भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १२
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १२
बृहत्तपोव्रत का विधान और फल

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! अब मैं सभी पापों का नाशक तथा सुर, असुर और मुनियों के लिये भी अत्यन्त दुर्लभ बृहत्तपोव्रत का विधान बतलाता हूँ, आप सुनें – आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन आत्मशुद्धिपूर्वक उपवासकर रात में घृतमिश्रित पायस का भोजन करना चाहिये । दूसरे दिन प्रातः उठकर पवित्र हो आचमनकर बिल्व के काष्ठ से दन्तधावन करे । om, ॐअनन्तर इस मन्त्र से महादेवजी की प्रार्थना करनी चाहिये —

“अहं देवव्रतमिदं कर्तुमिच्छामि शाश्वतम् ।
तवाज्ञया महादेव यथा निर्वहते कुरु ॥” ( उत्तरपर्व १२ । ४)

‘महादेव ! मै आपकी आज्ञा से निरन्तर बृहत्तपोव्रत करना चाहता हूँ । जिसप्रकार मेरा यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण हो जाय, आप वैसी कृपा करें ।’

नियमपूर्वक सोलह वर्षपर्यन्त प्रतिपदा का व्रत करना चाहिये । फिर मार्गशीर्ष मास की प्रतिपदा को उपवास कर गुरुजनों से आदेश प्राप्त करके महादेव का स्मरण करते हुए भक्तिपूर्वक शिव का पूजन करना चाहिये और रात में दीपक जलाकर शिव को निवेदित करना चाहिये । शिवभक्त सपत्निक सोलह ब्राह्मणों को निमन्त्रित कर वस्त्र, आभूषण आदि से पूजन कर भोजन कराये या आठ दम्पति को भोजन कराये । यदि शक्ति न हो तो एक ही दम्पति का पूजन करे । निराहार व्रत करके रातमें भूमिपर शयन करना चाहिये । सूर्योदय होने पर स्नान करके सभी सामग्रियों को लेकर शिवजी का उद्वर्तन एवं पञ्चगव्य से स्नान कराना चाहिये । अनन्तर पञ्चामृत, तिलमिश्रित जल और गर्म जल से स्नान कराना चाहिये । स्नान के अनन्तर कर्पुर, चन्दन आदि का लेपकर कमल आदि उत्तम पुष्प चढाने चाहिये । वस्त्र, पताका, वितान, धूप, दीप, घण्टा एवं भाँति-भाँति के नैवेद्य महादेवजी को समर्पित कर अग्नि प्रज्वलित कर एवं उसकी पूजाकर विधिपूर्वक हवन करना चाहिये । घर आकर पञ्चगव्य-प्राशन कर आचार्य आदि को भोजन कराकर अपने सभी बन्धुओं के साथ मौन होकर भोजन करना चाहिये । फिर स्वर्ण, वस्त्र आदि देकर ब्राह्मणों से क्षमा माँगे । धनवान् व्यक्ति श्रद्धापूर्वक सांगोपांग निर्दिष्ट विधि से पूजन करे एवं यदि कोई व्यक्ति निर्धन हो तो वह श्रद्धापूर्वक जल, पुष्प आदि से पूजा करे । इससे व्रत के सम्यक् फल की प्राप्ति होती है ।

श्रद्धा के साथ कार्तिक की प्रतिपदा से लेकर प्रतिमास इस विधि से व्रत करना चाहिये । अनन्तर पारणा करनी चाहिये । सोलहवें वर्ष में पारणा के दिन शिवजी की पूजा कर सोने की सींग, चाँदी के खुर और घण्टा, काँसे के दोहन-पात्र के साथ उत्तम गाय महादेवजी के निमित्त शिवभक्त ब्राह्मणों को देनी चाहिये । अनन्तर सोलह ब्राह्मणों का विधि-विधान से पूजनकर यथाशक्ति वस्त्र, आभूषण आदि से पूजनकर उत्तम पदार्थो का भोजन कराना चाहिये । यथाशक्ति ब्राह्मण-भोजन कराकर दक्षिणा दे । दीनों, अंधों, अनाथों आदि को भी भोजन कराकर कुछ दान देना चाहिये । यह बृहत्तपोव्रत ब्रह्महत्या-जैसे पापों का हरण और तीनों लोकों में अनेक प्रकार के उत्तम भोगों को प्रदान करनेवाला है । चारों वर्णों के लिये यह स्वर्ग की सीढी है । धन पाकर भी जो इस व्रत को नहीं करता, वह मूढ़-बुद्धि हैं । सधवा स्त्री यदि इसे करती है तो उसका पति से वियोग नहीं होता और विधवा स्त्री को भी भविष्य में वैधव्य न प्राप्त हो, इसलिये उसे यह व्रत करना चाहिये । इस व्रत के अनुष्ठान से धन, आयु, रूप, सौभाग्य आदि की प्राप्ति होती है । सभी स्त्री-पुरुष इस व्रत को कर सकते हैं । सोलह वर्षों तक इस बृहत्तपोव्रत का भक्तिपूर्वक अनुष्ठान कर व्रती सूर्यमण्डल का भेदनकर शिवजी के चरणों को प्राप्त करता है ।
(अध्याय १२)

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