुए स्वतः पुष्टि-कारक नहीं होता अपितु परिश्रम के द्वारा वह पुष्टि-कारक होता है। ठीक उसी प्रकार शरीरों में स्थित परमेश्वरी ध्यान-पूजन के बिना मनुष्यों को फल नहीं देती। अतः हम सभी को चाहिए कि परमेश्वरी के अनन्त रुपों में से किसी एक रुप को ‘इष्ट’ के रुप में स्वीकार कर, नित्य उसका स्मरण-ध्यान-पूजन-जप करें। इससे ही हम जन्म-मरण-दुःखादि से छूट सकते हैं। ‘ध्यान” के विषय में शास्त्रों में लिखा है कि– अपने मन को सांसारिक बातों से समेटकर ध्यान करें। तब तक ध्यान करें, जब तक मूर्त्त-रुप का मन में प्रत्यक्ष होना स्थिर न हो जाए। चलते हुए अथवा अन्य कार्य करते हुए यदि वरण किया हुआ मूर्त्त-रुप मन से न मिटे, तो ध्यान सिद्ध समझना चाहिए। ‘ध्यान’ के सिद्ध होने पर मूर्त्त-रुप के गुण साधक में प्रकट होने लगते हैं और साधक जन्म-मरण-दुःखादि आदि से मुक्त हो जाता है। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe