ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 96
॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥
(उत्तरार्द्ध)
छियानबेवाँ अध्याय
उद्धव को उपदेश देकर मथुरा जाने की आज्ञा देना

श्रीनारायण कहते हैं — तदनन्तर माधवी की प्रेरणा से उद्धव के पूछने पर श्रीराधा ने उनको उपदेश दिया।

राधिका बोलीं — ‘वत्स! लोकों के स्वामी, कालके काल, जगद्गुरु, निर्गुण, इच्छारहित और ईश्वर हैं; उन परमात्मा का पण्डित लोग जो भजन करते हैं। बेटा ! सूर्य सभी प्राणियों की आयु को रात-दिन के व्याज से क्षीण करते रहते हैं; परंतु जो श्रीहरिके शुद्ध भक्त हैं, उन पुण्यवान् संतों पर उनका वश नहीं चलता । उदाहरणस्वरूप ब्रह्मा के चारों मानस-पुत्र भगवद्भक्त सनकादिकों पर दृष्टिपात करो । उनकी आयु सदा सुस्थिर रहती है। वे उपनयन-संस्काररहित पाँच वर्ष के शिशुओं की भाँति सदा बालरूप ही रहते हैं और उसी अवस्था से वे एकादश रुद्रों, द्वादश आदित्यों और ज्ञानियों के गुरु के भी गुरु हैं । उनके हृदय विशाल हैं, मुखों पर प्रसन्नता छायी रहती है, वेष दिगम्बर है, शरीर श्रीकृष्ण के ध्यान से पवित्र हो गये हैं । वे विष्णुभक्तिपरायण और तीर्थों को भी पावन करने वाले हैं।

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः । सरस्वतीश्रीगिरिजादिकाश्च नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

उन्हें वेद-वेदाङ्ग और शास्त्रों की चिन्ता नहीं रहती, उनका मन प्रफुल्लित रहता है और वे रात-दिन लगातार भक्तिपूर्वक श्रीहरि के ध्यान में तत्पर रहते हैं । उनके नाम सनक, सनन्दन, तीसरे सनातन और चौथे सनत्कुमार हैं। जो लोग इनका सब तरह से स्मरण करते हैं, उन्हें तीर्थस्नानजनित फल की प्राप्ति होती है, वे किये हुए पापों से मुक्त हो जाते हैं, उनके हृदय में हरिभक्ति उत्पन्न हो जाती है और वे हरि की दासता के भागी हो जाते हैं। इसके बाद मृकण्डु के पुत्र द्विजवर मार्कण्डेय को देखो, जो अपने कर्मवश लाखों वर्षों तक ब्रह्मतेज से प्रज्वलित होते रहे; तत्पश्चात् श्रीहरि की सेवासे उन्हें सात कल्पों तक की आयु प्राप्त हुई। फिर वोदु, पञ्चशिख, लोमश और आसुरि को देखो । ये सम्पूर्ण कर्मों का त्याग करके श्रीहरि की सेवामें तत्पर और सदा श्रीहरि के चरण का ध्यान करते रहते हैं । इनकी आयु सौ कल्पों की है । पुनः जमदग्निनन्दन चिरजीवी परशुराम, हनुमान्, बलि, व्यास, अश्वत्थामा, विभीषण, विप्रवर कृपाचार्य और ऋक्षराज जाम्बवान् को देखो । ये सभी श्रीहरि का ध्यान करने से शुद्ध और चिरजीवी हैं ।

उद्धव ! इनके अतिरिक्त सिद्धेन्द्रों, नरेन्द्रों तथा अन्य मनुष्यों में जो श्रीहरि की भावना करने से शुद्ध हो गये हैं; वे सभी चिरजीवी हैं। दैत्यों में श्रीहरि से द्वेष करने वाले दुराचारी हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद को देखो। वे श्रीहरि के ध्यान में तल्लीन रहते हैं, जिससे चिरजीवी एवं कालजित् हो गये हैं।

अनेक जन्मों की तपस्या के फलस्वरूप भारत में जन्म पाकर जो लोग उन श्रीहरि की सेवा नहीं करते, वे मूर्ख और पापी हैं। जो मनुष्य वासुदेव का परित्याग करके विषय में लवलीन रहता है, वह महान् मूर्ख है और स्वेच्छानुसार अमृत का त्याग करके विष पान करता है । इस भूतल पर किसकी स्त्री, किसका पुत्र और किसके भाई-बन्धु हैं ? अर्थात् कोई किसी का नहीं है; क्योंकि विपत्तिकाल में श्रीकृष्ण के अतिरिक्त कोई किसी का बन्धु-सहायक नहीं होता । इसीलिये संतलोग रात-दिन निरन्तर श्रीकृष्ण का ही भजन करते हैं; क्योंकि श्रीकृष्ण जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और रोग के विनाशक, सर्वदुःखहारी परमेश्वर हैं । उन आनन्द को भी आनन्दित करने वाले परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण का भजन काल पर विजय पाने का उपाय है।

इसके बाद श्रीराधाजी ने मनुष्य, पितर, देवता, नाग, राक्षस और अन्यान्य लोकों तथा युगों आदि की कालगति का वर्णन करके फिर कहा – ‘वत्स ! अब तुम श्रीहरि के नगर को जाओ । ‘                        ( अध्याय ९६ )

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवाद राधोद्ववसंवाद कालनिरूपणं नाम षण्ण्वतितमोऽध्यायः ॥ ९६ ॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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