नाथ-पन्थीं मन्त्रों के कुछ ज्ञातव्य
‘नाथ पन्थ’ मे गुरु का बड़ा महत्व है । ईश्वर से भी ज्यादा महत्ता ‘गुरु’ को दी जाती है । सक्षम गुरु से पहले ‘दीक्षा’ लेना और बाद मे ‘साधना’ करना उचित माना जाता है । किसी कारण वश यदि गुरु की प्राप्ति नही हो पाती और मन्त्र-साधना में रुचि है, तो ‘मन्त्र’ सिद्ध करने के विधान का पूर्ण पालन आवश्यक है ।vadicjagat
दीक्षा के बिना साबर-मन्त्र-सिद्धि-विधान
(१) ‘सूर्य-ग्रहण’ या ‘चन्द्र-ग्रहण’ में इच्छित मन्त्र का १०८ जप करना चाहिए । इससे मन्त्र-शुद्धि तथा ग्रहण-सिद्धि होती है । बाद में विधिवत् मन्त्र-साधना की जा सकती है ।
(२) किसी भी. रविवार के दिन एक कांस्य – पात्र (लोटा, बर्तन आदि) को धोकर उसे भस्म स्नान कराए । एक आसन पर उसे स्थापित करे । उसके सामने ‘तैल’ का दीपक जलाकर इच्छित मन्त्र का १०८ ‘जप’ करे । ‘जप’ पूर्ण होने के बाद हाथ में सफेद खैर की लकड़ी (१ या २ फीट की) लेकर उक्त कांस्य-पात्र पर यह कहते हुए आघात करे–
”हे मन्त्र ! सिद्धो -भवति”
ऐसा ९ बार करे । फिर दूसरे दिन सोमवार को- (१) दाल-भात, (२) सब्जी-चपाती और उड़द के ९ बड़े ‘नैवेद्य’ के रूप में लेकर किसी भैरव-मन्दिर में जाकर पूजा करे और ‘नैवेद्य’ अर्पित करे । नारियल की ‘बलि’ देकर उसका ‘प्रसाद’ बच्चों को खिलाए । ‘प्रसाद’ स्वयं न खाए, न ही घर में किसी अन्य को दे । इस विधि से इच्छित मन्त्र सिद्ध होता है । बाद में नियमित रूप से ‘साधना’ करनी चाहिए । तभी पूर्ण सिद्धि मिलेगी ।
विशेष-एक रविवार को एक ही मन्त्र की सिद्धि करनी चाहिए ।

२. नाथ-पन्थीय माला संस्कार
‘जप’-माला साधारणतया ‘रुद्राक्ष’ की ही ली जाती है । ‘माला’ को पहले गो-घृत लगाकर दो दिन रखे । फिर गाय का दूध, गाय का गोबर, गो-मूत्र और शुद्ध जल से उसे धोकर उपयोग में लाए ‘नाथ.- पन्थ’ में यही ‘माला’-संस्कार है ।

३. ‘मन्त्र-जप के विषय में आवश्यक बातें
(१) मन्त्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए ।
(२) जैसा विधान मिले, उसी प्रकार उसका पालन करना चाहिए ।
(३) भाषा की दृष्टि से मन्त्र में फेर-फार कदापि न करे । (
४) कुछ मन्त्र हिन्दी मे, कुछ मराठी में, कुछ मन्त्रों में अन्य भाषा मिश्रित है । उसे उसी प्रकार ग्रहण करना चाहिए ।
(५) बहुत से ‘साबर मन्त्र’ अर्थ-हीन होते हैं, परन्तु उसमे बीजाक्षर ऐसे क्रम से जुड़े होते हैं कि अर्थ-हीन होने पर भी वे इच्छित कार्य पूर्ण करते हैं ।
(६) रजस्वला, अशौच आदि यदि घर में है, तो मन्त्र उन दिनो मे बन्द रखना चाहिए ।
(७) गुरु से ‘दिक्षा’- प्राप्ति का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए ।

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