January 8, 2019 | 1 Comment ॥ पवमानसूक्त ॥ अथर्ववेद की नौ शाखाएँ कही गयी हैं, जिनमें शौनकीय तथा पैप्पलाद शाखा मुख्य हैं । शौनकीय शाखा की संहिता तो उपलब्ध है, किंतु पैप्पलादसंहिता प्रायः उपलब्ध नहीं होती । इसी पप्पलादसंहिता में २१ मन्त्रात्मक एक सूक्त पठित है, जो ‘पवमानसूक्त’ कहलाता है । वेद में पवमान शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद को पावमानी ऋचाएँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, जो प्रायः अभिषेक आदिके समय पठित होती हैं। ऋग्वेद में इस शब्द को प्रयोग सोम के लिये हुआ है, जो स्वतः छलनी के मध्य से छनकर शुद्ध होता है । अन्यत्र कहीं इसका वायु अर्थ में तो कहीं अग्नि अर्थ में प्रयोग हुआ है । पवमान का शाब्दिक अर्थ है शुद्ध होनेवाला या शुद्ध करनेवाला । अतः पवमानपरक मन्त्र पवित्र करनेवाले हैं । पैप्पलादीय इस पवमानसूक्त में पवमान सोम से पवित्र करने की प्रार्थना की गयी है – सहस्राक्षं शतधारमृषिभिः पावनं कृतम् । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १ ॥ जो सहस्रों नेत्रवाला, सैकड़ों धाराओं में बहनेवाला तथा ऋषियोंसे पवित्र किया गया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १ ॥ येन पूतमन्तरिक्षं यस्मिन्वायुरधिश्रितः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २ ॥ जिससे अन्तरिक्ष पवित्र हुआ है, वायु जिसमें अधिष्ठित है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २ ॥ येन पूते द्यावापृथिवी आपः पूता अथो स्वः । तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ३ ॥ जिससे द्युलोक और पृथिवी, जल और स्वर्ग पवित्र किये गये हैं, उन सहस्त्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ३ ॥ येन पूते अहोरात्रे दिशः पूता उत येन प्रदिशः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ४ ॥ जिससे रात और दिन, दिशा-प्रदिशाएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ४ ॥ येन पूतौ सूर्याचन्द्रमसौ नक्षत्राणि भूतकृतः सह येन पूताः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ५ ॥ जिससे सूर्य और चन्द्रमा, नक्षत्र और भौतिक सृष्टि रचनेवाले पदार्थ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ५ ॥ येन पूता वेदिरग्नयः परिधयः सह येन पूताः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ६ ॥ जिससे वेदी, अग्नियाँ और परिधि पवित्र की गयी हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ६ ॥ येन पूतं बर्हिराज्यमथो हविर्येन पूतो यज्ञो वषट्कारो हुताहुतिः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ७ ॥ जिससे कुशा, आज्य, हवि, यज्ञ और वषट्कार तथा हवन की हुई आहुति पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ७ ॥ येन पूतौ व्रीहियवौ याभ्यां यज्ञो अधिनिर्मितः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ८ ॥ जिसके द्वारा व्रीहि और जौ (अर्थात् प्राणापान) पवित्र हुए हैं, जिससे यज्ञका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ८ ॥ येन पूता अश्वा गावो अथो पूता अजावयः । तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ९ ॥ जिससे अश्व, गौ, अजा, अवि [और पुरुषसंज्ञक] प्राण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ९ ॥ येन पूता ऋचः सामानि यजुर्जाह्मणं सह येन पूतम् । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥ १० ॥ जिसके द्वारा ऋचाएँ, साम, यजु और ब्राह्मण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधारके द्वारा पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १० ॥ येन पूता अथर्वाङ्गिरसो देवताः सह येन पूताः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ११ ॥ जिससे अथर्वाङ्गिरस और देवता पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ११ ॥ येन पूता ऋतवो येनार्तवा येभ्यः संवत्सरो अधिनिर्मितः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १२ ॥ जिससे ऋतु तथा ऋतुओं में उत्पन्न होनेवाले रस पवित्र हुए हैं, एवं जिससे संवत्सरका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १२ ॥ येन पूता वनस्पतयो वानस्पत्या ओषधयो वीरुधः सह येन पूताः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १३ ॥ जिससे वनस्पतियाँ, पुष्पसे फल देनेवाले वृक्ष, ओषधियाँ और लताएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १३ ॥ येन पूता गन्धर्वाप्सरसः सर्पपुण्यजनाः सह येन पूताः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १४ ॥ जिससे गन्धर्व और अप्सराएँ, सर्प और यक्ष पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १४ ॥ येन पूताः पर्वता हिमवन्तो वैश्वानराः परिभुवः सह येन पूताः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १५ ॥ जिससे हिममण्डित पर्वत, वैश्वानर अग्नियाँ और परिधि पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १५ ॥ येन पूता नद्यः सिन्धवः समुद्राः सह येन पूताः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १६ ॥ जिससे नदियाँ, सिंधु आदि महानद और सागर पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १६ ॥ येन पूता विश्वेदेवाः परमेष्ठी प्रजापतिः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १७ ॥ जिससे विश्वेदेव और परमेष्ठी प्रजापति पवित्र हुए हैं, उसे सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १७ ॥ येन पूतः प्रजापतिर्लोकं विश्वं भूतं स्वराजभार । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १८ ॥ जिससे पवित्र होकर प्रजापतिने समस्त लोकको, भूतोंको और स्वर्गको धारण किया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १८ ॥ येन पूतः स्तनयित्नुरपामुत्सः प्रजापतिः । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १९ ॥ जिससे विद्युत् और जलोंके आश्रय प्रजापालक मेघ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सौमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १९ ॥ येन पूतमृतं सत्यं तपो दीक्षां पूतयते । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २० ॥ जिससे ऋत और सत्य पवित्र हुए हैं, जो तप और दीक्षाको पवित्र करता है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २० ॥ येन पूतमिदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् । तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २१ ॥ जिससे जो कुछ भूत और भविष्य है, सभी पवित्र हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २१ ॥ ( अथर्ववेद पैप्पलाद) Related