।।नमस्ते कमलाकान्त नमस्ते सुखदायिन।।
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय नमो नमस्तेऽखिलपालकाय ।
नमो नमस्तेऽमरनायकाय नमो नमो दैत्यविमर्दनाय ।।
नमो नमो भक्तजनप्रियाय नमो नम: पापविदारणाय ।
नमो नमो दुर्जननाशकाय नमोऽस्तु तस्मैं जगदीश्वराय ।।
नमो नमः कारणवामनाय नारायाणायामितविक्रमाय ।
श्रीशार्ङ्गश्चक्रासिगदाधराय नमोऽस्तु तस्मै पुरुषोत्तमाय ।।
नम: पयोराशिनिवासकाय नमोऽस्तु लक्ष्मीपतयेऽव्ययाय ।
नमोऽस्तु सूर्याद्यमितप्रभाय नमो नम. पुण्यगतागताय ।।
नमो नमोऽर्केन्दुविलोचनाय नमोऽस्तु ते यज्ञफलप्रदाय ।
नमोऽस्तु यज्ञाङ्गविराजिताय नमोऽस्तु ते सज्जनवल्लभाय ।।
नमो नमः कारणकारणाय नमोऽस्तु शब्दादिविवर्जिताय ।
नमोऽस्तु तेऽभीष्टसुखप्रदाय नमो नमो भक्तमनोरमाय ।।
नमो नमस्तेऽद्भुतकारणाय नमोऽस्तु ते मन्दरधारकाय ।
नमोऽस्तु ते यज्ञवराहनाम्ने नमो हिरण्याक्षविदारकाय ।।
नमोऽस्तु ते वामनरूपभाजे नमोऽस्तु ते क्षत्रकुलान्तकाय ।
नमोऽस्तु ते रावणमर्दनाय नमोऽस्तु तेनन्दसुताग्रजाय ।।
नमस्ते कमलाकान्त नमस्ते सुखदायिने ।
श्रितार्तिनाशिने तुभ्यं भूयो भूयो नमो नम: ।।
“सबके कारणरूप आप भगवान्‌ को नमस्कार है, नमस्कार है । सबका पालन करनेवाले आपको नमस्कार है, नमस्कार है । समस्त देवताओंके स्वामी आपको नमस्कार है, नमस्कार है । दैत्योंका संहार करनेवाले आपको नमस्कार है, नमस्कार है । जो भक्तजनोंके प्रियतम, पापोंके नाशक तथा दुष्टों के संहारक हैं, उन जगदीश्वर को बार-बार नमस्कार है । जिन्होंने किसी विशेष हेतुसे वामनरूप धारण किया, जो नारस्वरूप जलमें निवास करनेके कारण ‘नारायण’ कहलाते हैं, जिनके विक्रमकी कोई सीमा नहीं है तथा जो शार्ङ्गधनुष, चक्र, खड़्ग और गदा धारण करते हैं, उन भगवान् पुरुषोत्तम को बार-बार नमस्कार हैं । क्षीरसिन्धु में निवास करनेवाले भगवान्‌को नमस्कार है । अविनाशी लक्ष्मीपतिको नमस्कार है । जिनके अनन्त तेजकी सूर्य आदिसे भी तुलना नहीं हो सकती, उन भगवान्‌को नमस्कार है तथा जो पुण्यकर्मपरायण पुरुषोंको स्वत: प्राप्त होते हैं, उन कृपालु श्रीहरिको बार-बार नमस्कार है । सूर्य और चन्द्रमा जिनके नेत्र हैं, जो सम्पूर्ण यज्ञोंका फल देनेवाले हैं, यज्ञाङ्गों से जिनकी शोभा होती है तथा जो साधु पुरुषोंके परम प्रिय हैं, उन भगवान् श्रीनिवासको बार-बार नमस्कार है । जो कारणके भी कारण, शब्दादि विषयोंसे रहित, अभीष्ट सुख देनेवाले तथा भक्तोंके हृदयमें रमण करनेवाले हैं, उन भक्तवत्सल भगवानको नमस्कार है । अद्भुत कारणरूप आपको नमस्कार है, नमस्कार है । मन्दराचल पर्वत धारण करनेवाले कच्छपरूपधारी आपको नमस्कार है । यज्ञवराहरूपमें प्रकट होनेवाले आपको नमस्कार है । हिरण्याक्षको विदीर्ण करनेवाले आपको नमस्कार है । वामनरूपधारी आपको नमस्कार है । क्षत्रियकुलका अन्त करनेवाले परशुरामरूपमें आपको नमस्कार है । रावणका मर्दन करनेवाले श्रीरामरूपधारी आपको नमस्कार है तथा नन्दनन्दन श्रीकृष्णके बड़े भाई बलरामरूपमें आपको नमस्कार है । कमलाकान्त ! आपको नमस्कार है । सबको सुख देनेवाले आपको नमस्कार हें । भगवन् ! आप शरणागतोंकी पीड़ा का नाश करने वाले हैं । आपको बारंबार नमस्कार है ।” (स्कन्दपुराण)

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