ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 132
॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥
(उत्तरार्द्ध)
एक सौ बतीसवाँ अध्याय
सम्पूर्ण कथा का संक्षेप
तथा अनुक्रमणिका

शौनक बोले — हे धर्मेश ! मैंने सब कुछ सुन लिया। कुछ अवशिष्ट नहीं है । हे महाभाग ! मुझ ब्राह्मण से पुनः पुराण का कथन करें । जन्म से ही मैंने इस प्रकार का पुराण नहीं सुना । हे तात ! मैंने आपके समान वाचक न देखा है, न सुना है ।

सूत बोले — हे महाभाग ! आप संयत होकर सावधानी से सुनें । अध्याय के श्रवण से ही पुराण का फल प्राप्त हो जाता है । परं ब्रह्म के निरूपण से युक्त ब्रह्म खण्ड का कथन कर दिया। वह अनिर्वचनीय है । जो कोई आगम द्वारा उसे अवगत नहीं कर सकता ॥ ४ ॥ यह साकार, निराकार, सगुण तथा पृथक्-पृथक् निर्गुण भी है। जिसकी जैसी शक्ति होती है, वह उसके अनुसार ही ध्यान करता है । हे द्विजोत्तम ! मैंने ब्रह्मखण्ड में क्रम से पृथक्-पृथक् गोलोक आदि का वर्णन उनमें उपयुक्त प्रासङ्गिक उपाख्यानों के साथ किया । प्रश्न के अनुसार जातियों तथा संकरों का निर्णय किया साथ ही और जो-जो विशिष्ट उपाख्यान अपेक्षित थे उनका निरूपण किया । राधामाधव की क्रीड़ा, महाविष्णु की उत्पत्ति आदि का संक्षेप में निरूपण किया । परमार्थतः ब्रह्मा तथा नारद का संवाद, मुनीन्द्र नारद का विवेक, ब्रह्मा की आज्ञा से उनका नरनारायण के आश्रम में गमन, उनका दर्शन, संभाषण तथा नारद से निवेदन आदि का वर्णन किया ।

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः । सरस्वतीश्रीगिरिजादिकाश्च नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

हे मुने ! अब आप सुधाखण्ड के समान प्रकृतिखण्ड का श्रवण करें । प्रकृति का लक्षण और उनके भेदों का वर्णन किया गया है । उनका उपाख्यान, वर्णन तथा पूजन आदि को बताया। लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, सावित्री, राधा, इनका तथा अन्य प्रकृति के भेदों का पृथक्-पृथक् उपाख्यान किया। इसके अतिरिक्त महालक्ष्मी तथा महासरस्वती का उपाख्यान भी वर्णित है । राधिका एवं सावित्री का उपाख्यान अपूर्व है । यम और सावित्री का संवाद, सत्यवान् का जीवनदान, कुण्डों का वर्णन तथा उनका लक्षण, जीव एवं कर्म का विपाक, भोगों का निर्णय आदि वर्णित है । पुराणों में अतिगोपनीय राधिका का आख्यान अपूर्व है । सुयज्ञ नामक राजा का चरित परम अद्भुत है । परम अद्भुत तुलसी का उपाख्यान, संवादपूर्वक महेश तथा शङ्खचूड का महान् युद्ध कहा गया है । तुलसी तथा कृष्ण का संवाद, उन दोनों का संभोग, शङ्खचूड का निधन तथा श्रीदामा का शापमोक्ष वर्णित है । देवताओं की विपत्ति का खण्डन तथा उनकी पदप्राप्ति, प्राणियों के मोक्ष का बीज अभीष्ट गङ्गोपाख्यान वर्णित है । परम हर्ष को बढ़ानेवाला मनसा का आख्यान, स्वाहा स्वधा का आख्यान तथा अन्य देवियों का आख्यान निरूपित है । प्रश्नों के क्रम में वक्ता द्वारा प्रासङ्गिक अन्य आख्यानों का भी प्रकृतिखण्ड में वर्णन किया गया है।

अब गणपतिखण्ड का श्रवण करें । यह गणपतिखण्ड अतीव मधुर, रम्य एवं पग-पग पर स्वाद प्रदान करनेवाला है । अत्यन्त रमणीय एवं नवीन यह खण्ड पुराणों में अतिगोपनीय है । श्रोताओं को परम रुचिकर यह उपाख्यान सुदुर्लभ है । इसमें पार्वती तथा परमेश्वर की परम क्रीड़ा का वर्णन है । इसमें सर्वप्रथम दोनों का क्रीड़ा भङ्ग तथा स्कन्ध की उत्पत्ति का वर्णन है । पार्वती का परितोष तथा अभिमान का मोक्षण वर्णित है । विष्णु का पुण्यव्रत तथा देवी का उत्तमचरित, सुन्दरव्रत में लीन पार्वती के प्रति विष्णु का वरदान इसमें वर्णित है । ब्राह्मण अतिथि रूपी हरि का दर्शन, शिवमन्दिर में कृपापूर्वक गणेश का जन्म वर्णित है । पार्वती तथा परमेश्वर का पुत्रमुख दर्शन, शिव के भवन में परमानन्दरूप महोत्सव वर्णित है । नित्य, अज, विभु, सत्यस्वरूप, परब्रह्मरूप बालक का सभी देव आदि गणों द्वारा दर्शन वर्णित है । वह बालक समस्त विघ्नों का हर्त्ता, समस्त संपत्तियों का दाता, तप, जप, यज्ञ, व्रत के फलों का दाता, विभु, अतीव कमनीय, नारीजन का रमणीय, पार्वती तथा परमेश्वर का प्राणों से अधिक प्रियतम, परमात्मस्वरूप, भगवान् सनातन, सर्वेश, सर्वबीज, साक्षात् नारायणात्मक है । जिसके दर्शन, स्तवन, प्रणाम तथा पूजन से ध्यान द्वारा असाध्य, दुराराध्य करोड़ों जन्म के पापों का विनाश हो जाता है । इस खण्ड में कार्तिक का उद्धार और उनके अभिषेक का वर्णन है । सर्वविघ्नविनाशक गणेश का पूजन भो वर्णित है । कार्त्तवीर्य अर्जुन के साथ जमदग्नि का युद्ध सुरभी का हरण, मुनि का निधन । पतिव्रता रेणुका का चितारोहण, भयङ्कर एवं अत्यन्त दारुण भृगु की प्रतिज्ञा । हे द्विज ! इक्कीस बार निःक्षत्रियकरण, गणेश और परशुराम का संवाद तथा ज्ञानलाभ । उन दोनों का भयंकर युद्ध तथा उसमें गणेश का दन्तभग्न, दुर्गा का विलाप तथा भार्गव को शाप । परशुराम के स्मरण करने पर हरि का आविर्भाव, नारायण प्रभु का स्वयं पार्वती को समझाना । परम आश्चर्यजनक, अभीष्ट शिवलोक का वर्णन, शंकर द्वारा परशुराम को महान् अस्त्र का प्रदान करना । परमात्मा कृष्ण का मन्त्रकवच, वरदान, अभयदान, सर्वसम्पत्ति का प्रदान । भृगु द्वारा इक्कीस बार राजाओं का निधन तथा पृथ्वी के भार का मोक्षण । हे द्विजोत्तम ! प्रश्नों के भनुरोधक्रम से पहले का उपाख्यान तथा गणपतिखण्ड संक्षेपतः वर्णित है ।

अब जन्म-मृत्यु जरा एवं व्याधि का हरण करनेवाले, परममोक्षप्रद, श्रीकृष्णजन्म- खण्ड का सावधानीपूर्वक श्रवण करें । यह उपाख्यान अपूर्व, अतिरमणीय, नितनूतन, हरिदास्यप्रद, शुद्ध, सुधासदृश श्रवणयोग्य है । जो पग-पग पर स्वादप्रद है उसे मानवजन्म लेकर न सुना गया ( तो जीवन व्यथं है) यह खण्ड समस्त सत्त्वों या तत्त्वों का प्रदीप है और भवसागर से पार होने का उत्कृष्ट साधन है । यह ऐसा रसायन है कि जो कर्मों के उपभोग तथा रोगों का मर्दन कर देता है और श्रीकृष्ण भगवान् के चरणकमल की प्राप्ति के सोपान का कारण है । इसमें है द्विज ! श्रीदामा और राधा के कलह का दारुण वर्णन है । दोनों का शापकथन तथा उनका (गोलोक से) विसर्जन वर्णित है । इस जन्मखण्ड में परम अद्भुत ब्रह्मा द्वारा प्रार्थित भूतल पर हरि का जन्म कहा गया है । वसुदेव के भवन से हरि का आविर्भाव तथा असुर कंस के भय से उनका गोकुल गमन ( वर्णित है ) । श्रीदामा के शापवश श्रीराधा जी का वृषभानु की पुत्री होना तथा परमात्मा का गोकुल में बालक्रीडा वर्णन निहित है । हरि द्वारा दैत्यों का निधन, गगं का आगमन तथा हरि का शुभ अन्नप्राशन वर्णित है । इसमें पूतना का सद्यः निधन, शकटासुर का विनाश, श्रीकृष्ण की बन्धनमुक्ति तथा यमलार्जुन वृक्ष का भग्न होना वर्णित है । मुख में तीनों लोकों का दर्शन, गायों और बछड़ों का अपहरण तथा पुनः हरि का गोवत्स निर्माण एवं ब्रह्मा द्वारा स्तुति वर्णित है । नन्द का उत्पातों के भय से पुत्र के साथ सहसा गोकुल का परित्याग कर पुण्य वृन्दावन गमन (इस खण्ड में वर्णित है ) । परम अद्भुत वृन्दावन का निर्माण तथा वहाँ पर बालकों के साथ हरि की क्रीड़ा का वर्णन है । श्रीहरि का ब्राह्मणी वर्ग के स्वादिष्ट अन्न का भोजन और उनका वरदान पहले से वर्णित है कात्यायनीव्रत, श्रीदुर्गापूजन, यमुना के तट पर पार्वती द्वारा गोपियों को वरदान, तालफल का भक्षण ।

हे द्विज ! ऋतुओं का वर्णन, वस्त्रापहरण तथा कृष्ण का गोपियों को वरदान वर्णित है । इन्द्र के यश का भङ्ग, कृष्ण का राधा के साथ विरह एवं मिलन, गोपीक्रीड़ा, कृष्ण के क्रोड में राधा का आसीन होना, हरि की माया से श्रीराधा के छायारूप से रायण के गृह में निवास, सोलहो शृंगार करके रास- मण्डल में वन में श्रीराधा के साथ कृष्ण का अन्तर्धान होना, हे द्विजोत्तम ! उनके साथ मलयाचल पर आग- मन, उस निर्जन में राधाकृष्ण का संवाद इस जन्मखण्ड में वर्णित है । हे मुने ! नानाविध गोपियों का मोक्ष तथा पुनः वृन्दावन में आगमन, श्रीकृष्ण का दर्शन, गोपियों का हर्षवर्द्धन तथा श्रीकृष्ण की जल- स्थल में नानाविध क्रीड़ा वर्णित है । गोपियों का विशेषरूप से श्रीराधा के सौभाग्य का वर्णन, उनके अतिरमणीय एवं नितनूतन सौन्दर्य का वर्णन, व्यास जी ने किया है । आकाशमण्डल में स्थित देवों का दर्शन कहा हो गया है । रासमण्डल में देवियों के मनःस्खलन का वर्णन किया जा चुका है । हे द्विज ! यह भी कहा गया है कि देवियों ने अंशतः जन्म लिया था । अक्रूर का आगमन और गोपियों का विलाप, अक्रूर की भर्त्सना, विष्णु का मथुरा-आगमन तथा गोकुलवासियों का शोक, यह सब क्रमपूर्वक कहा जा चुका है । राधिका के विरहज्वालाजाल का यथोचित वर्णन किया गया है। यमुनातट पर अक्रूर को अपनी मूर्ति का दर्शन कराना आदि वर्णित है ।

भगवान् का मथुरा प्रवेश, रजक का निधन, कुब्जा के साथ संभोग तथा उसका मोक्ष कहा जा चुका है । जुलाहे को प्रसन्न करना तथा माली का मोक्ष, शम्भु के धनुष का भंग, हाथी का निधन, सभा में प्रवेश, नानारूप का प्रदर्शन, कंस का निधन तथा उसके बन्धु- जनों का विलाप वर्णित है । उस कंस का विधिवत् अन्तिम संस्कार, उसके पिता का राजा के स्थान पर पुनः आसीन होना, नन्द का विलाप तथा उनका अद्भुत स्तवन वर्णित है । निर्जन में उन दोनों पिता- पुत्र का संवाद, भगवान् द्वारा नन्द को परम आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करना वर्णित है । मुनियों का गमन, धन्या का उपाख्यान, इन समस्त उपाख्यानों का कथन कुमार ने किया है । ये अति दुर्लभ कथाएँ कही जा चुकी हैं । उद्धव का आगमन, निर्जन राधा का स्थान, उन दोनों के संवाद में शुभावह ज्ञान कहा जा चुका है । कृष्ण का यज्ञोपवीत, गुरुगृह में विद्यमान, गुरु को मृतक पुत्र का दान, यह सब पहले कहा जा चुका है । जरासंध का दमन यवन का निधन, द्वारका का निर्माण तथा विश्वकर्मा का उद्यम वर्णित है । द्वारकाप्रवेश, उग्रसेन का विलाप, रुक्मिणीहरण, राजाओं का नमन भी वर्णित है । सभी कामिनियों का विवाह, मायावती का मोक्ष तथा शम्बर का निधन कहा जा चुका है । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में शिशुपाल तथा दन्तवक्त्र का मोक्ष, शाल्वमुनि का निधन पूर्वतः वर्णित है । मणि का हरण. स्वर्ग से पारिजात का हरण, कौरव पाण्डव के युद्ध द्वारा भूभारहरण वर्णित है । ऊषा का हरण, बाणासुर की भुजाओं का कर्त्तन, बलि का स्तवन और अनिरुद्ध का पराक्रम कहा जा चुका है ।

परमदुर्लभ राधा- यशोदा का संवाद कहा गया है, श्रृंगाल का परम अद्भुत मोक्ष बताया गया है । तीर्थयात्रा के प्रसंग में गणेशपूजन तथा श्रीराधा के साथ परमात्मा का दर्शन कथित है । श्रीराधा का देवीदर्शन, राधा के तेज का प्रकाशन, राधा के साथ रमण तथा एकान्त में तीर्थ भ्रमण वर्णित है । हे शौनक ! ब्रह्मशाप से यदुवंश का निधन, पाण्डवों का मोक्ष तथा हरि का स्वधाम गमन कीर्तित है । नारद का विवाह तथा अग्नि एवं सुवर्ण की उत्पत्ति हे महाभाग । संक्षेप में सब कहा गया है । यह ब्रह्मवैवर्त पुराण चार खण्डों में विभक्त है । हे मुनिश्रेष्ठ ! अब इसके आगे पुनः क्या सुनना चाहते हैं ।  (अध्याय १३२ )

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवाद अनुक्रमणिकं नाम द्वात्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥ १३२ ॥

Content is available only for registered users. Please login or register

Please follow and like us:
Pin Share

Discover more from Vadicjagat

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.