ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 98
॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥
(उत्तरार्द्ध)
अट्ठानबेवाँ अध्याय
श्रीकृष्णद्वारा गोकुलका वृत्तान्त पूछे जानेपर उद्धवका उसे कहते हुए राधा की दशाका विशेषरूपसे वर्णन करना

श्रीनारायण कहते हैं — नारद! तदनन्तर उद्धव यशोदा को प्रणामकर उतावली के साथ हर्षपूर्वक खर्जूर-कानन को बाँयें करके यमुना-तट पर गये। वहीं स्नान-भोजन करके वे पुनः मथुरा को चल पड़े। वहाँ पहुँचकर एकान्त में वट की छाया में बैठे हुए गोविन्द को देखा। उस समय उद्धव शोक से दग्ध होने के कारण दुःखी हो रो रहे थे, उनके नेत्रों से आँसू झर रहे थे । उद्धव को आया देखकर श्रीकृष्ण का मन प्रफुल्लित हो गया। तब वे उद्धव से मुस्कराते हुए बोले ।

श्रीभगवान् ने पूछा — उद्धव ! आओ । कल्याण तो है न ? राधा जीवित है न ? विरह-ताप से संतप्त हुई कल्याणमयी गोपियों का जीवन चल रहा है न? ग्वालबालों तथा गोवत्सों का मङ्गल है न ? पुत्र – विरह से दु:खी हुई मेरी माता यशोदा का क्या हाल है ? बन्धो ! यह ठीक-ठीक बतलाओ कि तुम्हें देखकर मेरी माता ने क्या कहा ? तुमने उसे क्या उत्तर दिया तथा उसने मेरे लिये क्या कहा है ? क्या तुमने वह यमुना तट, वृन्दावन नामक पुण्यवन, जनशून्य एवं शीतल- मन्द-सुगन्ध पवन से व्याप्त परम रमणीय रासमण्डल, कुञ्ज-कुटीरों से घिरा हुआ रमणीय क्रीडा-सरोवर और जिन पर भँवरे मँडरा रहे थे, उन खिले हुए फूलों से परिपूर्ण पुष्पवाटिका देखी ? क्या भाण्डीरवन में अत्यन्त सघन छाया वाला एवं बालकों से संयुक्त वटवृक्ष तुम्हें दृष्टिगोचर हुआ ? क्या गौओं के गोष्ठ, गोकुल और गो-समुदाय देखने को मिला ?

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः । सरस्वतीश्रीगिरिजादिकाश्च नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

यदि राधा जीवित है तो तुम्हारे द्वारा देखे जाने पर उसने मेरे लिये क्या संदेशा दिया है ? बन्धो ! वह सारा समाचार मुझे बताओ; क्योंकि मेरा मन स्थिर नहीं है। सभी गोपिकाओं ने क्या कहा है ? ग्वालबालों ने कौन-सी बात कही है ? मेरे पिताकी-सी अवस्था वाले वृद्ध गोपों ने क्या संदेशा दिया है ? तात ! बलदेव की माता सती रोहिणी ने क्या कहा है तथा दूसरी प्रिय बन्धुओं की पत्नियों ने कौन-सी बात कही है? तुम्हें भोजन क्या मिला था ? माता यशोदा तथा राधा ने कौन-सी अपूर्व वस्तु उपहार में दी है ? उन्होंने किस ढंग से बातचीत की है और उनके वचन कैसे मधुर थे? उद्धव ! गोपों, गोपियों, शिशुओं, राधा और मेरी माता का मेरे प्रति कैसा प्रेम है ? क्या मेरी माता मुझे स्मरण करती है ? क्या रोहिणी मुझे याद करती है ? क्या मेरे प्रेमविरह से व्याकुल हुई मेरी राधा को मेरा स्मरण रहता है ? क्या गोपियों, गोपों और ग्वालबालों को मेरी याद आती है ? क्या मेरे न रहने पर भी ग्वाल-बाल भाण्डीरवन में वटवृक्ष के नीचे क्रीड़ा करते हैं? जहाँ ब्राह्मणपत्नियों- द्वारा दिये गये अमृतोपम अन्न का मैंने नारियों और बालकों के साथ भोग लगाया था, उस अभीष्ट स्थान को तुमने देखा है ? इन्द्रयागस्थल, श्रेष्ठ गोवर्धन तथा जहाँ ब्रह्मा ने गौओं का अपहरण किया था, उस उत्तम स्थान को देखा है न ?

श्रीकृष्ण के ये प्रश्न सुनकर उद्धव सनातन भगवान् श्रीकृष्ण से यह शोकयुक्त तथा मधुरताभरी वाणी बोले ।

उद्धव ने कहा — नाथ! आपने जिस-जिसका नाम लिया है, वह सब मैंने इच्छानुसार देख लिया और इस भारतवर्ष में अपने जीवन और जन्म को सफल बना लिया। मैंने उस पुण्यमय वृन्दावन को भी देख लिया, जो भारतवर्ष का साररूप है। व्रजभूमि में उस वृन्दावन का साररूप परम रमणीय रासमण्डल है । उसकी सारभूता गोलोक-वासिनी श्रेष्ठ गोपिकाएँ हैं । उनकी सारभूता जो परात्परा रासेश्वरी राधा हैं; उनके भी मैंने दर्शन किये हैं । वे कदलीवन के मध्य एकान्त में चन्दनचर्चित एवं जलयुक्त पङ्किल भूमि पर बिछे हुए कमलदल की शय्या पर अत्यन्त खिन्न होकर पड़ी थीं। उन्होंने रत्नाभरणों को उतार फेंका है। उनका शरीर श्वेत वस्त्र से आच्छादित है । वे अत्यन्त मलिन एवं दुर्बल हो गयी हैं। आहार छोड़ देने के कारण उनका उदर शीर्ण हो गया है । वे क्षण-क्षण पर साँस लेती हैं। वहाँ सखियाँ निरन्तर श्वेत चँवर से उनकी सेवा कर रही हैं । हरे ! यों विरह-ताप से पीड़िता श्रीराधा क्या क्षण भर जीवित रह सकती हैं ? अरे ! उन्हें तो इसका भी भान नहीं रह गया है कि क्या जल है और क्या स्थल है, क्या रात है और क्या दिन है, कौन मनुष्य है और कौन पशु है तथा कौन अपना है और कौन पराया है ? वे बाह्यज्ञानशून्य होकर तुम्हारे चरण के ध्यान में मग्न हैं । वे त्रिलोकी में अपने उज्ज्वल यश से प्रकाशित हो रही हैं। उनकी मृत्यु भी कीर्तिदायिनी है। परंतु जगन्नाथ! अज्ञानी चोर-डाकू भी इस प्रकार स्त्री-हत्या करना नहीं चाहते; अतः तुम शीघ्र ही अभीष्ट कदलीवन को जाओ; क्योंकि राधा से बढ़कर भक्त न कोई हुआ है और न होगा। वे सब तरह से पीड़ित होकर अनाथ हो गयी हैं । वसन्त ऋतु, किरणधारी चन्द्रमा और सुगन्धित वायु उनके लिये दाहकारक हो गये हैं । तपाये हुए सुवर्ण के समान उनकी चमकीली कान्ति इस समय कज्जल की तरह श्याम हो गयी है और उनके केश सुवर्ण के-से भूरे हो गये हैं । उन्होंने उत्तम वस्त्र और शृङ्गार का त्याग कर दिया है ।

श्रीकृष्ण ! स्वयं भगवान् ब्रह्मा – जो देवताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं – तुम्हारे भक्त हैं। योगीन्द्रों के गुरु के गुरु भगवान् शंकर तुम्हारे भक्त हैं । ज्ञानियों में श्रेष्ठ गणेश और सनत्कुमार भी तुम्हारा भजन करते हैं। भूतल पर कितने मुनीन्द्र तुम्हारे भजन में लगे रहते हैं; परंतु राधा तुम्हारी जैसी भक्ति करती हैं, वैसा भक्त कोई भी कहीं भी दूसरा नहीं है । राधा जिस प्रकार तुम्हारे ध्यानमें तल्लीन रहती हैं वैसा तो स्वयं लक्ष्मी भी नहीं कर सकतीं । महाभाग ! मैंने राधा के सामने ‘श्रीहरि आयेंगे’ यों स्वीकार कर लिया है; अत: तुम शीघ्र ही वहाँ जाओ और मेरा वचन सार्थक करो।

उद्धव की बात सुनकर माधव ठठाकर हँस पड़े और वेदोक्त हितकारक एवं उत्तम सत्यव्रत का वर्णन करते हुए बोले ।

श्रीभगवान् ने कहा — उद्धव ! मैं तुम्हारे द्वारा अङ्गीकार किये गये वचन को अवश्य सफल करूँगा। स्वप्न में माता यशोदा के तथा गोपियों के निकट जाऊँगा ।

यह सुनकर महायशस्वी उद्धव अपने घर चले गये और श्रीकृष्ण स्वप्न में विरहाकुल गोकुल में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने स्वप्न में राधा को भलीभाँति आश्वासन देकर परम दुर्लभ ज्ञान प्रदान किया। क्रीड़ा करके उन गोपिकाओं को यथोचितरूप से संतुष्ट किया; नींद में पड़ी हुई माता यशोदा का स्तनपान करके उन्हें ढाढ़स बँधाया तथा गोपों और ग्वालबालों को समझा-बुझाकर वे पुनः वहाँ से चल दिये ।
(अध्याय ९८ )

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवाद अष्टनवतितमोऽध्यायः ॥ ९८ ॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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