आम्नाय भेद क्रम दीक्षा
बगलामुखी आराधना क्रम-पूर्वक करने से लाभ मिलता है । क्रम भिन्न कर एकदम उच्च प्रयोगों को करने से बाधा व हानि होती है । पहले एकाक्षरी, चतुरक्षरी, अष्टाक्षरी मंत्र जप के बाद ३६ अक्षरात्मक मंत्र ग्रहण करना चाहिये । साथ में गणेश, वटुक, मृत्युंजय, दक्षिणकालिका, सौभाग्य-विद्या, हृदय, शताक्षर, बगलापञ्चास्त्र, कुल्लुका, ब्रह्मास्त्र गायत्री, छिन्नमस्ता मंत्र प्रयोग का विधान भी कहा है ।
पूर्णाभिषेक क्रम दीक्षाः- पूर्णाभिषिक्त साधक को षड् आम्नाय मंत्रों का प्रयोग कर संपूर्णता प्राप्त करनी चाहिये ।
पूर्वाम्नाय – ब्रह्मास्त्र गायत्री, हृदय, नवाक्षर, एकदशाक्षर मंत्र ।
दक्षिणाम्नाय – षट्त्रिंदशक्षरी, एकाक्षरी, चतुरक्षरी, अष्टाक्षरी मंत्र ।
पश्चिमाम्नाय – त्र्यक्षर, शताक्षरः मालामंत्र, शाबर मंत्र, पर प्रयोग भक्षिणी विद्या ।
उत्तराम्नाय – पञ्चास्त्रमंत्राः, बगलास्त्रम्, कवच विद्या ।
ऊर्ध्वाम्नाय – १॰ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सकल ह्रीं हसकहल ह्रीं कएईल ह्लीं (इति पराषोडशी)
२॰ ऐं ह्रीं श्रीं सौं क्लीं ऐं ह्लीं श्रीं सकल ह्रीं हसकहल ह्रीं कएईल ह्लीं ऐं क्लीं सौः श्रीं ह्लीं (इति पराषोडशी रुपम्) ।
ध्यायेत् पद्मासनस्थां विकसित वदनां पद्मपत्राऽऽयताक्षीम् ।
हेमाभां पीतवस्त्रां करकलित लसद्धेमपद्मां वरांगीम् ।।
सर्वाऽलंकारयुक्तां सततमभयदां भक्तनम्रा भवानीम् ।
श्रीविद्यां शान्तमूर्ति सकलसुरनुतां सर्वसंपत्प्रदात्रीम् ।।
परागायत्री मंत्र –
हंसः सोहं ह्लौं ह्लौं ।

baglamukhi

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