March 11, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 104 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) एक सौ चारवाँ अध्याय द्वारकापुरी को देखने के लिये देवताओं और मुनियों का आना और उग्रसेन का राज्याभिषेक श्रीनारायणजी कहते हैं — नारद! इसी समय ब्रह्मा, हर, पार्वती, अनन्त, धर्म, सूर्य, अग्नि, कुबेर, वरुण, वायु, यम, महेन्द्र, चन्द्र, रुद्र, आदित्य, वसु, दैत्य, गन्धर्व, किंनर आदि सब द्वारकापुरी देखने आये। आकाश दर्शनार्थियों के विमानों से छा गया। सबने मनोहर रत्नमयी शोभायुक्त दिव्य द्वारका को देखा। वहाँ भगवान् के स्मरण करते ही वसुदेव, देवकी, उग्रसेन, पाण्डवगण, नन्द, यशोदा, गोप-गोपी, विभिन्न देशों के राजा, संन्यासी, यति, अवधूत और ब्रह्मचारी आ गये । पञ्चवर्षीय दिगम्बर चारों सनकादि मुनि, दुर्वासा, कश्यप, वाल्मीकि, गौतम, बृहस्पति, शुक्र, भरद्वाज, अङ्गिरा, प्रचेता, पुलस्त्य, अगस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, मरीचि, शतानन्द, ऋष्यशृंग, विभाण्डक, पाणिनि, कात्यायन, याज्ञवल्क्य, शुक, पराशर, च्यवन, गर्ग, सौभरि, गालव, लोमश, मार्कण्डेय, वामदेव, जैगीषव्य, सांदीपनि, वोढु, पञ्चशिख, मैं (नारायण), नर, विश्वामित्र, जरत्कारु, आस्तीक, परशुराम, वात्स्य, संवर्त, उतथ्य, जैमिनि, पैल, सुमन्त, व्यास, कपिल, शृंगी, उपमन्यु, गौरमुख, कच, द्रोण, अश्वत्थामा, कृपाचार्य आदि अपने असंख्य शिष्यों सहित पधारे; तथा भीष्म, कर्ण, शकुनि, भ्राताओं सहित दुर्योधन आदि सब आये। उग्रसेन आदि ने उन सबका स्वागत-सत्कार किया । देवताओं और मुनियों का स्वागत-सत्कार करने पर उन लोगों ने उग्रसेन आदि को विविध उपहार दिये । तदनन्तर ब्राह्मणों को मणि, रत्न और वस्त्र आदि दान किये गये । उग्रसेन का राज्याभिषेक हुआ और सब लोग परमानन्दित होकर अपने- अपने घर लौटे। ( अध्याय १०४) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवाद द्वारकाप्रवेश उग्रसेनाभिषेको नाम चतुरधिकशततमोऽध्यायः ॥ १०४ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related