September 25, 2015 | aspundir | Leave a comment पाताली हनुमान् उत्तरप्रदेश के हमीरपुर का “पाताली-हनुमान्” मन्दिर । यह अत्यन्त पवित्र स्थान माना जाता है, मान्यता है कि यहाँ हनुमान् जी स्वयं प्रकट हुए थे, वे सभी भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं । श्रद्धालुओं की रक्षा, साधकों के शत्रुओं का शमन करते हैं, विवाह में आ रही बाधाएँ दूर करते है इत्यादि मान्यताओं के चलते श्रद्धालुओं की उस पावन धाम के प्रति अगाध आस्था है । इस मन्दिर के बारे में जो उपरोक्त मान्यताएँ हैं, उन्हें दर्शनार्थी अनुभूत बताते हैं । श्रद्धालु बताते हैं कि वर्षों पूर्व यहाँ प्रतिष्ठित हनुमान् की मूर्ति पाताल से जरा-सी निकली थी, जो शनैः-शनैः बढ़ती जा रही हैं । एक न्यूज चैनल के अनुसार मन्दिर के पुजारी अन्नी बाबा का कहना है कि इस मन्दिर की मूर्ति पाताल के भीतर कितनी है, इसकी नाप आज तक कोई भी नहीं ले सका । हालाँकि इसके लिए कई विशेषज्ञों ने प्रयास किया है । न ही, इस सवाल का कोई उत्तर खोज सका है कि यह मूर्ति निरन्तर बड़ी क्यों हो रही है ? श्रद्धालुओं के अनुसार वह चमत्कारिक मूर्ति पाताल में गहरे तक हो सकती है, जो धीरे-धीरे बाहर आ रही हैं । घण्टी भेंट करते हैं श्रद्धालु बताते हैं कि पाताली हनुमान् जी के दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है । इतना जरुर है कि अभीष्ट कार्य होने के बाद भक्त अपनी मनौती के अनुसार प्रसाद के साथ एक घण्टी भी चढ़ाते हैं । वर्तमान में प्रतिदिन पाताली हनुमान् जी के दर्शन के लिए भक्त आते हैं, लेकिन मंगलवार और शनिवार को यहाँ मेला-सा भरता है । मान्यता है कि द्वापर युग में पाण्डवों ने जब वनवास के दौरान प्रकट हुई हनुमान् जी की चमत्कारिक मूर्ति को देखा, तब उन्होंने वहाँ मन्दिर बनवाया । शनैः-शनैः मन्दिर की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई । उज्जैन में भी है पाताल से प्रकट हनुमान् जी महाकाल की नगरी उज्जैन में भी एक हनुमान् मन्दिर की मूर्ति आधी बाहर तथा आधी जमीन में समाई हुई है । उन्हें देख कर लगता है कि रामभक्त हनुमान् पाताल से निकल रहे हैं । यह मूर्ति नृत्य करते हुए हनुमान् जी की हैं । इसलिए इस मन्दिर को नृत्याकार हनुमान् मन्दिर कहते हैं । किवदन्ती है कि जब अहिरावण भगवान् श्रीराम तथा लक्ष्मण जी को उठा कर पाताल में ले गया था, तब हनुमान् जी ने वहाँ जाकर उन्हें मुक्त करवाया था । इसलिए यह मूर्ति आधी जमीन में समाई हुई है । कुछ श्रद्धालुओं का मानना है कि श्रीराम व लक्ष्मण जी को अहिरावण के बन्धन से मुक्त करवाने की खुशी में हनुमान् जी रामधुनी गाते हुए झूमे-नाचे थे । इसी कारण उनकी मूर्ति की नृत्य मुद्रा है । नृत्याकार हनुमान् जी के मूँगफली और चिरौंजी का प्रसाद चढ़ता है । श्रद्धालु बताते हैं कि जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है, वे भक्त तो अपनी बोलमा (मनौती) के अनुसार प्रसाद चढ़ाते ही हैं, आम भक्त भी यही प्रसादी लाते हैं । Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe