February 21, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 11 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ ग्यारहवाँ अध्याय तृणावर्त का उद्धार तथा उसके पूर्वजन्म का परिचय भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! एक दिन गोकुल में सती साध्वी नन्दरानी यशोदा बालक को गोद लिये घर के कामकाज में लगी हुई थीं। उस समय गोकुल में बवंडर का रूप धारण करने वाला तृणावर्त आ रहा था । मन-ही-मन उसके आगमन की बात जानकर श्रीहरि ने अपने शरीर का भार बढ़ा लिया। उस भार से पीड़ित होकर मैया यशोदा ने लाला को गोद से उतार दिया और खाट पर सुलाकर वे यमुनाजी के किनारे चली गयीं। इसी बीच में वह बवंडररूपधारी असुर वहाँ आ पहुँचा और उस बालक को लेकर घुमाता हुआ सौ योजन ऊपर जा पहुँचा। उसने वृक्षों की डालियाँ तोड़ दीं तथा इतनी धूल उड़ायी कि गोकुल में अँधेरा छा गया। उस मायावी असुर ने तत्काल यह सब उत्पात किया । फिर वह स्वयं भी श्रीहरि के भार से आक्रान्त हो वहीं पृथ्वी पर गिर पड़ा। श्रीहरि का स्पर्श प्राप्त करके वह असुर भी भगवद्धाम को चला गया। अपने कर्मों का नाश करके सुन्दर दिव्य रथ पर आरूढ़ हो गोलोक में जा पहुँचा । वह पाण्ड्यदेश का राजा था और दुर्वासा के शाप से असुर हो गया था । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय श्रीकृष्ण के चरणों का स्पर्श पाकर उसने गोलोकधाम में स्थान प्राप्त कर लिया । मुने! बवंडर का रूप समाप्त होने पर भय से विह्वल गोप-गोपियों ने जब खोज की, तब बालक को शय्या पर न देखकर सब लोग शोक से व्याकुल हो भय से अपनी-अपनी छाती पीटने लगे। कुछ लोग मूर्च्छित हो गये और कितने ही फूट-फूटकर रोने लगे। खोजते खोजते उन्हें वह बालक व्रज के भीतर एक फुलवाड़ी में पड़ा दिखायी दिया। उसके सारे अङ्ग धूल से धूसर हो रहे थे । एक सरोवर के बाहरी तट पर जो पानी से भीगा हुआ था, पड़ा हुआ वह बालक आकाश की ओर एकटक देखता और भय से कातर होकर बोलता था । नन्दजी ने तत्काल बच्चे को उठाकर छाती से लगा लिया और उसका मुँह देख-देखकर वे शोक से व्याकुल हो रोने लगे । माता यशोदा और रोहिणी भी शीघ्र ही बालक को देखकर रो पड़ीं तथा उसे गोद में लेकर बार-बार उसका मुँह चूमने लगीं । उन्होंने बालक को नहलाया और उसकी रक्षा के लिये मङ्गलपाठ करवाया। इसके बाद यशोदाजी ने अपने लाला को स्तन पिलाया । उस समय उनके मुख और नेत्रों में प्रसन्नता छा रही थी । नारदजी ने पूछा — भगवन् ! पाण्ड्यदेश के राजा को दुर्वासाजी ने क्यों शाप दिया ? आप इस प्राचीन इतिहास को भली-भाँति विचार करके कहिये । भगवान् नारायण बोले — एक बार पाण्ड्य देश के प्रतापी राजा अपनी एक हजार पत्नियों को साथ लेकर मनोहर निर्जन प्रदेश में गन्धमादन पर्वत की पुष्पभद्रा नदी तीरस्थ पुष्पवाटिका में जाकर सुख से विहार करने लगे। एक दिन वे नदी में अपनी पत्नियों के साथ जलक्रीडा कर रहे थे। उस समय उन लोगों के वस्त्र अस्तव्यस्त थे । इसी बीच अपने हजारों शिष्यों को साथ लिये महामुनि दुर्वासा उधर से निकले। मतवाले सहस्राक्ष ने उनको देख लिया, पर न जल से निकले, न प्रणाम किया, न वाणी से या हाथ के संकेत से ही कुछ कहा । इस निर्लज्जता और उद्दण्डता को देखकर दुर्वासा ने उनको योगभ्रष्ट होकर भारत में लाख वर्षों तक असुरयोनि में रहने का शाप दे दिया और कहा कि ‘इसके अनन्तर श्रीहरि के चरण- कमल का स्पर्श प्राप्त होने पर असुरयोनि से उद्धार होकर तुम्हें गोलोक की प्राप्ति होगी।’ और उनकी पत्नियों से कहा कि ‘तुम लोग भारत में जाकर विभिन्न स्थानों में राजाओं के घरों में जन्म धारण करके राजकन्या होओगी।’ मुनीन्द्र के शाप को सुनकर सब लोग हाहाकार कर उठे । राजा सहस्राक्ष की पत्नियाँ करुण विलाप करने लगीं । अन्त में राजा ने एक बड़े अग्निकुण्ड का निर्माण किया और श्रीहरि के चरणकमलों का हृदय में चिन्तन करते हुए वे पत्नियों सहित उसमें प्रविष्ट हो गये । इस प्रकार वे राजा सहस्राक्ष तृणावर्त नामक असुर होने के पश्चात् श्रीहरि का स्पर्श पाकर उनके परमधाम में चले गये और उनकी रानियों ने भारतवर्ष में मनोवाञ्छित जन्म ग्रहण किया। इस तरह श्रीहरि का यह सारा उत्तम माहात्म्य कहा गया। साथ ही मुनिवर दुर्वासा के शापवश असुरयोनि में पड़े हुए पाण्ड्य-नरेश के उद्धार का प्रसङ्ग भी सुनाया गया। (अध्याय ११ ) श्रीमद्भागवतमहापुराण – दशम स्कन्ध पूर्वार्ध – अध्याय ७ ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखंडे नारायणनारदसंवादे तृणावर्तवधो नामैकादशोऽध्यायः ॥ ११ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related