February 15, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-गणपतिखण्ड-अध्याय 30 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ तीसवाँ अध्याय परशुराम का शिवजी से अपना अभिप्राय प्रकट करना, उसे ‘सुनकर भद्रकाली का कुपित होना, परशुराम का रोने लगना, शिवजी का कृपा करके उन्हें नाना प्रकार के दिव्यास्त्र एवं शस्त्रास्त्र प्रदान करना [ तदनन्तर महादेवजी के पूछने पर ] परशुराम ने कहा — ‘ दयानिधान ! मैं भृगुवंशी जमदग्नि का पुत्र परशुराम हूँ । आपका दास हूँ । आपके शरणागत हूँ । आप मेरी रक्षा करें।’ इसके बाद सारी घटना विस्तार से सुनाकर परशुराम ने कहा कि मैंने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियशून्य करने तथा मेरे पिता का वध करने वाले कार्तवीर्य को मारने की प्रतिज्ञा की है । आप मेरी प्रतिज्ञा को पूर्ण करें । इस बात को सुनकर भगवती पार्वती और भद्रकाली ने क्रुद्ध होकर परशुराम की भर्त्सना की । तब परशुराम भगवती गौरी और कालिका के क्रोध भरे वचन सुनकर उच्च-स्वर से रोने लगे और प्राण-विसर्जन के लिये तैयार हो गये। तब दयासागर भक्तानुग्रहकारी प्रभु महादेव ने ब्राह्मण-बालक को रोते देखकर स्नेहार्द्रचित्त से अत्यन्त विनयपूर्ण वचनों के द्वारा गौरी और कालिका का क्रोध शान्त किया और उन दोनों की तथा अन्यान्य सबकी अनुमति लेकर परशुराम से कहना आरम्भ किया । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय शंकरजी ने कहा — हे वत्स ! आज से तुम मेरे लिये एक श्रेष्ठ पुत्र के समान हुए; अतः मैं तुम्हें ऐसा गुह्य मन्त्र प्रदान करूँगा, जो त्रिलोकी में दुर्लभ है। इसी प्रकार एक ऐसा परम अद्भुत कवच बतलाऊँगा, जिसे धारण करके तुम मेरी कृपा से अनायास ही कार्तवीर्य का वध कर डालोगे । विप्रवर! तुम इक्कीस बार पृथ्वी को भूपालों से शून्य भी कर दोगे और सारे जगत् में तुम्हारी कीर्ति व्याप्त हो जायगी – इसमें संशय नहीं है । नारद! इतना कहकर शंकरजी ने परशुराम को परम दुर्लभ मन्त्र और ‘त्रैलोक्यविजय‘ नामक परम अद्भुत कवच प्रदान किया। फिर स्तोत्र, पूजा का विधान, पुरश्चरण-पूर्वक मन्त्र-सिद्धि का अनुष्ठान, नियम का ठीक-ठीक क्रम, सिद्धि-स्थान और काल की संख्या आदि बतलायी। उसी समय उन्हें सम्पूर्ण वेद-वेदाङ्ग भी पढ़ा दिये । तत्पश्चात् शिवजी ने परशुराम को नागपाश, पाशुपतास्त्र, अत्यन्त दुर्लभ ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र, नारायणास्त्र, वायव्यास्त्र, वारुणास्त्र, गान्धर्वास्त्र, गारुडास्त्र, जृम्भणास्त्र, गदा, शक्ति, परशु, अमोघ उत्तम त्रिशूल, विधिपूर्वक नाना प्रकार के शस्त्रास्त्रों के मन्त्र, शस्त्रास्त्रों के संहार और संधान, अक्षय धनुष, आत्मरक्षा का उपाय, संग्राम में विजय पाने का क्रम, अनेक प्रकार के मायायुद्ध, मन्त्रपूर्वक हुंकार, अपनी सेना की रक्षा तथा शत्रुसेना के विनाश का ढंग, युद्ध-संकट के समय नाना प्रकार के अनुपम उपाय, संसार को मोहित करने वाली तथा बुढ़ापा और मृत्यु का हरण करने वाली विद्या भी सिखायी। परशुराम ने चिरकाल तक गुरुकुल में ठहरकर सम्पूर्ण विद्याओं को सीखा। फिर तीर्थ में जाकर मन्त्रसिद्धि प्राप्त की। इसके बाद शिव आदि को नमस्कार करके वे अपने आश्रम को लौट आये। (अध्याय ३०) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे तृतीये गणपतिखण्डे नारदनारायणसंवादे परशुरामस्य शिवदत्तास्त्रशस्त्रादिप्राप्तिवर्णनं नाम त्रिंशत्तमोऽध्यायः ॥ ३० ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related