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भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न मन्त्र 

आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

vadicjagat(१) एकाक्षर कृष्णः
क॰ “क्लीं” (हिन्दी-तन्त्रसार / मेरुतन्त्र)
ख॰ “ग्लौं” (मेरु-तन्त्र)
ग॰ बाल-गोपाल-मन्त्र- “कृः” (हिन्दी-तन्त्रसार)
घ॰ बाल-गोपाल-मन्त्र- “कृं” (मेरु-तन्त्र)

(२) द्वयक्षर बाल-गोपालः
“कृष्ण” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(३) त्र्यक्षर बाल-गोपालः
क॰ “क्लीं कृष्ण” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “ॐ कृष्ण” (मेरु-तन्त्र)

(४) चतुरक्षर बाल-गोपालः
क॰ “क्लीं कृष्णाय” ((हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “क्लीं कृष्ण क्लीं” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ग॰ “क्ल्रीं कृष्ण क्ल्रीं” (हिन्दी-तन्त्रसार)
घ॰ “ॐ कृष्णाय” (मेरु-तन्त्र)

(५) पञ्चाक्षर बाल-गोपाल
क॰ “कृष्णाय नमः” (हिन्दी-तन्त्रसार / मेरुतन्त्र)
ख॰ “क्लीं कृष्णाय क्लीं” (हिन्दी-तन्त्रसार / मेरुतन्त्र)

(६) षडक्षर बाल-गोपालः
क॰ “गोपालाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “क्लीं कृष्णाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार / मन्त्र-रत्न-मञ्जूषा)
ग॰ “क्लीं कृष्णाय नमः” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(७) सप्ताक्षर बाल-गोपालः
क॰ “कृष्णाय गोविन्दाय” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय क्लीं” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(८) अष्टाक्षर-कृष्णः
क॰ “क्लीं ह्रषिकेशाय नमः” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ग॰ “उत्तिष्ठ श्रीकृष्ण स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)
घ॰ “श्री कृष्णः शरणं मम” (मेरु-तन्त्र)
ड़॰ “बाल-गोपाल-मन्त्र- “क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय” (हिन्दी-तन्त्रसार)
च॰ बाल-गोपाल-मन्त्र- “दधि-भक्षणाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
छ॰ बाल-गोपाल-मन्त्र- “सु-प्रसन्नात्मने नमः” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ज॰ बाल-गोपाल-मन्त्र- “गोकुल-नाथाय नमः” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(९) नवाक्षर बाल-गोपाल-मन्त्र-
क॰ “क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय क्लीं” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “कृष्णाय गोविन्दाय नमः” (मेरु-तन्त्र)

(१०) दशाक्षर कृष्ण मन्त्रः
क॰ “गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार / मेरु-तन्त्र)
ख॰ दशाक्षर-बाल-गोपाल-मन्त्र- “क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः” (हिन्दी-तन्त्रसार / मेरु-तन्त्र)
ग॰ “बाल-वपुषे कृष्णाय नमः” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(११॰) एकादशाक्षर कृष्णः

क॰ “क्लीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार / मेरु-तन्त्र)
ख॰ “ह्रीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)
ग॰ “श्रीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)
घ॰ बाल-गोपाल-मन्त्र- “बाल-वपुषे क्लीं कृष्णाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(१२) द्वादशाक्षर कृष्ण मन्त्रः
क॰ “श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “ह्रीं श्रीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)
ग॰ “ॐ गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा ॐ” (मेरु-तन्त्र)

(१३) त्रयोदशाक्षर कृष्णः
क॰ “श्रीं ह्रीं श्रीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “ह्रीं श्रीं क्लीं गोपी-जन वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ग॰ “क्लीं ह्रीं श्रीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(१४) चतुर्दशाक्षर कृष्णः
क॰ “ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(१५) पञ्च-दशाक्षर कृष्णः
क॰ “ॐ नमः श्रीकृष्णाय गोविन्दाय हुं फट् स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “गोविन्दाय हुं फट् स्वाहा ॐ बनमः श्रीकृष्णाय” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ग॰ बाल-गोपाल-मन्त्र- “क्लीं कृष्णाय क्लीं नन्द-बाल-वपुषे स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)

(१६) षोडशाक्षर कृष्णः
क॰ “ॐ नमो भगवते रुक्मिणी-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “श्रीं ह्रीं क्लीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा क्लीं ह्रीं श्रीं” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ग॰ “ॐ नमो कृष्णाय देवकी-पुत्राय हुं फट् स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)

(१७) अष्टादशाक्षर कृष्णः

क॰ “क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार / मन्त्र-रत्न-मंजूषा)
ख॰ “श्रीकृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)
ग॰ “श्रीमन्युकुन्द-चरणौ सदा शरणमहं प्रपद्ये” (मेरु-तन्त्र)

(१८) विंशत्यक्षर (रत्नाभिषेक)
क॰ “ह्रीं श्रीं क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (हिन्दी-तन्त्रसार)
ख॰ “वासुदेवाय नगडच्छेदिने वासुदेवाय हुं फट् स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)

(१९) द्वा-विंशत्यक्षरः
” ऐं क्लीं कृष्णाय ह्रीं गोविन्दाय श्रीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा सौः” (हिन्दी-तन्त्रसार)

(२०) द्वा-त्रिंशदक्षरः
क॰ “देवकी-सुत गोविन्द वासुदेव जगत्-पते ! देहि मे तनयं कृष्ण ! त्वामहं शरणं गतः” (मेरु-तन्त्र)
ध्यानः शंख-चक्र-धरं देवं श्याम-वर्णं चतुर्भुजं, सर्वाभरण-सन्दीप्तं पीत-वाससमच्युतम्।
मयूर-पिच्छ-संयुक्तं विष्णु-तेजोपवृंहितं, समर्पयन्तं विप्राय नष्टानानीय बालकान्।।
ख॰ “ग्लौं क्लीं नमो भगवते नन्द-पुत्राय बालक-रुपाय बालाय गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा” (मेरु-तन्त्र)

(२१) द्वि-पञ्चादशाक्षरः
“ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ह्रीं ग्रीं ज्रीं त्रीं जय जय कृष्ण कृष्ण निरन्तरं क्रीं त्रीं नित्य-प्रमुदित-रेतसे नित्य-क्रियाय कृष्णाय क्लीं गोपी-जन-वल्लभाय स्वाहा ग्रीं ह्रीं”

(२२) श्री-कृष्ण-गायत्रीः
“दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्”

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विपत्ति-नाश के लिये
(१) “हे कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन।।”

विधिः- इस मन्त्र का कम-से-कम १०८ बार स्वयं जप करे। कुछ दिन जपने के बाद स्वप्न में आदेश सम्भव है। अनुष्ठान के लिये ५१००० जप और दशांश ५१०० जप या आहुतियां आवश्यक है।

(२) “हा कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन।।
हा कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
कौरवैः परिभूतां मां किं न त्रायसि केशवः।।”

विधिः- उपर्युक्त दोनों मन्त्रों का ३२ हजार जप करने से बड़े-बड़े संकट दूर हो जाते हैं।

(३) “ॐ कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।”

विधिः- प्रतिदिन विधिवत् भगवान् श्रीकृष्ण का या भगवान् विष्णु का पूजन करके उपर्युक्त मन्त्र का १२ दिनों में २५००० जप करने से स्वप्न के द्वारा कार्यसिद्धि का ज्ञान होता है।

(४) “ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णायाकुण्ठमेधसे।
सर्वव्याधिविनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।।”

विधिः- इस मन्त्र का प्रतिदिन प्रातःकाल जगते ही बिना किसी से कुछ बोले तीन बार जप करने से सब अनिष्ट का नाश होता है। इसका अनुष्ठान ५१००० मन्त्र जप तथा ५१०० दशांश हवन से सम्पन्न हो जाता है।

(५) “ॐ रां श्रीं ऐं नमो भगवते वासुदेवाय ममानिष्टं नाशय नाशय मां सर्वसुखभाजनं सम्पादय सम्पादय हूं हूं श्रीं ऐं फट् स्वाहा।।”
विधिः- इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करना चाहिये।

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विधिः- संकटासन्न द्रोपदी की अवस्था का ध्यान करें तथा ७ बार उक्त मन्त्र का जाप करें। अथवा प्रतिदिन १०८ बार जप करना चाहिये।

सब प्रकार की मनोकामना की पूर्ति के लिये
Content is available only for registered users. Please login or register विधिः- इस मन्त्र को कदम्बकाष्ट की छोटी पीठिका (चौकी) पर अष्टगन्ध अथवा कपूर और केशर से अनार की कलम से लिखकर षोडशोपचार से पूजन करे। प्रतिदिन का जप १८०० से कम नहीं होना चाहिये। कुल जप-संख्या सवा लाख है। तदुपरान्त साढ़े बारह हजार दशांश होम के लिये जप करना चाहिये।

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