ब्रह्मवैवर्तपुराण – ब्रह्मखण्ड – अध्याय 29
ॐ श्रीगणेशाय नमः
ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः
उनतीसवाँ अध्याय
बदरिकाश्रम में नारायण के प्रति नारदजी का प्रश्न

सौति कहते हैं — शौनक ! देवर्षि नारद ने नारायण ऋषि के आश्चर्यमय आश्रम को देखा, जो बेर के वनों से सुशोभित था । नाना प्रकार के वृक्षों और फलों से भरे हुए उस आश्रम में कोयल की मीठी कूक मुखरित हो रही थी। बड़े-बड़े शरभों, सिंहों और व्याघ्र-समुदायों से घिरे होने पर भी उस आश्रम में ऋषिराज नारायण के प्रभाव से हिंसा और भय का कहीं नाम नहीं था । वह विशाल वन जनसाधारण के लिये अगम्य और स्वर्ग से भी अधिक मनोहर था ।

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः । सरस्वतीश्रीगिरिजादिकाश्च नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

वहाँ नारदजी ने देखा ऋषिप्रवर नारायण मुनियों की सभा में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान हैं। उनका रूप बड़ा मनोहर है और वे योगियों के गुरु हैं। श्रीकृष्णस्वरूप परमेश्वर परब्रह्म का जप करते हुए नारायण मुनि का दर्शन करके ब्रह्मपुत्र नारद ने उन्हें प्रणाम किया। उन्हें आया देख नारायण ने सहसा उठकर हृदय से लगा लिया और उत्तम आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही स्नेहपूर्वक कुशल- समाचार पूछा और आतिथ्य-सत्कार किया। फिर नारदजी को भी उन्होंने रमणीय रत्नमय सिंहासन पर बिठाया । उस रमणीय आसन पर बैठकर नारदजी ने रास्ते की थकावट दूर की और उन ऋषिश्रेष्ठ सनातन भगवान् नारायण से, साथ ही उन सब परम दुर्लभ मुनियों से भी पूछा, जो पिता के स्थान में वेदाध्ययन करके वहाँ विराजमान थे ।

नारदजी बोले — प्रभो ! योगीश्वर शंकर से ज्ञान और मन्त्र का उपदेश पाकर भी मेरा मन तृप्त नहीं हो रहा है; क्योंकि यह बड़ा चञ्चल है और इसे रोकना अत्यन्त कठिन है । मेरे मन में प्रभु की कुछ ऐसी प्रेरणा हुई, जिससे मैंने आपके चरणारविन्दों का दर्शन किया। इस समय मैं आपसे कुछ विशेष ऐसा ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ, जिसमें श्रीकृष्ण के गुणों का वर्णन हो, जो कि जन्म, मृत्यु और जरा का नाश करने वाला है। भगवन् ! ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवता, देवराज इन्द्र, मुनि और विद्वान् मनु किसका चिन्तन करते हैं ? सृष्टि का प्रादुर्भाव किससे होता है अथवा उसका लय कहाँ होता है ? समस्त कारणों के भी कारणभूत सर्वेश्वर विष्णु कौन हैं ? जगत्पते! उन ईश्वर का रूप अथवा कर्म क्या है ? इन सब बातों पर मन-ही-मन विचार करके आप बताने की कृपा करें।

नारदजी का यह वचन सुनकर भगवान् नारायण ऋषि हँसे । फिर उन्होंने त्रिभुवनपावनी पुण्यकथा को कहना आरम्भ किया । (अध्याय २९)

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे ब्रह्मखण्डे सौतिशौनकसंवादे नारायणं प्रति नारदप्रश्नो नामैकोनत्रिंशत्तमोऽध्यायः ॥ २९ ॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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