भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ११९ से १२०
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ११९ से १२०
नवोदित चन्द्र, गुरु एवं शुक्र को अर्घ्य देने की विधि

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! अब मैं नवोदित चन्द्रमा को अर्घ्य देने की विधि बता रहा हूँ । प्रतिमास शुक्ल पक्ष की द्वितीया को प्रदोषकाल के समय भूमि पर गोबर का एक मण्डल बनाकर उसमें रोहिणी सहित चन्द्रमा की प्रतिमा को स्थापित करके श्वेत चन्दन, श्वेत पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, अनेक प्रकार के फल, नैवेद्य, दही, श्वेत वस्त्र तथा दूर्वाङ्कुर आदि से उनका पूजन करे और इस भाव से चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान करे —om, ॐ

“नवो नवोऽसि मासान्ते जायमानः पुनः पुनः ।
आप्यायस्व स में त्वेवं सोमराज नमो नमः ॥”
(उत्तरपर्व ११९ । ६)

जो व्यक्ति इस विधि से चन्द्रमा को प्रतिमास अर्घ्य देता है, उसे पुत्र, पौत्र, धन, पशु, आरोग्य आदि की प्राप्ति होती है तथा सौ वर्ष तक सुख भोगकर अन्त में वह चन्द्रलोक को और फिर मोक्ष को प्राप्त करता है ।

राजन् ! शुक्र के दोष की निवृत्ति के लिये यात्रा के आरम्भ में, गमनकाल में और शुक्रोदय के समय शुक्रदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिये । शुक्र की पूजन-विधि को मैं बता रहा हूँ, उसे आप ध्यानपूर्वक सुनें —
सुवर्ण, चाँदी अथवा काँस्य के पात्र में मोतीयुक्त चाँदी की शुक्र की मूर्ति को पुष्प तथा श्वेत वस्त्र से अलंकृतकर श्वेत चावलों पर स्थापित करे । षोडशोपचार अथवा पञ्चोपचार से शुक्रदेव की पूजा करके इस मन्त्र से उन्हें अर्घ्य प्रदान करे —

“नमस्ते सर्वदेवेश नमस्ते भृगुनन्दन ।
कवे सर्वार्थसिद्ध्यर्थं गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥”
(उत्तरपर्व १२० । ४)

तदनन्तर प्रणामपूर्वक मूर्ति को विसर्जित कर सवत्सा गौ के साथ वह प्रतिमा तथा अन्य सभी सामग्री ब्राह्मण को दे दें । इस विधि से शुक्रदेव की पूजा करने से सभी मनःकामनाओं की पूर्ति हो जाती है और फसल अच्छी होती है ।

इसी प्रकार सुवर्ण आदि के पात्र में सुवर्ण की बृहस्पति की मूर्ति स्थापित करे । प्रतिमा को सर्षप युक्त जल तथा पञ्चगव्य से स्नान कराकर पीत पुष्प तथा पीत वस्त्रों से अलंकृत करे । अनन्तर विविध उपचारों से उनका पूजन कर अर्घ्य प्रदान कर घी से हवन करे । सवत्सा गौ के साथ वह बृहस्पति की मूर्ति दक्षिणासहित ब्राह्मण को दान कर दे । यात्राकाल, बृहस्पति की संक्रान्ति और उनके उदय के समय जो इनका पूजन करता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं । शुक्र तथा बृहस्पति का इस विधि से पूजन करने से पूजक के घर में उनका दोष नहीं होता ।
(अध्याय ११९-१२०)

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