September 6, 2015 | aspundir | Leave a comment ब्रह्म-गीता ।।चौपाई।। सर्वात्मा रुप जो जाना। है सोई ब्रह्म-देव कर ध्याना।। बाहर भीतर पूरण देखै। सोइ आवाहन तासु विशेषै।। सर्वाधार जानिवो जोई। ब्रह्म-देव हित आसन सोई।। स्वच्छ जानिबो अर्ध अनूपा। जानै शुद्ध आचमन-रुपा।। निर्मल जानब सोइ अस्नाना। चिश्वात्मा वसन परिधाना।। है निर्गन्ध सुगन्ध सुहाई। निर्वासना सुमन सुख-दाई।। निर्गुण जानब धूप समीपा। स्वयं प्रकाश-मान सोइ दीपा।। तृप्त सदा नैवेद्य प्रमाना। गुनि निःसौख्य चढ़ावै पाना।। जानि अनन्त प्रदक्षिण सोई। है अद्वैत सो अस्तुति होई।। भीतर-बाहर पूरण जाना। इहै विसर्जन जानु सुजाना।। इहै सदा सुधि राखै जोई। ब्रह्म-देव नित पूजत सोई।। ।।दोहा।। देह-बुद्धि से दास हौं, जीव-बुद्धि से अंस। आत्म-बुद्धि से एक हौं, यह मम मत निःशंस।। ऊँच-नीच बड़ छोट तन, जाति जीव अभिमान। सर्व भेद भ्रम-मात्र तजि, ब्रह्म-देव सत जान।। सर्व अहं की सर्वत्वं, यह तुरिया अहंकार। शान्त शुद्ध हँ त्वं रहित, तुरियातीत विचार।। तेहि मा थित ह्वै कै सदा, बिचरहु जीवन्मुक्त। अस कहि अन्त-रहित भए, ब्रह्म-शक्ति संयुक्त।। Please follow and like us: Related