September 10, 2015 | aspundir | Leave a comment भगवान् श्री राम की दिन-चर्या “आनन्द-रामायण” के राज्य-काण्ड के १९ वेँ सर्ग में ‘भगवान् श्रीराम’ की दिन-चर्या का वर्णन है । इस वर्णन से सदाचारों का महत्त्व भली-भाँति स्पष्ट होता है । महर्षि वाल्मीकि अपने शिष्यों को बताते हैं – “भगवान् श्रीराम नित्य प्रातः-काल चार घड़ी रात्रि शेष रहते मङ्गल-गीत आदि को श्रवण कर जागते थे । फिर शिव, देवी, गुरु, देवता, माता-पिता, तीर्थ, देव-मन्दिर तथा पुण्य-क्षेत्रों एवं नदियों का स्मरण करते थे और शौचादि के पश्चात् दन्त-शुद्धि करते थे । इसके अनन्तर कभी घर पर और कभी सरयू में जाकर स्नान करते थे । ब्राह्मणों के वेद-घोष के साथ वे विधि-वत् स्नान करते थे । तदनन्तर प्रातः-सन्ध्या, हवन कर ‘शिव-पूजन’ करते थे । इसके बाद कौशल्या आदि तीनों माताओं का पूजन करते थे । इसके पश्चात् सद्-ग्रन्थों का श्रवण करते थे । तदनन्तर वस्त्रादि तथा अस्त्र-शस्त्र धारण करके वैद्य तथा ज्योतिषियों का स्वागत कर वैद्य को ‘नाड़ी’-परीक्षण कराते तथा ज्योतिषियों से नित्य ‘पञ्चाङ्ग-श्रवण’ करते थे । ‘पञ्चाङ्ग-श्रवण’ के अनन्तर श्रीराम जी उद्यान में अपनी प्रजा के लोगों से, मित्रों से तथा आगन्तुकों से भेंट करते थे । उद्यान से निकलकर वे सेना का निरीक्षण करते थे । फिर राज्य-सभा में जाकर राज्य-कार्यों पर विचार करते थे । मध्याह्न-कृत्यों के लिए श्रीराम जी पुनः महल में पधारकर मध्याह्न-स्नान करके पितरों का तर्पण, देवताओं का नैवेद्य तथा काक-बलि आदि देते थे । फिर अतिथियों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करते थे । भोजन के अनन्तर वे ताम्बूल खाते तथा ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर सौ पद चलकर विश्राम करते थे । विश्राम के पश्चात् क्षणिक मनोरञ्जन करके वे पिंजरों में पाले गए महल के पक्षियों का निरीक्षण करके महल की छत पर चढ़कर अयोध्या नगरी का निरीक्षण करते थे । फिर गो-शाला में जाकर गायों की देखरेख देखते थे । इसके पश्चात् अश्व-शाला, गज-शाला, उष्ट्र-शाला तथा अस्त्र-शाला आदि का निरीक्षण करते थे । इन सब कार्यों के बाद वे दुर्ग के रक्षार्थ बनी खाई की देखभाल करते थे और रथारुढ़ हो अवध-पुरी के राज-मार्ग से दुर्ग के द्वारों तथा द्वार-रक्षकों का निरीक्षण करते थे । फिर बन्धुओं के साथ सरयू के तट पर भ्रमण कर सांय-सन्ध्या तथा पूजनादि के बाद भोजन करते थे । बन्धुओं से पारिवारिक विषयों पर चर्चा करके भगवान् डेढ़ प्रहर रात्रि व्यतीत हो जाने पर शयन-कक्ष में प्रवेश करके विश्राम करते थे ।” Related