August 18, 2015 | aspundir | Leave a comment प्रार्थना “ॐ वाङ्मे मनसि प्रतिष्ठिता, मनो मे वाचि प्रतिष्ठितमाविरावीर्म एधि वेदस्य म आणीस्थः श्रुतं मे मा प्रहासीः। अनेनाधीतेनाहोरात्रान् संदधाम्यृतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद् वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारमवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्ति।।” (ऋग्वेदीय शान्तिपाठ) ‘हे सच्चिदानन्दस्वरुप परमात्मन्, मेरी वाणी मन में स्थित हो जाये और मन वाणी में स्थित हो जाये। हे प्रकाशस्वरुप परमेश्वर, आप मेरे लिये प्रकट हो जाइये। हे मन और वाणी, तुम दोनों मेरे लिये वेदविषयक ज्ञान की प्राप्ति कराने वाले बनो। मेरा गुरुमुख से सुना हुआ और अनुभव में आया हुआ ज्ञान मेरा त्याग न करे- मैं उसे कभी न भूलूँ। मेरी इच्छा है कि अपने अध्ययन द्वारा मैं दिन और रात एक कर दूँ। मैं वाणी से श्रेष्ठ शब्दों का उच्चारण करुँगा, सर्वथा सत्य बोलूँगा। वे परब्रह्म परमात्मा मेरी रक्षा करें। वे मुझे ब्रह्मविद्या सिखाने वाले आचार्य की रक्षा करें, आचार्य की रक्षा करें। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आदिभौतिक- तीनों तापों की शान्ति हो।’ “ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्ति।।” (शुक्लयजुर्वेदीय शान्तिपाठ) ‘वह सच्चिदानन्द परब्रह्म पुरुषोत्तम सब प्रकार से सदा-सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत् भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है; क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत् पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लेने पर भी वह पूर्ण ही बच रहता है। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आदिभौतिक- तीनों तापों की शान्ति हो।’ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe