पितृ दोष शान्ति के उपाय

पितृदोष का नाम सुनते ही व्यक्ति चिंतित हो उठता है और अपनी सभी समस्याओं एवं कष्टों के कारण के रूप में उसी दोष को देखने लगता है । साथ ही उसके उपाय के लिए वह चाहता है कि कोई एक पूजा करवा दे, जिससे उसे इस दोष से छुटकारा मिल जाए । ज्योतिष एवं धर्मग्रन्थों में ऐसे अनेक उपाय दिए गए हैं, जिनसे पितरों को सन्तुष्टि होती है और उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है । ऐसे ही कुछ उपाय प्रस्तुत है ।


1. पितृस्तोत्र आदि का पाठ : प्रत्येक दिन पितरों की स्तुति में निम्नलिखित में से किसी एक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए :
(अ) रुचिस्तव (अर्चितानाममूर्त्तानां पितॄणां …)
(ब) पितृशान्ति स्तोत्र (नमो वः पितर उर्जे…)
(स) पितृसूक्त (उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमा…)
(द) पितृसूक्त (अपेतो यन्तु पणयोऽसुम्ना…)
2. प्रत्येक दिन एवं श्राद्ध के दिन पितृगायत्री का जप करना चाहिए :
(अ) ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ॥
(ब) ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत ॥
3. कथा श्रवण एवं स्तोत्रादि का पाठ : पितृदोष शान्ति के लिए निम्नलिखित का श्रवण करना चाहिए:
(अ) श्रीमद्भागवत महापुराण
(ब) श्रीमद्भगवद् गीता
(स) वाल्मीकि रामायण
(द) सत्यनारायण व्रत कथा
(य) हरिवंशपुराण
उपर्युक्त पाँचों का आयोजन यदि घर पर हो सके, तो अधिक अच्छा है ।
(र) महाभारत
(ल) गरुडपुराण
पितृदोष शान्ति के लिए निम्नलिखित स्तोत्र आदि का भी पाठ करना चाहिए :
(अ) विष्णुसहस्रनाम
(ब) गजेन्द्र मोक्ष
(स) रुद्राष्टाध्यायी
(द) पुरुष सूक्त
(य) ब्रह्म सूक्त
(र) विष्णु सूक्त
(ल) रुद्र सूक्त
(व) यम सूक्त
(श) प्रेत सूक्
अन्तिम पाँच का पाठ एक साथ होता है । इसके अतिरिक्त मन्दिर या घर में भजन-कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करने से भी पितृदोष शान्त होता है ।
4. विधिवत् श्राद्ध : श्राद्ध पितृदोष शान्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी उपाय है । सभी पूर्वजों की और विशेष रूप से सपिण्ड पितरों की क्षयाह एवं महालय पक्ष की तिथि में श्राद्ध करना चाहिए । महालय पक्ष की प्रत्येक तिथि को भी ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों का श्राद्ध करना चाहिए तथा अन्तिम दिन अर्थात् अमावस्या को सर्वपितृ श्राद्ध करना चाहिए । इसके अतिरिक्त प्रत्येक मास की अमावस्या को एवं अष्टका, अन्वष्टका इत्यादि श्राद्ध भी सम्पन्न किए जाने चाहिए ।
5. त्रिपिण्डी आदि श्राद्ध करना : पितृदोष की शान्ति के लिए विधिवत् त्रिपिण्डी आदि श्राद्ध करवा लेना चाहिए । इससे राहत मिलती है ।
6. ग्रहों से सम्बन्धित उपाय : जिन ग्रहों के कारण पितृदोष बन रहा है, उनके मन्त्रों का जप एवं स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए तथा व्रत-दान आदि कार्य भी सम्पन्न करने चाहिए । नवग्रह रुद्राक्ष माला धारण करने से भी राहत मिलती है ।
7. मृतक के मोह को समाप्त करने के प्रयास करना : मोहग्रस्त पितर की एक ओर तो गति नहीं होती है, वहीं दूसरी ओर वह पितृदोष उत्पन्न करता है । सामान्यतः मृतक का मोह उसके उत्तरदायित्वों का पूरा न होना होता है । प्रयास करके मृतक के शेष रहे उत्तरदायित्वों को पूर्ण करें ।
(अ) मृतक की अन्तिम इच्छा पूर्ण करना ।
(ब) मृतक के जीवित जीवनसाथी की देखभाल अच्छी एवं आदरसहित करना ।
(स) कुल परम्परा का पालन करना और पितर को जिन आचरणों से कष्ट होने की सम्भावना है, उनको न करना ।
8. अन्य उपाय :
(i) प्रतिदिन पितरों का स्मरण एवं पूजन किया जाना चाहिए ।
(ii) प्रतिदिन एवं विशेष अवसरों पर कुलदेवता आदि का पूजन करना चाहिए ।
(iii) सपिण्ड पितरों से पूर्व के पूर्वजों का गया श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।
(iv) तीर्थादि पर पितरों के निमित्त श्राद्ध-तर्पणादि अवश्य करना चाहिए ।
(v) सन्तान, विवाह आदि कार्यों में वृद्धि श्राद्ध सम्पन्न किया जाना चाहिए ।
(vi) घर की दक्षिण दिशा में ऊँचे एवं पवित्र स्थान पर पितरों के निमित्त प्रत्येक दिन सायंकाल चौमुँहा दीपक जलाना चाहिए । साथ ही, एक जलपात्र भी वहाँ रखना चाहिए ।
(vii) दीपावली आदि अवसरों पर यमदीपदान आदि करना ।
(viii) दान : श्राद्ध एवं अन्य अवसरों पर योग्य ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र, आभूषण, शय्या, देवमूर्ति, गाय, धन आदि का दान करना चाहिए ।
(ix) होम : वर्ष में एक बार घर में हवन का आयोजन करना चाहिए और उसमें देवताओं के साथ-साथ पितरों की भी आहुति लगनी चाहिए ।
(x) रुद्राभिषेक : वर्ष में एक बार रुद्राभिषेक करवाएँ ।
(xii) व्रतादि : ऋषिपंचमी, पूर्णिमा, चान्द्रायण आदि व्रत करने चाहिए ।
(xiii) पीपल पूजन : पीपल के वृक्ष का पूजन करना चाहिए । वहाँ जल चढ़ाना चाहिए और उसकी प्रदक्षिणा करनी चाहिए । वर्ष में कम से एक पीपल का वृक्ष भी लगाना चाहिए ।
(xiv) सार्वजनिक हित के कार्य : प्याऊ, कुआँ, तालाब, मन्दिर आदि का निर्माण करवाना चाहिए । अस्पताल, गौशाला, विद्यालय आदि को दान करना चाहिए ।
(xv) ब्राह्मण एवं गरीबों को भोजन करवाना चाहिए ।
(xvi) माता-पिता, साधु-सन्त, गुरुजन, रोगी, वृद्ध इत्यादि की सेवा-सुश्रूषा करनी चाहिए ।
(xvii) सदाचरण का पालन करना चाहिए ।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.