March 9, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 91 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ (उत्तरार्द्ध) इक्यानबेवाँ अध्याय श्रीकृष्ण का उद्धव को गोकुल भेजना श्रीभगवान् ने कहा — तात ! कर्मफल- भोग के अनुसार संयोग और उसी से वियोग भी होता है तथा उसी से क्षणमात्र में दर्शन भी प्राप्त हो जाता है। भला, उस कर्मभोग को कौन मिटा सकता है ? पिताजी! उद्धव गमनागमन का प्रयोजन बतलायेंगे । मैं उन्हें शीघ्र ही भेजता हूँ । तत्पश्चात् आपको भी सब मालूम हो जायगा । वे गोकुल में जाकर यशोदा, रोहिणी, गोपिकाओं, ग्वालबालों और उस प्राणप्यारी राधिका को समझायेंगे । श्रीकृष्ण इस प्रकार कह ही रहे थे कि वहाँ वसुदेव, देवकी, बलदेव, उद्धव तथा अक्रूर शीघ्र ही आ पहुँचे । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय वसुदेव ने कहा — नन्दजी! तुम तो बलवान्, ज्ञानी, मेरे सद्द्बन्धु और सखा हो; अतः मोह को त्याग दो और घर को प्रस्थान करो । यह श्रीकृष्ण जैसे मेरा बच्चा है, उसी तरह तुम्हारा भी है। मित्र ! मथुरानगरी गोकुल से दूर नहीं है; वह तो उसके दरवाजे के समान है। अतः नन्दजी ! सदा आनन्द-महोत्सव के अवसर पर तुम्हें यह पुत्र देखने को मिलेगा | श्रीदेवकी ने कहा — नन्दजी ! यह श्रीकृष्ण जैसे हम दोनों का पुत्र है; उसी तरह आपका भी है – यह निश्चित है; फिर किसलिये आपका शरीर शोक से मुरझाया हुआ दीख रहा है ? श्रीकृष्ण तो बलदेव के साथ आपके महल में ग्यारह वर्षों तक सुखपूर्वक रह चुका है, तब आप थोड़े दिनों के वियोग से ही शोकग्रस्त कैसे हो जायँगे ? (यदि ऐसी बात है तो) कुछ दिनों तक मथुरा में ही इस पुत्र के साथ आप रहिये और उसके पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान कान्तिमान् मुख का अवलोकन कीजिये तथा अपना जन्म सफल कीजिये । तब श्रीभगवान् बोले — उद्धव ! तुम सुख-पूर्वक गोकुल जाओ । भद्र! तुम्हारा कल्याण होगा। तुम हर्षपूर्वक गोकुल में जाकर मेरे द्वारा दिये गये शोक का विनाश करने वाले आध्यात्मिक ज्ञान से माता यशोदा, रोहिणी, ग्वालबाल-समूह, मेरी राधिका और गोपिकाओं को सान्त्वना दो । शोक के कारण नन्दजी मेरी माता की आज्ञा से अब यहीं रहें। तुम नन्दजी का ठहरना और मेरी विनय यशोदा को बतला देना । — यों कहकर श्रीकृष्ण पिता, माता, बलराम और अक्रूर के साथ तुरंत ही महल के भीतर चले गये। नारद! उद्धव मथुरा में रात बिताकर प्रातः काल शीघ्र ही रमणीय वृन्दावन नामक वन के लिये प्रस्थित हुए । ( अध्याय 91) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवाद एकनवतितमोऽध्यायः ॥ ९१ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related