February 2, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 31 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ इकतीसवाँ अध्याय नरक-कुण्डों और उनमें जाने वाले पापियों तथा पापों का वर्णन यम बोले — साध्वि ! जो द्विज पुंश्चली और वेश्या का अन्न खाता तथा उसके साथ गमन करता है, वह मरने के पश्चात् कालसूत्र नामक नरक में जाता है । इसके बाद रोगी होता है । एक पति की सेवा करने वाली स्त्री ‘पतिव्रता’ कहलाती है । दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करने पर उसे ‘कुलटा’ कहते हैं। तीसरे के सम्पर्क में आने पर उसे ‘ धर्षिणी’ जानना चाहिये | चौथे के पास जाने वाली ‘पुंश्चली’ मानी जाती है। पाँचवें छठें के साथ गमन करने वाली स्त्री की ‘वेश्या’ संज्ञा होती है। सातवें-आठवें के सम्पर्क में आने वाली ‘युग्मी’ कहलाती है। इससे अधिक पुरुषों के पास जाने वाली स्त्री को ‘महावेश्या’ कहते हैं । वह सबके लिये अस्पृश्य है। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जो द्विज कुलटा, धर्षिणी, पुंश्चली, वेश्या, युग्मी तथा महावेश्या के साथ गमन करता है, वह अवटोद नामक नरक में जाता है — यह निश्चित है। कुलटागामी सौ वर्षों तक, धर्षिणीगामी चार सौ वर्षों तक, पुंश्चलीगामी छः सौ वर्षों तक, वेश्यागामी आठ सौ वर्षों तक, युग्मीगामी एक हजार वर्षों तक तथा महावेश्यागामी कामुक मानव इससे सौ गुने वर्षों तक इस अवटोद नरक में वास करता है । यमदूत उस पर प्रहार करते हैं । फिर कुलटागामी तित्तिर, धर्षिणीगामी कौआ, पुंश्चलीगामी कोयल, वेश्यागामी शृगाल, युग्मीगामी सूअर तथा महावेश्यागामी मरघट में सेमल का वृक्ष होकर सात जन्मों तक पाप का फल भोगते हैं । जो ज्ञानहीन मानव सूर्यग्रहण अथवा चन्द्रग्रहण के समय भोजन करता है, वह अरुन्तुद नामक नरक में जाता है। वह जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक उसे उस नरक में वास करना पड़ता है । इसके बाद वह उदररोग से पीड़ित मानव होता है । फिर गुल्म-रोगी, काना और दन्तहीन होता है। जो अपनी कन्या का वाग्दान करके किसी दूसरे वर के साथ उसका विवाह करता है, वह पांशुभोज नामक नरक में स्थान पाता है । पांशु ही उसे भोजन के लिये मिलता है । साध्वि ! जो दान में दी हुई वस्तु को फिर ले लेता है, वह पाशवेष्ट नामक नरक में निवास करता है। वहाँ शयन करने के लिये उसे बाणों की शय्या मिलती है। मेरे दूतों की मार भी खानी पड़ती है । जो ब्राह्मण को दण्ड देता है तथा जिसके भय से ब्राह्मण काँपता है, वह व्यक्ति प्रकम्पन नामक नरक में वास करता है । जो स्त्री क्रोधभरे मुख से रोषपूर्वक अपने पति को देखती तथा कटुवचन कहती है, वह उल्कामुख नामक नरक में जाती है। मेरे दूत उसके मुख में उल्का (लूक) देते हैं और डंडों से उसके मस्तक पर प्रहार करते हैं। इसके बाद मनुष्य योनि में आकर वह विधवा तथा रोगिणी होती है। वेश्या को वेधन-कुण्ड में, युग्मी को दण्डताडन-कुण्ड में, महावेश्या को जालबन्ध-कुण्ड में, कुटा को देहचूर्ण-कुण्ड में, स्वैरिणी को दलन-कुण्ड में तथा धृष्टा को शोषण-कुण्ड यातना भोगने के लिये निवास करना पड़ता है। मेरे दूत उन पर प्रहार करते हैं । साध्वि ! ये पापिनी स्त्रियाँ विष्ठा-मूत्र आदि अपवित्र वस्तुएँ खाकर निरन्तर कष्ट भोगती हैं । जो पुरुष हाथ में तुलसी लेकर की हुई प्रतिज्ञा का पालन नहीं करता अथवा झूठी शपथ खाता है, वह ज्वालामुख नामक नरक में जाता है । हाथ में गङ्गाजल तथा शालग्राम की प्रतिमा ले प्रतिज्ञा करके उसका पालन नहीं करने वाला भी ज्वालामुख नरक का ही भागी होता है। जो दाहिना हाथ उठाकर प्रतिज्ञा करता, देवमन्दिर में जाकर या गौ और ब्राह्मण को छूकर वचनबद्ध होता और फिर उसका पालन नहीं करता है, उसे भी ज्वालामुख नामक नरक की प्राप्ति होती है। मित्रद्रोही, कृतघ्न, विश्वासघाती तथा झूठी गवाही देनेवाला — ये सभी ज्वालामुख नरक में स्थान पाते हैं। वहाँ उन्हें प्रतप्त अङ्गार खाने के लिये मिलते हैं और मेरे दूत उन्हें पीड़ा पहुँचाते रहते हैं । तुलसी छूकर झूठी शपथ खाने वाला सात जन्मों तक चाण्डाल होता है । गङ्गाजल लेकर प्रतिज्ञा करके उसे न पालने वाला पाँच जन्मों तक म्लेच्छ होता है । देवि ! शालग्राम का स्पर्श करके की हुई प्रतिज्ञा का पालन न करनेवाला सात जन्मों तक विष्ठा का कीड़ा होता है । देवप्रतिमा को छूकर झूठी शपथ खाने वाला फोड़े का कीड़ा होता है। खुले हाथों देने की झूठी प्रतिज्ञा करने वाला सात जन्मों तक सर्प होता है। इसके बाद बिना हाथ का मानव होकर फिर शुद्ध होता है । देव-मन्दिर में असत्य बोलने वाला सात जन्मों तक देवल होता है । ब्राह्मण आदि के सम्मुख प्रतिज्ञा करके उसका पालन न करने वाला अग्रदानी1 होता है। तदनन्तर तीन जन्मों तक वह गूँगा और बहरा मानव होता है । मित्र से द्रोह करने वाला नेवला होता है । कृतघ्न गेंडा और विश्वासघाती व्याघ्र होता है। वक्तव्य में जो झूठी गवाही देता है, वह भालू होता है । ये उपर्युक्त पापी मानव अपने आगे और पीछे की सात-सात पीढ़ियों को नरक में गिराते हैं । मूर्खता के कारण अपनी नित्यक्रिया से विहीन, वेद के वचनों में अनास्था रखकर निरन्तर कपटपूर्वक उनका उपहास करने वाला तथा व्रत और उपवास से रहित एवं उत्तम सद्वाक्य का निन्दक कुटिल ब्राह्मण जिम्भ एवं हिमोदक नरक में वास करता है । जो देवता और ब्राह्मण के धन का अपहरण करता है, उसे आगे-पीछे की दस-दस पीढ़ियों को नरक में गिराकर स्वयं भी वहाँ रहना पड़ता है। धूम के अन्धकार से पूर्ण धूमान्ध नामक नरक में जाता है। उसे धूएँ के कारण कष्ट भोगना पड़ता है। भोजन के लिये उसे धूम्र ही मिलता है। इस प्रकार की यातना भोगते हुए वह वहाँ रहता है । तत्पश्चात् सात जन्मों तक वह चूहे की योनि में जन्म पाता है। तदनन्तर नाना प्रकार के पक्षियों, कीड़ों, वृक्षों और पशुओं की योनि में जन्म पाने के पश्चात् शुद्ध होता है । पतिव्रते! ये सुविख्यात नरक-कुण्ड बताये गये हैं। इनके अतिरिक्त अन्य छोटे-छोटे अप्रसिद्ध नरक भी गिनाये गये हैं। अपने दुष्कर्मों के फल भोगने वाले पापियों से उन नरकों का कोना-कोना भरा रहता है । कर्म-फल भोगने के लिये प्राणी नाना प्रकार की योनियों में भटकते हैं । कहाँ तक बताया जाय ? (अध्याय ३१) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे द्वितीये प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे सावित्र्युपाख्याने कर्मविपाके पापिनां कुण्डनिर्णयो नामैकत्रिंशत्तमोऽध्यायः ॥ ३१ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ 1. . वह पतित ब्राह्मण जो प्रेत या मृतक के निमित्त दिए हुए तिल आदि के दान को ग्रहण करे Content is available only for registered users. Please login or register Related