September 26, 2015 | Leave a comment श्री पीताम्बरा आरती पीताम्बरि रवि कोटि, ज्योति परा-माया, माँ ज्योति परा माया । बक-मुख ज्योति महा-मुख, बहु कर पर छाया ।। वर कर अष्टादश भुज, शत भुज शत काया । माँ शत भुज शत काया । द्वि-भुज चतुर्भुज बहु-भुज, भुज-मय जग माया ।। जय देवि, जय देवि ! मणि-मण्डप वेदी, माँ, मणिपुर मणि-वेदी । चिनतामणि सिंहासन, चिन्तामणि सिंहासन, सुर तरु-वर वेदी । जय देवि, जय देवि ! ।। १ तीम नयन रवि-शशि-वसु, इन्दीवर-दल से, मां इन्दीवर-दल से । खचिता कर्ण हरण छवि, खंजन-मृग छल से । अत्याकृति छवि पर छवि, भय-हर भय कर से, माँ, भय-हर भय पर से । मोहन मुक्ति-विधायन, कोर कृपा परसे । जय देवि, जय देवि ! ।। २ मुकुट महा-मणि शशि-पर, कच विलिखित मोती, माँ, कच विलिखित मोती । नखत जटित बैंदी सिर, भाल-भरित जोती । नक-बेसर तर लटकत, गज-मुक्ता मोती , माँ, गज-मुक्ता मोती । जन भव-भय वारत नित, पुण्य सदन स्रोती । जय वेदि, जय देवि ! ।। ३ चिबुक अधर बिम्बाधर, दाड़िम दन्त-कली, माँ, दाड़िम दन्त-कली । रस-मय गन्ध सुमन पर, श्वासन्ह प्रति निकली । करण अतीव मनोहर, ताटंकित घुँघुरी, माँ, ताटंकित घुँघुरी । रत्नादिक सुर सम हिल, सुर पर मधु सुर री । जय देवि, जय देवि ! ।। ४ मदन महा-छवि रति-छवि, छवि पर छवि शोभा, माँ छवि पर मुख-शोभा । मदन-दहन मन-मोहनि, रुप-अवधि ओभा । मणिपुर अमरित सर वर, कम्बु-छटा ग्रीवा, माँ, कम्बु-छटा ग्रीवा । रुप-सुधा सर रस कर, सार सुमुख ग्रीवा । जय देवि, जय देवि ! ।। ५ सुर-तरु कुसुम सफल तर, बगल भुजग दोनों, माँ बगल भुजग दोनों । लटकत फण नीचे कर, भुज कर मणि दोनों । फणि-मणि भुज कर कंकण, रत्न-जटित ज्योती, माँ रत्न-जटित ज्योति । भुवन-भुवन निज जन मन, पथ-दर्शन स्रोती । जय देवि, जय देवि ! ।।६ मध्य महा-द्युति द्योतित, कैलाशो मेरुः, माँ, कैलाशो मेरुः । तेज महा-तप सुर-मुनि, रक्त-शिखर गेरु । सत-लर गज-मुक्ता कर द्वय गिरि बिच गंगा, माँ, द्वय गिरि बिच गंगा । तारन भक्त-उधारन, पय सुख मुख संगा । जय देवि, जय देवि ! ।।७ नाभि गँभीर विशोधन, यन्त्र-कला कलसी, माँ, यन्त्र कला कलसी । कज्जल गिरि कल्मष मन, जन फट कट मलसी, सोमल रोमावलि-मिस, छटक बिखर दीखे, माँ, छटक-बिखर दीखे । मणिपुर तेज बनत मणि, पारस गुण सीखे । जय देवि, जय देवि ! ।। ८ बिन्दु त्रिकोण निवासिनि, शक्ति जगज्जननी, माँ शक्ति जगज्जननी । जंघोरु-धर पोषिणि, पद निज जन तरिणी ।। माया-बीज-विलासिनि, प्रणवार्चित रमिणी, माँ, प्रणवार्चित रमिणी । अनघ अमोघ महा-शिव, सह शिर मोति मणी । जय देवि, जय देवि ! ।। ९ त्र्यस्र षडस्र सु-वृतं, चाष्ट-दलं पद्मं । पीयूषोदधि बिच रुच, शुच पद्मं रक्तं, माँ, शुच पद्मं रक्तं । सिंहासन प्रेतासन, मणि पर मणि मुक्तं । जय देवि, जय देवि ! ।। १० कामिक कर्म स्वजन-पन-पालिनि पर-विद्या, माँ, पालिनि पर-विद्या । सिद्धा सिद्धि सनातनि, सिद्धि-प्रदा विद्या । सिद्धि-सदनि, सिद्धेश्वरि सरमा, माँ, सिद्धेश्वरि सरमा । मुक्त विलासिनि ‘मोती’, मुक्ति-प्रदा परमा । जय देवि, जय देवि ! । मणि मण्डप वेदी, माँ मणिपुर मणि-वेदी । चिन्तामणि सिंहासन, चिन्तामणि सिंहासन, सुर-तरु वर वेदी । जय देवि, जय देवि ! ।। ११ Related