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श्रीनव-नाथ साम्प्रदायिक पूजा-विधान
यह पूजा किसी भी गुरुवार या पूर्णिमा को की जा सकती है। इसके लिए ‘वरुथिनी एकादशी, का दिन अत्यन्त शुभ है। इसी दिन भगवान् गोरखनाथ का जन्म हुआ था। पहले प्रातः शीघ्र उठकर स्नान करें। फिर बरगद, उदुम्बर व पीपल वृक्षों की उत्तर दिशा की १-१ डाली (८-९ इंच लम्बी) ले आएँ। हाथ से ही तोड़ें, शस्त्र-चाकू आदि न लगाएँ। फिर घर में लाकर उनके ६ या ८ इंच लम्बाई के टुकड़े चाकू से करें। डालियों के टुकड़ों को एक ताँबे के पात्र में रखकर दूध व पानी से स्नान कराएँ। नय वस्त्र से पोंछकर इन्हें वट-वृक्ष के ३ पर्णों पर अलग-अलग रखें। तब उन पर भस्म डालें। भस्म डालने के बाद एक डाली को दाहिने हाथ में लेकर – “ॐ चैतन्य मच्छिन्द्रनाथाय नमः” – इस मन्त्र का २१ बार जप करें तथा डाली को पर्ण पर रखें। इसी प्रकार दूसरी डाली लेकर “ॐ चैतन्य गोरक्षनाथाय नमः” मन्त्र का २१ बार जप करें। तीसरी के लिए “ॐ चैतन्य कानिफनाथाय नमः” मन्त्र का २१ बार जप करें। जप कतरते समय यह दृढ़ भावना रखें कि इन डालियों में तीनों नाथों का सञ्चार (निवास) हो गया है। इस प्रक्रिया को ‘आवाहन’ कहते हैं।
अब सभी के समक्ष गन्ध, अष्टगंध, इत्र, फूल, दक्षिणा आदि चढ़ाएँ। प्रत्येक डाली पर दाहिना हाथ रखकर ‘तीन-प्रणव-युक्य गायत्री मन्त्र’ का ११-११ बार जप करें। यथा- “ॐ भूर्भुवः स्वः। ॐ तत्सवितुर्वरेणयं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ।।”
धूप, गूगल, अगर-बत्ती, शुद्ध घी का दीप आदि भक्तिभाव से अर्पित करें। नैवेद्य में मूँग-दाल की खिचड़ी, उड़द के बड़े आदि चढ़ाएँ। प्रसाद को घर में ही बाँटें। अन्य व्यक्तियों को प्रसाद न दें।
सांयकाल पूजा विसर्जित कर उक्त तीनों डालियाँ एक गेरुए (भगवा) रेशमी वस्त्र में (थैली बनाकर) रखें। थैली का मुँह सिलाई कर बन्द कर दें तथा किसी पवित्र स्थान पर रखें। घर में नित्य उक्त तीनों नाथों का ७ बार नाम-मन्त्र-जप करें। संकल्प रखें कि ‘अब तीनों नाथ घर में है, हमारा सब कुछ वे ही चलाएँगे। हमारा मंगल ही होगा।”
प्रत्येक गुरुवार को उपवास करें या एक भुक्त रहें तथा धुप-दीप दिखाएँ। पूर्णिमा के दिन गो-ग्रास दें। कुत्ते को रोटी दें।
रात को सोते समय उक्त थैली यदि सिरहाने रखकर सोएँ, तो दुःस्वप्न नहीं होंगे। अभिचार-पीड़ित व्यक्ति को इससे झाड़ने से सभी अभिचार नष्ट होते हैं। घर से बाहर जाते समय नाथों को प्रणाम करके व प्रार्थना करके जाएँ, तो सभी कार्य सु-सम्पन्न होंगे। व्यवसाय में लाभ न होता हो, तो यह पूजा-विधान करें, लाभ होने लगेगा।
विशेषः- यदि अपने कुल-देवता या इष्ट की कृपा चाहिए, तो भी उक्त विधान कर सकते हैं। केवल नाथों के स्थान पर अपने इष्ट का जप करें।

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