September 28, 2015 | aspundir | Leave a comment पितृ-यज्ञः वार्षिक श्राद्ध हिन्दू धर्म-ग्रन्थों के अनुसार प्रत्येक गृहस्थ हिन्दू को पाँच यज्ञों को अवश्य करना चाहिए- १॰ ब्रह्म-यज्ञ – प्रतिदिन अध्ययन और अध्यापन करना ही ब्रह्म-यज्ञ है। २॰ पितृ-यज्ञ – ‘श्राद्ध’ और ‘तर्पण’ करना ही पितृ-यज्ञ है। ३॰ देव-यज्ञ – देवताओं की प्रसन्नता हेतु पूजन-हवन आदि करना। ४॰ भूत-यज्ञ – ‘बलि’ और ‘वैश्व देव’ की प्रसन्नता हेतु जो पूजा की जाती है, उसे ‘भुत-यज्ञ’ कहते हैं तथा, ५॰ मनुष्य-यज्ञ – इसके अन्तर्गत ‘अतिथि-सत्कार’ आता है। उक्त पाँचों यज्ञों को नित्य करने का निर्देश है। पितृ-यज्ञ हेतु मनीषियों ने हमारे यहाँ आश्विन या कुआर के कृष्ण-पक्ष के पूरे पन्द्रह दिन (मतान्तर से १६ दिन) विशेष रुप से सुरक्षित किए हैं। इस पूजा के लिए कुछ मुख्य बातें इस प्रकार है — (क) पितृ-पक्ष के दिनों में अपने स्वर्गीय पिता, पितामह, प्रपितामह तथा वृद्ध प्रपितामह और स्वर्गीय माता, मातामह, प्रमातामह एवं वृद्ध-प्रमातामह के नाम-गोत्र का उच्चारण करते हुए अपने हाथों की अञ्जुली से जल प्रदान करना चाहिए (यदि किसी कारण-वश किसी पीढ़ी के पितर का नाम ज्ञात न हो सके, तो भावना से स्मरण कर जल देना चाहिए)। (ख) पितरों को जल देने के लिए विशेष वस्तुओं के प्रबन्ध की आवश्यकता नहीं है। केवल १॰ कुश, २॰ काले तिल, ३॰ अक्षत (चावल), ४॰ गंगा-जल और ५॰ श्वेत-पुष्प पर्याप्त हैं। इन्हीं से श्रद्धा-पूर्वक जल प्रदान से पितर अल्प समय में सन्तुष्ट हो जाते हैं और कल्याण हेतु आशीर्वाद देते हैं। (ग) ‘स्कन्द-महा-पुराण’ में भगवान् शिव पार्वती जी से कहते हैं कि – ‘हे महादेवि ! जो ‘श्राद्ध नहीं करता, उसकी पूजा को मैं ग्रहण नहीं करता। भगवान् हरि भी नहीं ग्रहण करते हैं।॰॰॰॰॰॰’ (घ) यदि किसी को किसी कारण-वश माता-पिता की मृत्यु-तिथि का ज्ञान न हो, तो उसे ‘अमावस्या’ को ही वार्षिक-श्राद्ध करना चाहिए। (ङ) श्राद्ध-कर्त्ता को केवल एक समय भोजन करना चाहिए अर्थात् रात्रि को भोजन नहीं करना चाहिए। श्राद्ध के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। Please follow and like us: Related