February 10, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-गणपतिखण्ड-अध्याय 05 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ पाँचवाँ अध्याय पुण्यक-व्रत की माहात्म्य-कथा का कथन श्रीनारायण कहते हैं — नारद! इस प्रकार व्रत के विधान को सुनकर दुर्गा का मन प्रसन्नता से खिल उठा। तत्पश्चात् उन्होंने अपने स्वामी शिवजी से दिव्य एवं शुभकारिणी व्रत कथा के विषय में जिज्ञासा प्रकट की । श्रीपार्वतीजी ने पूछा — नाथ! यह व्रत तथा इसका फल और विधान बड़ा ही अद्भुत है। भला, किसने इस व्रत को प्रकाशित किया है ? इसकी श्रेष्ठ कथा का वर्णन कीजिये । अथ व्रतमाहात्म्यकथा श्रीमहादेवजी बोले — प्रिये ! मनु की पत्नी शतरूपा, जो पुत्र के दुःख से दुःखी थी, ब्रह्मलोक में आकर ब्रह्माजी से बोली । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय शतरूपा ने कहा — ब्रह्मन् ! आप जगत् का धारण-पोषण करने वाले तथा सृष्टि के कारणों के भी कारण हैं। अतः आप मुझे यह बतलाने की कृपा करें कि किस उपाय से वन्ध्या को पुत्र उत्पन्न हो सकता है; क्योंकि ब्रह्मन् ! उसका जन्म, ऐश्वर्य और धन सब निष्फल ही होता है । पुत्रवानों के घर में पुत्र के बिना अन्य किसी वस्तु की शोभा नहीं होती। तपस्या और दान से उत्पन्न हुआ पुण्य जन्मान्तर में सुखदायक होता है, परंतु पुत्र पिता को (इसी जन्म में) सुख, मोक्ष और हर्ष प्रदान करता है । निश्चय ही पुत्र ‘पुत्’ नामक नरक से रक्षा करने का हेतु होता है । ब्रह्मन् ! आप पुत्र-ताप से संतप्त हुई मुझ अबला को पुत्र प्राप्ति का उपाय बतला दें, तभी कल्याण है; अन्यथा मैं पति के साथ वन में चली जाऊँगी। आप प्रजा को धारण करने वाली पृथ्वी, धन, ऐश्वर्य और राज्य आदि ग्रहण कीजिये; क्योंकि तात ! हम दोनों पुत्रहीनों को पुत्र के बिना इन सबसे क्या प्रयोजन है ? साक्षात् ब्रह्माजी से यों कहकर शतरूपा फूट-फूटकर रुदन करने लगी। तब उसकी ओर देखकर कृपालु ब्रह्माजी ने कहा । ब्रह्माजी बोले — वत्से ! जो समस्त ऐश्वर्य आदि का कारणरूप, सम्पूर्ण मनोरथों का दाता तथा शुभकारक है, उस सुखदायक पुत्र-प्राप्ति के उपाय का वर्णन करता हूँ, सुनो। सुव्रते ! माघ मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी के दिन शुद्ध काल में सर्वस्व प्रदान करनेवाले श्रीकृष्ण की आराधना करके इस उत्तम पुण्यक-व्रत का अनुष्ठान करना चाहिये । कण्वशाखा में इस व्रत का वर्णन किया गया है। इसे पूरे वर्षभर तक करना चाहिये। यह सारी अभीष्ट – सिद्धियों का प्रदाता तथा सम्पूर्ण विघ्नों का विनाशक है । व्रतकाल में वेदोक्त द्रव्यों का दान करना चाहिये । शुभे ! तुम भी इस व्रत का अनुष्ठान करके विष्णु के समान पराक्रमी पुत्र प्राप्त करो । ब्रह्माजी का कथन सुनकर शतरूपा ने इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया, जिससे उन्हें प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक दो मनोहर पुत्र प्राप्त हुए । देवहूति ने इस पुण्यप्रद एवं शुभ पुण्यक व्रत को करके कपिल नामक पुत्र प्राप्त किया, जो सर्वश्रेष्ठ सिद्ध तथा नारायण के अंश से प्रकट हुए थे । शुभलक्षणा अरुन्धती ने इस व्रत को करके शक्ति को पुत्र – रूप में पाया । शक्ति-पत्नी को इस व्रत के पालन से पराशर नामक पुत्र की प्राप्ति हुई । अदिति ने इस व्रत का अनुष्ठान करके वामन नामक पुत्र प्राप्त किया । ऐश्वर्यशालिनी शची ने इस व्रत को करके जयन्त नामक पुत्र को जन्म दिया। इस व्रत के करने से उत्तानपाद की पत्नी ने ध्रुव को और कुबेर की भार्या ने नलकूबर को पुत्ररूप में प्राप्त किया। इस उत्तम व्रत के पालन से सूर्यपत्नी को मनु तथा अत्रिपत्नी को चन्द्रमा पुत्ररूप में मिले । अङ्गिरा की पत्नी ने भी इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, जिसके प्रभाव से उनके पुत्र बृहस्पति हुए, जो देवताओं के आचार्य कहलाते हैं । भृगुपत्नी ने इस व्रत का पालन करके शुक्र को पुत्ररूप में प्राप्त किया, जो नारायण के अंश और समस्त तेजस्वियों में परमोत्कृष्ट हैं । ये ही दैत्योंके गुरु हुए। देवि ! इस प्रकार मैंने तुमसे व्रतों में उत्तम पुण्यक-व्रत का वर्णन कर दिया। कल्याणमयी गिरिराजनन्दिनि ! तुम भी इस व्रत को करो। शुभे ! यह व्रत राजेन्द्रपत्नियों के लिये सुखसाध्य है, देवियों के लिये सुखप्रद है और साध्वी नारियों के लिये तो यह प्राणों से भी बढ़कर प्रिय है । महासाध्वि ! इस व्रत के प्रभाव से सम्पूर्ण देवताओं के ईश्वर स्वयं गोपाङ्गनेश्वर श्रीकृष्ण तुम्हारे पुत्र होंगे । नारद! यों कहकर शंकरजी चुप हो गये । तत्पश्चात् परम प्रसन्न हुई पार्वतीदेवी ने शंकरजी की आज्ञा से उस व्रत का अनुष्ठान किया। इस प्रकार मैं तुमसे गणेशजी के जन्म का कारण, जो सुखदायक, मोक्षप्रद और साररूप है, वर्णन कर दिया। अब और क्या सुनना चाहते हो ? (अध्याय ५ ) ॥ इति श्रीबह्मवैवर्त्ते महापुराणे तृतीये गणपतिखण्डे नारदनारायणसंवादे पुण्यकव्रतकथनं नाम पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related