August 30, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ भगवान् श्रीगणेश के विभिन्न मन्त्र ॥ 1. एकाक्षर मन्त्र – १॰ “गं” २॰ “गः” ३॰ “गौं” 2. एकाक्षर हरिद्रा गणेश – १॰ “ग्लं” २॰ “ग्लौं” 3. द्व्यक्षर हरिद्रा गणेश – १॰ “श्रीं ग्लौं” २॰ “हूं ग्लौं” ३॰ “ह्रीं ग्लौं” ४॰ “क्लीं ग्लौं” ५॰ “स्त्रीं ग्लौं” ६॰ “ऐं ग्लौं” ७॰ “ॐ ग्लौं” ८॰ “गं ग्लौं” 4. द्व्यक्षर विघ्नेश गणनायक – “ह्रीं गं” 5. त्र्यक्षर हरिद्रा गणेश – १॰ “श्री ग्लौं फट्” २॰ “हूं ग्लौं फट्” ३॰ “ह्रीं ग्लौं फट्” ४॰ क्लीं ग्लौं फट्” ५॰ “स्त्रीं ग्लौं फट्” ६॰ “ऐं ग्लौं फट्” ७॰ “ॐ ग्लौं फट्” ८॰ “गं ग्लौं फट्” 6. चतुरक्षर हरिद्रा गणेश – १॰ “श्री ग्लौं स्वाहा” २॰ “हूं ग्लौं स्वाहा” ३॰ “ह्रीं ग्लौं स्वाहा” ४॰ “क्लीं ग्लौं स्वाहा” ५॰ “स्त्रीं ग्लौं स्वाहा” ६॰ “ऐं ग्लौं स्वाहा” ७॰ “ॐ ग्लौं स्वाहा” ८॰ “गं ग्लौं स्वाहा” 7. चतुरक्षर हेरम्ब गणपति – “ॐ गूं नमः” 8. चतुरक्षर शक्ति विनायक – “ॐ ह्रीं ग्रीं ह्रीं 9. षडक्षर वक्र-तुण्ड – “वक्र-तुण्डाय हुं” 10. षडक्षर गणेश – “मेघोल्काय स्वाहा” 11. नवाक्षर उच्छिष्ट गणेश – “हस्ति पिशाची लिखे स्वाहा” 12. नवाक्षर गणपति – “ॐ गं गणपतये नमः” 13. दशाक्षर उच्छिष्ट गणेश – १॰ “गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।” २॰ “ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।” 14. दशाक्षर क्षिप्र गणपति (विध्नराज) – “गं क्षिप्र प्रसादनाय नमः” 15. एकादशाक्षर शक्ति गणपति – “ॐ ह्री गं ह्रीं वशमानय स्वाहा” 16. द्वादशाक्षर महागणेश – “ह्री गं ह्रीं महागणपतये स्वाहा” 17. द्वादशाक्षर उच्छिष्ट गणेश – “ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाची लिखे स्वाहा” 18. द्वादशाक्षर गणपति – “ॐ गीं गूं गणपतये नमः स्वाहा” 19. पञ्चदशाक्षर ऋणहर्तृ गणेश – “ॐ गणेश ! ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्” 20. एकोनविंशत्यक्षर उच्छिष्ट गणेश – “ॐ नमः उच्छिष्ट गणेशाय हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा” 21. षड्-विंशत्यक्षर विरि गणपति – “ॐ ह्री विरि विरि गणपति वर वरद सर्वलोकं मे वशमानय स्वाहा” 22. अष्टा-विंशत्यक्षर महागणपति – “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर-वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा” 23. अष्टा-विंशत्यक्षर लक्ष्मी-विनायक – “ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर-वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा” 24. अष्टा-विंशत्यक्षर वीरवर गणपति – “ह्री क्लीं वीरवर गणपतये वः वः इदं विश्वं मम वशमानय ॐ ह्रीं फट्” 25. त्रिंशदक्षर सर्व-विघ्न हर गणपति – “गं गणपतये सर्व-विघ्न-हराय सर्वाय सर्व-गुरवे लम्बोदराय ह्री गं नमः” 26. एक-त्रिंशदक्षर वक्रतुण्ड – “रायस्पोषस्य ददिता निधिदो रत्नधातुमान् रक्षोहणो बलगहनो वक्रतुण्डाय हुम्” 27. एक-त्रिंशदक्षर उच्छिष्ट गणेश – “ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा” 28. द्वात्रिंशदक्षर उच्छिष्ट गणेश – “ॐ हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने आं क्रों ह्रीं क्लीं ह्रीं हुं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ।” 29. द्वात्रिंशदक्षर हरिद्रा गणपति – “ॐ हुं गं ग्लौं हरिद्रा गणपतये वर वरद सर्व-जन-हृदयं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा” 30. त्रयस्त्रिंशदक्षर त्रैलोक्य मोहन गणेश – “वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्री श्रीं गं गणपते वर-वरद सर्व-जनं मे वशमानय स्वाहा ।” 31. सप्तत्रिंदक्षर उच्छिष्ट गणेश – “ॐ नमो भगवते एकदंष्ट्राय हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने आँ क्रों ह्रीं गं घे घे स्वाहा ।” 32. एकाधिक चत्वारिंशदक्षर उच्छिष्ट महागणपति – “ॐ नमो भगवते एकदंष्ट्राय हस्तिमुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने आँ क्रों ह्रीं गं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ।” 33. त्रयः-पञ्चाशदक्षर सिद्धि विनायक – “ॐ नमो सिद्धि विनायकाय सर्व-कार्य-कर्त्रे सर्व-विघ्न प्रशमनाय सर्व-राज्य-वश्य-करणाय सर्व-जन-स्त्री-पुरूषाकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा ।” 34. पञ्च-पञ्चाशदक्षर गणेश माला-मन्त्र – “ॐ ह्री क्रों गूं नमः सर्व-विघ्नाधिपाय सर्वार्थ सिद्धिदाय सर्व-दुःख-प्रशमनाय एह्येहि भगवन् सर्वा आपदः स्तम्भय स्तम्भय ह्रीं गूं गां नमः स्वाहा क्रों ह्रीं” Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe